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पीली नहीं नीले रंग की नजर आती है यह हल्दी, कैंसर को भी दे सकती है मात

काली हल्दी में औषधीय गुण तो मौजूद हैं ही, साथ ही इसकी सांस्कृतिक महत्ता भी कम नहीं है। भारत में सदियों से काली पूजा के लिए काली हल्दी का इस्तेमाल किया जाता रहा है, यह पूजा काली देवी को समर्पित है और यह जड़ी बूटी का सामान्य नाम भी है।

हल्दी हर भारतीय घर में एक आम सामग्री है। यह न केवल खाना पकाने के लिए उपयोग की जाती है, बल्कि इसे इसके औषधीय लाभों के लिए भी जाना जाता है। चोट लगने से लेकर कई मौसमी बीमारियों से राहत पाने के लिए हल्दी का सेवन करने की सलाह दी जाती है। लेकिन अगर आप सोचते हैं कि हल्दी केवल पीले रंग की ही होती है, तो आप गलत है। आम पीले रंग की हल्दी के अलावा भी इसके कई रूप हैं। आज हम आपको हल्दी की ऐसी ही एक प्रजाति के बारे में बता रहे हैं, जिसे काली हल्दी कहा जाता है, लेकिन वह अंदर से नीले रंग की नजर आती है−

कुछ ऐसी नजर आती है काली हल्दी

काली हल्दी का पौधा एक बारहमासी जड़ी बूटी है जिसमें लाल रंग के बॉर्डर के साथ पीले पीले फूल होते हैं। इस जादुई हल्दी को भारत के पूर्वोत्तर और कुछ अन्य राज्यों में उगाया जाता है। काली हल्दी का वैज्ञानिक नाम करकुमा काशिया है और इसे ब्लैक ज़ेडेडरी के नाम से भी जाना जाता है। इस पौधे को आम हल्दी के पौधे के समान उगाया जाता है और काली हल्दी आमतौर पर मध्य सर्दियों में काटी जाती है। पीली हल्दी की तरह, काली हल्दी ताजा और पाउडर दोनों रूप में उपलब्ध होती है। आवश्यक तेलों की उपस्थित किे कारण इस प्रकंद की एक विशिष्ट मीठी गंध होती है। इस पौधे का मणिपुर और कुछ अन्य राज्यों में जनजातियों के लिए विशेष महत्व है, जहां पर राइजोम के पेस्ट को घावों के साथ−साथ सांप और बिच्छू के काटने पर भी लगाया जाता है।

सांस्कृतिक महत्ता नहीं है कम

काली हल्दी में औषधीय गुण तो मौजूद हैं ही, साथ ही इसकी सांस्कृतिक महत्ता भी कम नहीं है। भारत में सदियों से काली पूजा के लिए काली हल्दी का इस्तेमाल किया जाता रहा है, यह पूजा काली देवी को समर्पित है और यह जड़ी बूटी का सामान्य नाम भी है। इतना ही नहीं, काली हल्दी का उपयोग पूर्वोत्तर भारत में जनजातियों द्वारा बुरी आत्माओं को दूर भगाने के लिए किया जाता हैय जड़ के टुकड़ों को जेब या दवा की थैली में रखा जाता रहा है। वहीं, मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में भी काली हल्दी की जड़ को शुभ माना जाता है।

जानें न्यूटि्रशन वैल्यू

काली हल्दी में किसी भी पौधे की प्रजाति के करक्यूमिन की मात्रा सबसे अधिक होती है। यह एक शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट और एंटी−इंफलेमेटरी गुण हैं। गठिया, अस्थमा और मिर्गी के इलाज के लिए जड़ का उपयोग सदियों से औषधीय रूप से किया जाता रहा है। काली हल्दी की जड़ को कुचल दिया जाता है और बेचैनी को कम करने के लिए घाव और मोच पर लगाया जा सकता है या माथे पर लगाने से माइग्रेन के लक्षणों से राहत पाने में मदद मिलती है। चूंकि इसमें पावरफुल एंटी−ऑक्सिडेंट्स पाए जाते हैं, इसलिए यह कैंसर के उपचार के लिए बेहद प्रभावी है।

काली हल्दी के औषधीय उपयोग

इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रिसर्च इन फार्मेसी एंड केमिस्ट्री में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, काली हल्दी के कई उपयोग हैं। काली हल्दी प्रकंद या जड़ के सबसे लोकप्रिय उपयोगों में से एक इसे एक पेस्ट में कुचलने और गैस्टि्रक मुद्दों से पीडि़त किसी भी व्यक्ति को देने के लिए है। पेट में दर्द और पेचिश की समस्या होने पर यह एक जादू की तरह काम करती है। काली हल्दी पाउडर को पानी में मिलाकर सेवन करने से गैस्टि्रक संबंधी समस्याओं से राहत मिलती है। आम हल्दी की तरह, काली हल्दी को भी रक्तस्राव को नियंत्रित करने और घाव और सांप के काटने के मामलों में त्वरित उपचार के लिए इस्तेमाल किया जाता है। काली हल्दी सूजन वाले टॉन्सिल से भी राहत दिला सकती है। काली हल्दी में एंटीऑक्सीडेंट और एंटी−फंगल गुण पाए जाते हैं और यह शरीर में सूजन से लड़ने में मदद करती है, साथ ही यह संक्रमण को भी दूर रखती है।

महिलाओं के लिए भी है लाभदायक

हेल्थ एक्सपर्ट बताते हैं कि काली हल्दी महिलाओं के लिए अत्यधिक फायदेमंद मानी गई है क्योंकि यह मासिक धर्म को नियमित करने में मदद करती है। मूत्र संबंधी रोगों को ठीक करने के लिए भी इसे एक इंग्रीडिएंट के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

लुप्त होने के कगार पर है काली हल्दी

2016 तक, काली हल्दी को भारतीय कृषि विभाग द्वारा लुप्तप्राय प्रजातियों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। बंगाल की खाड़ी के साथ, मध्य पूर्वी तट पर, ओडिशा में काली हल्दी की रक्षा और संरक्षण के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।

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