फिर बेनतीजा रही सरकार और किसानों की बातचीत, 8 जनवरी को होगी अगली बैठक
किसान संगठन के प्रतिनिधि अपने लिये खुद भोजन लेकर आये थे जो ‘लंगर’ के रूप में था। हालांकि 30 दिसंबर की तरह आज केंद्रीय नेता लंगर के भोजन में शामिल नहीं हुए। और भोजनावकाश के दौरान अलग से चर्चा करते रहे। बैठक में हिस्सा ले रहे भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि पहले घंटे की बातचीत में मुख्य रूप से तीन कानूनों के संबंध में चर्चा हुई।
नई दिल्ली। कृषि कानूनों के खिलाफ एक महीने से ज्यादा समय से चल रहे गतिरोध को दूर करने के लिए किसान संगठनों और तीन केंद्रीय मंत्रियों के बीच सातवें दौर की वार्ता खत्म हो गई है। किसान तीनों कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की मांग पर अड़े हुए हैं। वह एमएसपी को भी लेकर सरकार से लिखित आश्वासन चाहते हैं। आज की बैठक विज्ञान भवन में हुई थी। अगले दौर की बातचीत 8 जनवरी को दोपहर 2:00 बजे से शुरू होगी। आज की बैठक में भी किसान संगठन अपने तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग पर कायम रहे। सूत्रों ने बताया कि दोनों पक्षों ने एक घंटे की बातचीत के बाद भोजनावकाश लिया। सरकार इन कानूनों को निरस्त नहीं करने के रूख पर कायम है और समझा जाता है कि उसने इस विषय को विचार के लिये समिति को सौंपने का सुझाव दिया है। दोनों पक्षों के बीच एक घंटे की बातचीत में अनाज की खरीद से जुड़ी न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्रणाली को कानून मान्यता देने के किसानों की महत्वपूर्ण मांग पर अभी चर्चा नहीं हुई है।किसान संगठन के प्रतिनिधि अपने लिये खुद भोजन लेकर आये थे जो ‘लंगर’ के रूप में था। हालांकि 30 दिसंबर की तरह आज केंद्रीय नेता लंगर के भोजन में शामिल नहीं हुए। और भोजनावकाश के दौरान अलग से चर्चा करते रहे। बैठक में हिस्सा ले रहे भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि पहले घंटे की बातचीत में मुख्य रूप से तीन कानूनों के संबंध में चर्चा हुई। उन्होंने कहा कि हमारी मांग इन कानूनों को निरस्त करने की है। हम समिति गठित करने जैसे किसी अन्य विकल्प पर सहमत नहीं होंगे। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हजारों की संख्या में किसान कृषि संबंधी तीन कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर पिछले एक महीने से अधिक समय से दिल्ली की सीमा पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के आसपास प्रदर्शन स्थल पर भारी बारिश और जलजमाव एवं जबर्दस्त ठंड के बावजूद किसान डटे हुए हैं।