विकास के आईने से कोसों दूर मुफलिसी की जिंदगी जीने को मजबूर नक्सल गढ़ के रहवासी
कोंडागांव। नक्सलगढ़ में हो रहे विकास के तमाम दावों के बीच नक्सलगढ़ में निवासरत आदिवासी अभावों के बीच मुफलिसी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं। जहां निवासरत आदिवासियों तक मात्र मतदान के दौरान ही जनप्रतिनिधियों की पहुंच होती है। हर बार मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के चुनावी वादे करते आ रहे हैं, लेकिन आज भी ग्रामीण सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। इलाके में वर्षों तक नक्सलियों की जनताना सरकार चलती थी। हाल के वर्षों में नक्सल समस्या उन्मूलन के लिए अर्धसैनिक बलों की उपस्थिति के बाद नक्सल घटनाओं में तो कमी आने लगी, लेकिन शासन प्रशासन की अनदेखी के चलते विकास कोसों दूर तक दिखाई नहीं देता। क्षेत्र में कार्य करने वाला प्रशासनिक अमला नक्सल क्षेत्र का भय बताकर अपने कार्य की अनदेखी करते आ रहा, आखिरकार इन गांवों में निवासरत आदिवासी मुफलिसी के बीच जिंदगी बिताने को मजबूर हैं।क्षेत्र में हो रहे विकास के दावे की हकीकत जानने नईदुनिया की टीम शनिवार को नक्सल गढ़ में स्थित ग्रामों के लिए निकली। जिला मुख्यालय कोंडागांव से महज 60 किलोमीटर दूर स्थित गांव कुधूर पहुंचने तक का सफर काफी चुनौती भरा था। जैसे ही हम मटवाल से आगे निकले सड़क की हालत देखकर मन में सैकड़ों सवाल उठने लगे। ग्रामीण उसी रास्ते से मर्दापाल बाजार में बेचने बांस से निर्मित सामग्रियों टोकरी सूप आदि लेकर कोई सायकल तो कोई पैदल ही आ रहे थे। हम भी उसी रास्ते में आगे बढ़ते गए घने जंगल और पहाड़ों के बीच से उबड़- खाबड़ कच्ची पगडंडी से गुजरते घंटों की सफर के बाद हम ग्राम कुधूर पहुंचे।घस्सु राम, सोनमती, अजंबर कश्यप, खेमवती, सोन सिंह, सखाराम कश्यप आदि धर्माबेड़ा व कुधूर के ग्रामीणों ने बताया मर्दापाल हमारा प्रमुख व्यवसाय केंद्र है। जहां स्वास्थ्य चिकित्सा से लेकर आवश्यकता की सामग्रियों की खरीदी करने हमें मर्दापाल जाना पड़ता है, लेकिन बीच में 20 से 22 किलोमीटर सड़क की हालत इतनी खराब है की मोटरसाइकिल भी मुश्किल से निकलता है। बारिश के दिनों में तो और भी परेशानी होती है। सड़क ना होने से गांव तक छोटी वाहाने भी नहीं पहुंचती पैदल ही ग्रामीणों को निकलना पड़ता है। सामान्य बीमारियों की दशा में गांव में स्थित स्वास्थ्य कर्मचारी तो उपचार करते हैं पर गंभीर बीमारी की अवस्था में मर्दापाल तक पहुंचाना हमें कठिनाई भरा होता है। सड़क पूरी तरह खराब है। स्थानीय विधायक चंदन कश्यप ने सड़क निर्माण की बात कही थी, लेकिन सड़क का निर्माण नहीं हो रहा। अपनी दर्द बयां करते कहते हैं सरकार किसी तरह हमारे गांव तक सड़क निर्माण करती तो बेहतर होता।
आखिरकार इन अंदरूनी गांवों में निवासरत आदिवासियों को मूलभूत आवश्यकताएं भी उपलब्ध नहीं हो पाती। सड़क के अभाव में कई बार समय पर चिकित्सालय ना पहुंचाने से रास्ते में ही मरीजों की मौत हो रही। विकास को तरसते आदिवासियों में नक्सलवाद के साथ सरकार के खिलाफ भी आक्रोश नजर आता है। हालात ऐसे की विकाश से कोशो दूर आदिवासी दो पाटों में पिसने को मजबूर हैं।
कुधूर सड़क निर्माणाधीन थी, पुलिस पार्टी पर हमले के बाद कार्य बंद है। सड़क निर्माण के लिए मैं प्रयासरत हूं। यदि विभाग चाहेगा तो सड़क निर्माण संभव है। पुलिस प्रोटेक्शन मिलते ही कार्य चालू हो जाएगा।