बातों बातों में, दबे पांव आ रहा कोरोना
रायपुर। कोरोना एक बार फिर पांव पसारने लगा है। अब बदले हुए स्वरूप में सामने आ रहा है। बदले स्ट्रेन ने चिकित्सकों के साथ ही विशेषज्ञों को भी हैरान कर दिया है। सतर्कता और सावधानी बेहद जरूरी है। अफसोस की बात यह है कि कोविड-19 को लेकर लोग बेपरवाह नजर आ रहे हैं। लाकडाउन के लंबे दौर से गुजरे देश और प्रदेशवासियों को एक बार फिर समझने की जरूरत है। लापरवाही हमें फिर अपना कदम पीछे करने मजबूर न कर दे। एक अदद मास्क की जरूरत सबको है। जब हम घर से निकलें तो चेहरे को अच्छी तरह मास्क से ढंक लें। सैनिटाइजर का इस्तेमाल करें और निश्चित दूरी रखें। हमें इतना ही तो करना है। संक्रमण के दौर में जब यह काम हम बेहद आसानी के साथ कर रहे थे तो अब क्यों नहीं। सावधानी में ही भविष्य सुरक्षित है। नए स्ट्रेन के खतरे से सतर्क रहने की जरूरत है।
कोविड-19 संक्रमण काल के दौरान छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने जिस तरह संवेदनशीलता दिखाई है वह काबिल-ए-तारीफ है। देश के साथ ही हमारा प्रदेश लाकडाउन के दौर से गुजर रहा था, कारखानों में तालाबंदी थी, सड़कों पर सन्न्ाटे के बीच दूसरे प्रांतों में पेट की भूख मिटाने गए श्रमवीरों की वापसी हो रही थी। वह दौर काफी भयावह था। सूनी और तपती सड़कों पर नंगे पांव चलते श्रमिक और स्वजन ही दिखाई देते थे। उस दौर में उच्च न्यायालय ने ई नेशनल लोक अदालत लगाई। जरूरतमंदों को आर्थिक मदद देकर न केवल राहत पहुंचाई वरन संक्रमण के दौर में पालक की भूमिका में नजर आया। एक और कस्र्णामयी पहल ने दिल जीत लिया है। हाई कोर्ट अब वृद्धजनों की लाठी बन गया है। स्वजनों से दूर रहने वाले वृद्धजनों को मिलाने की ठान ली है। ईश्वर करे यह अभियान सफल हो और वृद्धजनों के कदम आश्रम से घर की तर उठें।
काम के दम पर वापसी
देश के नक्शे पर स्वच्छता माडल के रूप में अंबिकापुर का नाम सुनहरे अक्षरांे में दर्ज हो गया है। शहर को इस मुकाम तक पहुंचाने में एक आइएएस और एक राज्य सेवा संवर्ग के अफसर की भूमिका खास रही। उस दौर में आइएएस अफसर की चर्चा भी जमकर हुई। तभी तो अंबिकापुर से सीधे मुंगेली पहुंच गईं। नए जिले की नई कलेक्टर के पद पर पदस्थापना हुई। तब मुंगेली जिले के नाम एक और कीर्तिमान बना था। कलेक्टर से लेकर पुलिस अधीक्षक, जिला पंचायत की सीईओ, एमडीएम सभी पद पर महिला अफसर काबिज थीं। महिला सशक्तीकरण का अनूठा उदाहरण पेश किया था। राज्य सेवा संवर्ग के अफसर सीधे राजधानी पहुंच गए थे। वहां से न्यायधानी पहुंचे। काम के दम पर यहां भी डंका बजा। बिलासपुर स्वच्छता रैंकिंग में टाप 20 में शामिल हो गया। न्यायधानी से फिर अंबिकापुर। लोगों की नजरें एकाएक सीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट पर जा टिकी है।
तिकड़ी के बीच फंसे अफसर
मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में उत्तर छत्तीसगढ़ समृद्ध तो है साथ ही प्रदेश की राजनीति में अलग दबदबा भी बना हुआ है। तीन दिग्गज नेता सत्ता के गलियारे में अपना प्रभाव छोड़ रहे हैं। प्रभामंडल ऐसा कि तीनों बेहद प्रभावशाली। एक की दरबार लगती है तो दो सीएम से सीधे ताल्लुक रखते हैं। उत्तर छत्तीसगढ़ की राजनीति में तीनों की बराबरी की दखल है। हस्तक्षेप ऐसा कि अफसराें को हां कहते नहीं बन रहा और न ही मना करते। एक को मनाऊं तो दूजा रूठ जाता है वाली कहावत अफसरों पर लागू हो रही है। जो रूठ जा रहे हैं उन्हें मनाने में अफसरों को क्या-क्या जतन नहीं करना पड़ रहा है। दरबार की सुन रहे हैं तो भैया लोगों के कोपभाजन का शिकार होना पड़ रहा है। भैया लोगों की सुन रहे हैं तो दरबार में हाजिरी लगाते-लगाते समय गुजर जा रहा है। फाइल सरक रही न काम हो रहा।