150 परिवार कर रहे सब्जी की खेती, पर नहीं मिला योजनाओं का लाभ
देवभोग। 20 गांव के 150 से भी ज्यादा परिवार अपने दम पर 200 एकड़ में 20 वर्षों से सब्जी की खेती करते आ रहे हैं, पर इन्हें उद्यानिकी की योजनाओं का लाभ नहीं मिला।
ब्लाक के सीनापाली, महुलकोट, करचिया, गोहेकेला, लदरा, निष्टिगुडा, बरकानी, कैंठपदर, घुरमगुड़ा, गाड़ाघाट, सितलीजोर, खुटगांव समेत 20 गांव ऐसे हैं जहां के छोटे किसान परंपरागत तरीके से सब्जी की खेती विगत 20 वर्षों से करते आ रहे हैं। इन्हें कभी सरकारी योजनाओ का लाभ नहीं मिला पर इनकी मेहनत का ही नतीजा होता है कि देवभोग के बाजारों बाहर के हाइब्रिड सब्जियों के बजाय सस्ती कीमतों पर देशी पद्घति से उत्पादित ताजी सब्जी यहां के लोगो को आसानी से उपलब्ध होती है। समय के साथ-साथ कुछ पढ़े लिखे व जागरूक लोगों ने भी सब्जी की खेती की ओर रुख किया है। ऐसे लोगो को प्रोत्साहित करने उद्यानिकी विभाग में सरकार द्वारा कई महत्वपूर्ण योजनाए संचालित हैं, पर विभाग की अनदेखी के चलते इन खेतिहरों को योजना के लाभ से वंचित होना पड़ रहा है। दो तीन साल पहले जिले से संचालित होने वाले इस विभाग ने ब्लाक स्तर पर एक कर्मी की तैनाती कर खानापूर्ति की है। जो सीमित लोग तक ही योजनाओं का लाभ पहुंचा सका है। खुद अफसर भी स्वीकार रहे हैं कि जिले भर में विभागीय सक्रियता के मामले में ब्लाक कमजोर है। गरियाबंद उद्यान विकास अधिकारी एचएल ध्रुव ने बताया कि विभाग द्वारा सचिवालय को ब्लाकों में आरएचईओ के रिक्त पदों पर नियुक्ति पत्र भेजता है, बावजूद पूर्ण भर्ती नहीं हुई। यही किसानों को बागवानी के लिए प्रेरित करते हैं और योजनाओं से भी जोड़ते हैं। नियुक्ति के लिए कृषि मंत्री रविंद्र चौबे से चर्चा हुई है। उन्होंने जल्द नियुक्ति का भरोसा दिलाया है। देवभोग में केवल एक आरएचईओ पदस्थ है।
दो भाई कमा रहे सालाना 15-16 लाख
करचिया निवासी चंद्रशेखर नायक व कंदर्प नायक दोनों भाइयों ने सब्जी उत्पादन में अपनी अलग छाप छोड़ी है। वे बताते हैं कि धान की पारंपरिक खेती छोड़कर उद्यानिकी फसल की शुरुआत 25 साल पहले पिता धनीराम ने जमीन बेचकर की थी। तब ना तो उद्यानिकी विभाग था और न ही लाभान्वित करने योजनाएं। खेत में प्रयोग कर-कर के सफल फसल लगाना सीखे। अनुभव इतना है कि उद्यानिकी अधिकारियों को भी गुरु मंत्र दे देते हैं। इसी जुनून के चलते आज सालाना आमदनी 15-16 लाख है। हालांकि अब विभाग द्वारा सरकारी योजनाओं से भी जुड़े हैं। जिससे टमाटर, बैगन, करेला, आदि फसलें लगीं हैं।