कवर्धा, एक तो दुर्गम क्षेत्र ऊपर से नक्सलवाद प्रभावित, जहां बाहरी लोगों का आना नहीं होता। सरकारी मुलाजिम भी कभी-कभार ही पहुंचते हैं। शिक्षक तो जाते ही नहीं। कवर्धा जिले के नक्सलवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित बोड़ला ब्लाक के ऐसे ही पांच गांवों में पुलिस वाले शिक्षा की अलख जगाए हुए हैं। चार साल पहले एक गांव से तत्कालीन एसपी (पुलिस अधीक्षक) की पहल पर इस सत्कार्य की शुरुआत हुई थी।
अच्छी बात यह है कि बाद में उनकी जगह लेने वालों ने भी इसे जारी रखा। धीरे-धीरे ऐसे ही पांच गांवों तक शिक्षा का विस्तार हुआ है। वर्तमान में छह सौ से ज्यादा बच्चे पढ़ रहे हैं। गांव के युवाओं को पुलिस ने शिक्षा दूत बनाया है, जो झोपड़ियों में बच्चों को पढ़ाते हैं।
पुलिस ने ली पढ़ाई की जिम्मेदारी, छह जगहों पर खोले स्कूल
कबीरधाम पुलिस जहां अपराध को रोकने के साथ ही सामुदायिक पुलिसिंग से लोगों से जुड़ रही है। इसके लिए बीते तीन वर्षों से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पुलिस विभाग बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए निश्शुल्क पढ़ाई की व्यवस्था कर रही है। यहां बच्चे आठवीं तक की पढ़ाई करते हैं। वर्तमान में 300-400 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं और 12-14 लोग इस कार्य में लगे हुए हुए हैं। पुलिस विभाग ने ऐसे सात-आठ गांव और चिह्नित किए हैं, जहां शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया जाना है।इसके अलावा कक्षा 10वीं और 12वीं के लिए ओपन स्कूल में फार्म भी पुलिस विभाग भरा रहा है। इस वर्ष करीब 45 बच्चों को फार्म खुद पुलिस विभाग ने भराया है। दरअसल, शिक्षा एक ऐसा हथियार है, जिससे नक्सली गतिविधियों पर लगाम लगेगी। पुलिस विभाग ने बीते तीन वर्ष में लगभग 200 से अधिक बच्चों को पढ़ाई से जोड़ा है। इसके लिए पैसों की व्यवस्था भी पुलिस विभाग करता है और कमी पड़ने पर पुलिसकर्मी अपनी जेब से फीस भरते हैं। कोरोना के कारण स्कूल बंद, फिर भी पढ़ाई जारी
कोरोना के चलते सभी सरकारी स्कूल बंद हैं। नक्सल प्रभावित गांवों में लोगों के पास एंड्रायड मोबाइल भी नहीं हैं और वहां की भौगोलिक स्थिति भी ऐसी है कि वहां नेटवर्क नहीं मिलता। ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई का लाभ भी बच्चों को नहीं मिल रहा था। लिहाजा, कबीरधाम पुलिस ने इस समस्या को गंभीरता से लेकर नक्सल प्रभावित पांच गांव के 103 बच्चों की जिम्मेदारी उठाई। अब इन गांव के बच्चे गांव में ही रहकर पढ़ाई कर रहे हैं।
स्थानीय युवाओं का मिला साथ
नक्सल प्रभावित इन गांवों की बसाहट कठिन क्षेत्र में है। नजदीकी स्कूल पांच से सात किलोमीटर दूर हैं, इसलिए परिजन बच्चों को वहां भेजने से कतराते हैं। शिक्षक भी मोहल्ला क्लास लगाने नहीं आते हैं। ऐसे में पुलिस ने स्थानीय पढ़े-लिखे युवाओं को शिक्षादूत नियुक्त किया है, जो रोज दो घंटे बच्चों की क्लास लेते हैं। ह्यूमन पुलिसिंग के तहत नक्सल प्रभावित मांदीभाठा, सौरु, बंदूककुंदा, पंडरीपथरा और झुरगीदादर में अस्थायी स्कूल शुरु किए गए हैं। ये स्कूल गांव की ही झोपड़ियां में लगते हैं। पढ़ने के लिए बच्चों को निश्शुल्क किताबें भी दी गई है।