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तमिलनाडु की वह तूफानी रात जहां से निकली भारत के मेट्रो मैन श्रीधरन की काबिलियत

तमिलनाडु की वह तूफानी रात जहां से निकली भारत के मेट्रो मैन श्रीधरन की काबिलियत 

वह 24 दिसंबर, 1964 की रात थी। एक ऐसी रात, जो तमिलनाडु के धनुषकोडी शहर के लोगों के लिए खासी स्याह साबित हुई। उस रात आए समुद्री तूफान से वह शहर पूरी तरह तबाह हो गया था। समुद्री लहरें रामेश्वरम को तमिलनाडु से जोड़ने वाले करीब 2500 मीटर ऐतिहासिक पंबन ब्रिज को भी अपने साथ बहा ले गई थीं। उससे भी ज्यादा दुखदाई घटना यह रही, कि जिस वक्त समुद्री लहरों ने इस ब्रिज को अपना निशाना बनाया था, उसी वक्त ब्रिज से एक पैसेंजर ट्रेन भी गुजर रही थी। वह पूरी की पूरी ट्रेन भी लहरों के साथ में समुद्र में समा गई। इंजीनियर ई. श्रीधरन उस वक्त रेलवे की सेवा में आ चुके थे और उनकी तैनाती कर्नाटक में चल रही थी। यह वह दौर था जब वे ऑफिस की ‘इंटरनल पॉलिटिक्स’ के शिकार बने थे और उन्हें ‘सबक सिखाने’ की गर्ज से उनका जल्दी-जल्दी तबादला भी किया जा रहा था।

तूफान में ध्वस्त हुए पंबन ब्रिज को फिर से बनाने का मिला काम

इस उथल-पुथल से परेशान श्रीधरन ने बेंगलुरु में रेलवे के चीफ इंजीनियर के प्राइवेट सेक्रेट्ररी (टेक्निकल) की पोस्ट पर जाना भी स्वीकार कर लिया था। जिस रात यह तूफान आया था, श्रीधरन क्रिसमस मनाने के लिए बेंगलुरु से बाहर गए हुए थे। तूफान और तबाही की खबरों के बीच श्रीधरन को फोन गया कि उन्हें फौरन अपनी छुट्टी रद्द कर दफ्तर पहुंचना होगा। अगले ही रोज वे अपने दफ्तर पहुंचे, जहां से उन्हें चैन्ने जाने का आदेश मिला। वहां उन्हें एक नए टास्क के लिए जॉइन करना था। श्रीधरन चैन्ने पहुंचे तो बताया गया कि उन्हें ध्वस्त हुए पंबन ब्रिज को फिर से स्थापित करना है। इस काम को पूरा करने के लिए उन्हें छह महीने दिए गए। ध्वस्त पंबन ब्रिज को फिर से स्थापित करनाही काफी कठिन था, पर यहां तो चुनौती यह दी गई थी कि इस कठिन काम को छह महीने के अंदर पूरा करना है।

जब अफसरों की दो टूक के बाद श्रीधरन ने ठान ली जिद

श्रीधरन की मुश्किल तब और बढ़ गई, जब उनकी अगली मीटिंग और बड़े अफसरों के साथ रखी गई। उन्हें बताया गया कि टास्क को छह महीने में पूरा करने की बात पुरानी हो चुकी है, अब यह टास्क सिर्फ तीन महीने में पूरा करना होगा। वजह यह बताई गई कि ब्रिज का जो महत्व है, उसे देखते हुए भारत सरकार इस काम को जल्द से जल्द पूरा करना चाहती है। तीन महीने की अपेक्षा रेलमंत्री की तरफ से ही है, ऐसे में उसे नकार पाना किसी के अधिकार में नहीं है। श्रीधरन ने समझाने की कोशिश की कि उस ब्रिज के 146 में से 126 गार्डर बह गए हैं। ब्रिज की लंबाई भी ज्यादा है। एक बार हमें मौके पर जाने दीजिए, फिर बता पाऊंगा कि कितना वक्त लग सकता है। लेकिन उन्हें जवाब मिला कि तीन महीने से एक दिन भी ज्यादा आपको नहीं मिलेगा, बाकी आप जानिए। अफसरों से दो टूक सुनने के बाद उन्होंने यह ठान लिया था कि यह काम पूरा होगा और वह भी तीन महीने के अंदर ही।

वक्त से पहले पूरा करके दिखाया काम

रामेश्वरम पहुंचने के बाद उन्होंने काम को अंजाम देना शुरू किया और भी वह अपने तरीके से। किसी की भी सलाह पर चलना कबूल नहीं किया। अभी डेढ़ महीने का ही वक्त गुजरा था कि लोकसभा में इस ब्रिज के निर्माण की प्रगति पर सवाल पूछ लिया गया। उस वक्त रेल मंत्री एसके पाटिल थे। उन्होंने जवाब दिया कि इस पुल निर्माण के लिए तीन महीने का समय रखा गया है। अभी तो डेढ़ महीने का वक्त पूरा हुआ है। कार्य बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। अगले डेढ़ महीने में यह काम हर हाल में पूरा हो जाएगा। लेकिन जिस वक्त रेलमंत्री सदन में कार्य प्रगति पर होने का जवाब दे रहे थे, उस वक्त वहां काम पूरा हो चुका था। रात रेडियो की खबर से लेकर अगले दिन सुबह के अखबारों में उस ब्रिज के निर्धारित समय से पहले पूरा हो जाने की खबर छाई हुई थी। रेलमंत्री अपनी अधूरी जानकारी पर शर्मिंदा थे और कार्य के आधे समय में पूरा हो जाने से हतप्रभ भी थे। उन्होंने श्रीधरन के लिए एक हजार रुपये के पुरस्कार का ऐलान कर दिया।

यहां से हुई इतिहास रचने की शुरुआत

यही वह घटना थी, जिसके जरिए श्रीधरन ने इतिहास रचने की शुरुआत की और समय की पाबंदी के भी मिसाल बने। फिर तो उन्हें हर मुश्किल टास्क दिया जाने लगा और हर बार वे कसौटी पर खरे उतरते गए। 1970 में श्रीधरन को ‘कोलकाता मेट्रो’ की योजना का जिम्मा सौंपा गया, जिसे उन्होंने कामयाबी की मंजिल तक पहुंचाया। इसके बाद उन्हें कोचिन शिपयार्ड में काम करने का मौका मिला। यह वह जगह थी, जो अपनी लेट-लतीफी के लिए जानी जाती थी। ‘एम.वी. रानी पद्मिनी’ का निर्माण कार्य काफी लेट चल रहा था, लेकिन श्रीधरन ने यहां भी चमत्कार कर दिया। उन्हें 1990 में रिटायर होना था, लेकिन उनकी जरूरत को देखते हुए सरकार ने उनकी सेवाओं को जारी रखने का फैसला किया और उन्हें कोंकण रेलवे का चीफ मैनेजिंग डायरेक्टर बना दिया। उन्हीं के नेतृत्व में बेहद खास कोंकण रेलवे परियोजना अंजाम तक पहुंची और वह भी निर्धारित वक्त के अंदर।

दिल्ली मेट्रो के बाद बन गए ‘मेट्रो मैन’

दिल्ली मेट्रो का मैनेजिंग डायरेक्टर (1995 से 2012) बनने के बाद उन्होंने दिल्ली की जिंदगी को ऐसा आसान बनाया कि उन्हें मेट्रो मैन के नाम से जाना जाने लगा। दिल्ली मेट्रो के बाद उन्हें कोच्चि मेट्रो रेल प्रॉजेक्ट का मुख्य सलाहकार नियुक्त किया गया। उन्होंने लखनऊ मेट्रो के भी मुख्य सलाहकार के रूप में सेवाएं दी। देश की कई दूसरी मेट्रो परियोजनाओं में भी उनकी मदद ली गई। 2001 में ‘पद्म भूषण’, 2008 में ‘पद्म विभूषण’ के अलावा 2003 में उन्हें ‘टाइम’ पत्रिका ने ‘वन ऑफ एशिआज हीरोज’ में शामिल किया। 2005 में उन्हें फ्रांस के ‘नाइट ऑफ द लीजन ऑफ ऑनर’ और 2013 में जापान के ‘ऑर्डर ऑफ द राइजिंग सन- गोल्ड एंड सिल्वर स्टार’ का खिताब मिला। केरल भी प्रदेश बीजेपी के लिए एक कठिन टास्क बना हुआ है, श्रीधरन ने उसे चुनौती के रूप में लिया है। अगर पंबन ब्रिज जैसा चमत्कार कर गए, तो वे राजनीति के भी हीरो बन जाएंगे।

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