छत्तीसगढ़

सफलता की कहानी आशा एक उम्मीद की किरण संस्था ने महिलाओं की बदली जीवनधारा

कोंडागांव। जिला प्रशासन द्वारा लाईवलीहुड कॉलेज के सौजन्य से संचालित ‘आशा एक उम्मीद की किरण‘ महिला सशक्तिकरण संस्थान ने अपने नाम के अनुरूप उन घरेलु महिलाओं के जीवन को रौशन किया है, जिनकी सीमाएं सिर्फ चुल्हे-चौके तक ही सीमित थी। ये वही महिलाएं हैं जो घर दहलीज को पार कर कुछ नया करने के लिए उत्सुक थीं, परंतु चाह कर भी उनके लिये अवसर उपलब्ध नहीं हो पा रहे थे। अब यही संस्था इन महिलाओं को सिलाई कार्य में प्रशिक्षित कर स्वरोजगार हेतु प्रोत्साहित कर रही है। संस्था का उद्देश्य न केवल इनको प्रशिक्षित करना है बल्कि उन्हें अपने स्तर पर लघु उद्यम स्थापित करने में भी मदद करती है।

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रियोजना से जुड़ी प्रशिक्षक श्रीमती वेदिका पाण्डे ने इस संबंध में बताया कि वर्तमान में इस प्रोजेक्ट से 150 महिलाएं जुड़ी हुई हैं। इनमें जिला मुख्यालय के अलावा आस-पास के गांव-देहात की महिलाएं भी पूरे उत्साह से अपने इस नये कार्य को सफलतापूर्वक अंजाम दे रहीं हैं। उन्होंने आगे बताया कि इस प्रोजेक्ट के माध्यम से उन्हें सिलाई से संबंधित समस्त कार्य जैसे कपड़े की कटाई, सिलाई, धागे, बटन की समस्त बारीकियां सिखाई जाती है।

इनमें आंगनबाड़ी से लेकर स्कूली बच्चों के गणवेश, महिलाओं के कपड़े जैसे सलवार कमीज, ब्लाउज, एप्रन आदि बनाना भी सिखाया जाता है और तो और इनकी आपूर्ति शासकीय, गैर शासकीय विभागों में भी की जाती है। इनमें शिक्षा विभाग, आदिम जाति विकास विभाग प्रमुख हैं। हाल ही में महिला बाल विकास विभाग द्वारा भी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के कपड़े सिलाई के भी ऑर्डर दिये गये हैं। इसके अलावा कोरोना काल में भी मास्क निर्माण का कार्य भी महिलाओं द्वारा किया गया साथ ही अगर कोई महिला निजी तौर पर अपने घर में ही सिलाई करना चाहती है, तो उन्हें भी बतौर लोन पर सिलाई मशीन उपलब्ध कराया जाता है। उक्त प्रशिक्षण केन्द्र में विकासखण्ड विश्रामपुरी के ग्राम बांसकोट निवासी श्रीमती आरती मरकाम ने बताया कि वे बारहवीं कक्षा तक ही पढ़ पाई थीं। परंतु कुछ अतिरिक्त आय करने की इच्छा ने उन्हें सिलाई प्रशिक्षण हेतु प्रेरित किया।

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चूंकि उनके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। अतः उनके लिये यह प्रशिक्षण काफी लाभप्रद रहा और वे अब कपड़े की कटिंग से लेकर सिलाई तक का पूरा कार्य सिख चुकी हैं। इसी प्रकार कोण्डागांव मुख्यालय में ही निवासी एक अन्य महिला श्रीमती अर्चना शर्मा का कहना था कि रोजगारी पारा में उनके पति की छोटी सी फैंसी की दुकान है, परंतु अतिरिक्त आमदनी की आस में यहां से ट्रेनिंग लेकर अपना एक कपड़े सिलाई की दुकान खोलना चाहती हैं। इसके अलावा संस्थान में कार्यरत् अन्य महिलाएं ममता झा, जयमनी देवांगन, इंद्रा देवांगन, सुब्बी मरकाम, पुष्पलता देवांगन ने भी अपने विचारों को व्यक्त करते हुए बताया कि कपड़ों की सिलाई को वे हमेशा एक व्यवसाय के रूप में अपनाना चाहती थीं, परंतु इस हुनर में पारंगत के न होने तथा सहीं एवं व्यवस्थित प्रशिक्षण के अभाव के चलते यह संभव नहीं हो पा रहा था।

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परंतु अब ‘आशा एक उम्मीद की किरण‘ संस्थान से जुड़ने एवं यहां प्रशिक्षित होने से अब वे पूरे आत्मविश्वास के साथ इसे व्यवसाय के रूप में अपना चुकी हैं और इसके लिए उन्होंने जिला प्रशासन को साधुवाद भी दिया। इस प्रकार यह तर्कसम्मत ही है कि सकारात्मक सोच से आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। महिलाओं के लिये घर परिवार के साथ-साथ इस नये कार्य को लेकर शुरूवाती कुछ मुश्किलें आ सकती है और परिश्रम भी है लेकिन महिलाएं अगर ठान लें तो आने वाली रूकावट अंततः छोटी पड़ जाती है। नारी सशक्तिकरण का सबसे बड़ा संदेश भी यही तो है। ठेठ गृहिणी से स्वरोजगार हासिल करने का सफर तय करती इन महिलाओं का संदेश उनके जैसी अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणादायक है।

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