आजाद देश में आज से 46 साल पहले आधी रात को 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दिया था. उस काली रात को लोग आज भी नहीं भूले हैं. रात करीब 11.30 बजे इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी की घोषणा कर दी. अगली सुबह 26 जून को इंदिरा ने रेडियो पर कहा,’ ‘भाइयो और बहनो, राष्ट्रपतिजी ने आपातकाल की घोषणा की है. इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है, जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील कदम उठाए हैं, तभी से मेरे खिलाफ गहरी साजिश रची जा रही थी.’
इंदिरा गांधी 1971 के आम चुनाव में ‘गरीबी हटाओ’ के नारे के साथ प्रचंड बहुमत (518 में से 352 सीटें) के साथ सत्ता में आई. इंदिरा गांधी की जीत पर सवाल उठाते हुए उनके चुनावी प्रतिद्वंद्वी राजनारायण ने 1971 में अदालत का दरवाजा खटखटाया. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर इंदिरा गांधी के सामने रायबरेली लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने वाले राजनारायण ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया है. 12 जून को इलाहाबाद हाईकोर्ट में इंदिरा गांधी के खिलाफ रायबरेली लोकसभा चुनावों में अनियमितताओं के मामले चुनाव को निरस्त कर दिया गया. इस फैसले से आक्रोशित होकर ही इंदिरा गांधी ने इमर्जेंसी लगाने का फैसला लिया. तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन ‘आंतरिक अशांति’ के तहत देश में आपातकाल की घोषणा कर दी.
26 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977 तक की 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल था. स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह अब तक का सबसे विवादित दौर माना जाता है. आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए थे. आपातकाल में लोगों के मूल अधिकार ही निलंबित नहीं किए गए, बल्कि उन्हें जीवन के अधिकार से भी वंचित कर दिया गया. अभिव्यक्ति की आजादी पर ताला लग गया. प्रेस को सरकार पूरी तरह से नियंत्रित कर लिया. हर खबरें सरकार के अनुसार छपने लगी. आपातकाल की अवमानना करने वाले आंदोलनकारियों और पत्रकारों को जेल में डाले गए. हर अखबार में सेंसर अधिकारी बैठा दिया, उसकी अनुमति के बाद ही कोई समाचार छप सकता था. सरकार विरोधी समाचार छापने पर गिरफ्तारी हो सकती थी. यह सब तब थम सका, जब 23 जनवरी, 1977 को मार्च महीने में चुनाव की घोषणा हो गई.