खंडवा। बॉलीवुड के हरफनमौला कलाकार किशोर कुमार भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं. उनके गाये हुए सदाबहार नगमें आज भी हम सबके के दिलों में राज करते हैं, लेकिन खण्डवा में जिस घर मे किशोर कुमार का बचपन बीता है, उनका पुश्तैनी मकान इस वक्त बेहद जर्जर अवस्था में है, जो किसी भी समय ढह सकता है.
बता देंं कि किशोर कुमार का जन्म मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में हुआ था, लेकिन खंडवा में जिस घर में उनका जन्म हुआ था, जिसमें वे पले-बढ़े थे आज वह घर खंडहर में तब्दील हो गया है. बॉलीवुड के एक ऐसे सितारे का महल है जिसके सितारे कभी गर्दिश में नहीं रहे. बॉलीवुड के बादशाह कहे जाने वाले किशोर कुमार का पुश्तैनी मकान है, जहां किशोर कुमार का बचपन गुजरा, जहां वे अपने दोस्तों के साथ खेलते, घूमते फिरते थे, पढ़ाई करते थे. इस घर के अंदर रखा सामान मानो आज भी उनकी प्रतीक्षा कर रहा है. हालांकि कुछ दिन पहले उनके पुश्तैनी मकान के बिकने की खबर आई थी. लेकिन अमित कुमार ने समाचार पत्रों में नोटिस देकर इस पर विराम लगा दिया. उनके प्रशंसक आज भी इस मकान में किशोर कुमार को तलाशते हैं. पिछले 30 सालों से यह मकान एक चौकीदार के जिम्मे है. उनके प्रशंसक इस मकान को एक स्मारक के रूप में देखना चाहते हैं, और सरकार से मांग कर रहे है कि इस मकान को स्मारक बना दिया जाए. लेकिन आलम कुछ और ही है.
8 बार फिल्म फेयर अवार्ड विजेता
बता दें कि 4 अगस्त 1929 को मध्य प्रदेश के छोटे से शहर खंडवा में एक बंगाली परिवार में जन्मे किशोर कुमार के बचपन का नाम तो आभास कुमार गांगुली रखा गया था, लेकिन इस बात का किसी को आभास नहीं था कि एक दिन यही आभाष अपनी गायकी और अदाकारी के बल पर बॉलीवुड पर राज करेगा.. किशोर कुमार ने 16 हजार फ़िल्मी गाने गाए और 8 बार फ़िल्म फेयर अवार्ड मिला. किशोर कुमार के फिल्मी करियर की शुरुआत एक अभिनेता के रूप में वर्ष 1946 में फिल्म ‘शिकारी’ से हुई. किशोर कुमार 1970 से 1987 के बीच सबसे महंगे गायक थे. किशोर कुमार ने अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, जीतेन्द्र जैसे बड़े-बड़े दिग्गज कलाकारों के लिए आवाज दी.
एक समय बाद खंडवा में ही रहना चाहते थे
किशोर कुमार को खंडवा से बड़ा लगाव था. वह जब भी खंडवा आते थे अपने दोस्तों के साथ शहर की गलियों-चौपालों पर गप्पे लड़ाना नहीं भूलते थे. उन्हें जलेबी खाने का बड़ा शौक था. वह अक्सर अपने मुंबई वाले दोस्तों से कहते थे दूध जलेबी खाएंगे खंडवा में ही बस जाएंगे. बॉलीवुड में एक ऐसा दौर भी आया जब किशोर कुमार यहां की चकाचौंध से दूर अपने गृह नगर खंडवा में बस जाना चाहते थे. खंडवा में पिछले 30 सालों से उनके घर की देखभाल करने वाले चौकीदार सीताराम का कहना है की 1987 में किशोर कुमार आखिरी बार खंडवा आये थे और उन्होंने उनसे अपने घर की साफ़ सफाई अच्छी तरह से करने को कहा था ताकि इस बार मुंबई में नहीं खंडवा में दीपावली मनाई जा सके, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था. 13 अक्तूबर1987 को किशोर कुमार का देहांत हो गया.
घर को स्मारक बनाने की मांग
गौरतलब है कि राज्य सरकार हर साल किशोर कुमार की पूण्य तिथि 13 अक्टूबर को फिल्म उद्योग से जुड़े ख्याति प्राप्त व्यक्ति को राष्ट्रीय किशोर सम्मान देती है. खंडवा स्थित किशोर कुमार की समाधि पर देश ही नहीं विदेश से हजारों की संख्या में किशोर प्रेमी यह आते हैं. किशोर दा की समाधि पर माथा टेकते हैं, दूध जलेबी का भोग लगाकर गीतों से किशोर दा को श्रद्धांजलि देते हैं. ऐसे में जब किशोर प्रेमी किशोर दा की बचपन की यादें देखने उनके घर आते हैं, तो उनका दिल इस खंडहर जैसे मकान को देखकर टूट जाता है. लोगों की मांग है कि सरकार किशोर कुमार के परिवार से बात कर इसे स्मारक बनाया जाना चाहिए, जिसका लोगों को इंतजार है.