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छत्तीसगढ़ में ऐसे 18 गांव, जहां कोरोना नहीं पसार सका पांव, आदिवासियों से सीखें बेहतर जीवन प्रबंधन

बिलासपुर। संक्रमणकाल में जहां कोरोना तेजी से गांवों में पैर पसार रहा है, वहीं छत्तीसगढ़ के गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले के 18 आदिवासी बहुल गांव ने अनूठी मिसाल पेश की है। बेहतर जीवन प्रबंधन व कड़े अनुशासन के कारण इन गांव में कोरोना पहुंच नहीं सका है।

कोरोना की दूसरी लहर जैसे ही शुरू हुई ग्रामीणों ने अपने आपको गांव तक सीमित कर लिया। शहरी संपर्क तो दूर हाट बाजार भी जाना छोड़ दिया। ग्राम पंचायतों द्वारा बाहरी लोगों के गांव में प्रवेश पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया। इसकी शुरुआत ग्राम पंचायत ठाड़पथरा से हुई। पंचायत प्रतिनिधियों ने गांव के अलावा आसपास के किसानों से सब्जी खरीदना शुरू किया। जरूरत के मुताबिक ग्रामीणों को मुफ्त में हरी सब्जियों का वितरण करने लगे। इसके पीछे उद्देश्य सभी की इम्युनिटी बढ़ाना और कोरोना के खिलाफ सामूहिक लड़ाई का संदेश देना था। इसमें सफल होने के बाद पंचायत ने रोजमर्रा के सामान की आपूर्ति के लिए ग्रामीणों से सूची मांगनी शुरू की। जब ग्रामीणों से सामान की सूची मिल गई तब बाजार से खरीदकर लाना और लोगों के घरों तक पहुंचाने का काम शुरू किया गया। घर पहुंच सेवा मुफ्त में देने लगे। जिस सामान की आपूर्ति की जाती है, उसका बिल भी दिया जाता है। ठाड़पथरा से शुरू हुआ यह प्रयोग आसपास की 17 पंचायतों ने भी अपना लिया है।

इन गांवों में कोरोना को नो एंट्री

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले की कलेक्टर नम्रता गांधी ने बताया कि ठाड़पथरा, पंडरीपानी, पड़वनिया, साल्हेघोरी, ठेंगाडांड, बराउर, बारवसान, डरमोहाली, दराई, गुमाटोला, करहनी, खंता, मदवाही, मझगंवा, मसुरीखारी, पथर्रा, पीपरडोल व साल्हेकोटा में अब तक कोरोना का एक भी मामला सामने नहीं आया है। जिले के करीब 100 गांवों में मात्र पांच-पांच पाजिटिव मरीज मिले हैं। चार गांवों में एक-एक ग्रामीण संक्रमित हुए हैं। कलेक्टर ने बताया कि अधिकारी लगातार इनके संपर्क में हैं। जरूरत की सामग्री का वितरण किया जा रहा है।

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