लघु वनोपज उत्पादन में दक्षिण कोण्डागांव वनमण्डल प्रदेश में अव्वल
जिले में लघु वनोपजों की लक्ष्य से अधिक हुई खरीदी
कोंडागांव। वनों की गोद में बसे कोण्डागांव जिले में 90 प्रतिशत से अधिक आबादी वनांचलों में निवास करती है। जहां वनों की सघनता एवं पर्वतीय स्थल संरचना के कारण यहां मैदानी क्षेत्रों की तरह फसलों की कृषि संभव नहीं हो पाती है। ऐसे में ग्रामीणों को वनो से प्राप्त होने वाले वन उत्पादों के द्वारा जीवन यापन करते हैं। इन वनों से प्राप्त होने वाले वनोत्पादों का इनके सांस्कृतिक एवं सामान्य दिनचर्या में व्यापक महत्व होने के साथ यह इन्हें रोजगार का साधन भी प्राप्त कराते हैं। जिसके कारण जिले में बहुतायत मात्रा में वनोत्पादों का उत्पादन किया जाता है। इन वनोत्पादों का संग्रहण जिला वनोपज सहकारी यूनियन मर्यादित, दक्षिण कोण्डागांव वनमण्डल के माध्यम से किया जा रहा है।
वर्ष 2020-21 में 51537 क्विंटल लघु वनोपज की हुई खरीदी
कोण्डागांव में वनोत्पादों की प्रचुरता को देखते हुए शासन द्वारा 13 प्राथमिक लघु वनोपज समितियों के अधीन 155 ग्रामस्तर समूह तथा 31 हाट-बाजार स्तरों पर वनोपजों के संग्रहण का कार्य स्व-सहायता समूहों के माध्यम से कराया जा रहा है। इन समूहों द्वारा वर्ष 2019-20 में 21.45 करोड़ की लागत के कुल 101260 क्विंटल लघु वनोपजों का संग्रहण किया था, जबकि लक्ष्य 56500 क्विंटल का ही रखा गया था। वर्ष 2019-20 में सामान्य परिस्थितियों के साथ जिले के संग्राहकों द्वारा उच्चतम लक्ष्य की प्राप्ति की गई। इस दौरान 61609 संग्राहकों द्वारा लघु वनोपज संग्रहण का कार्य किया था, वहीं 2020-21 में 51537 क्विंटल वनोपज की खरीदी की गई। वर्ष 2019-20 एवं 2020-21 दोनों ही वर्षों में दक्षिण कोण्डागांव वनमण्डल लघु वनोपज उत्पादन एवं संग्रहण में प्रथम स्थान पर रहा।
कोरोना लॉकडाउन में लघु वनोत्पादों से ग्रामीणों को आर्थिक सहायता
वर्ष 2020-21 के शुरूवात में ही कोरोना संक्रमण का देशव्यापी प्रसार होने लगा। जिससे सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई थी। इस दौरान ग्रामीण रोजगार के सभी साधन बंद हो चुके थे। यह ऐसा दौर था जहां छोटे-बड़े सभी व्यवसाय बंद हो गये थे, ऐसे में इन पर आश्रित ग्रामीण एवं नगरों में जाकर व्यवसाय करने वाले युवा भी गांव में अपने घरों की ओर लौट गये थे। जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर ही सारा भार आ गया था। किसी जमाने में आर्थिक रूप से स्वावलंबी होने वाले गांव मदद हेतु नगरों की ओर ताक रहे थे। परंतु कोरोना के कारण लगे लंबे लॉकडाउन में उनके सारे व्यवसाय छिन गये थे, ऐसे में राज्य शासन द्वारा 52 प्रकार लघु वनोपजों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी द्वारा इन्हें रोजगार प्राप्ति का अवसर मिला।
महिला समूहों को संग्रहण से मिला लाभ
ग्रामीण लॉकडाउन के दौरान गांव के आस-पास वनों में जाकर वनोत्पाद संग्रहण कार्य कर इन्हें नजदीकी वनोपज समितियों में जाकर बेचने लगे। जिससे उन्हें बाजार में व्यापारियों द्वारा औने-पौने दामों पर लघु वनोपज बेचने से राहत मिली साथ ही उन्हें अपने उत्पादों का सहीं मूल्य प्राप्त हुआ। इस दौरान जिले के 40738 संग्राहकों द्वारा 51537 क्विंटल वनोपज का संग्रहण किया गया। जिनके द्वारा उन्हें 16 करोड़ रूपयों का भुगतान प्राप्त हुआ। वनोपजों के एमएसपी पर लिये जाने से न केवल संग्राहकों अपितु वन समितियों में कार्यरत् महिला समूहों को भी रोजगार प्राप्त हुआ। वर्ष 2019-20 एवं 2020-21 को मिलाकर वनमण्डल द्वारा संग्राहकों को कुल 37.45 करोड़ रूपयों का भुगतान किया गया। कोरोना काल में बैंकों के बंद होने पर समूहों को विभाग द्वारा भुगतान हेतु नगद राशि प्रदान की गई थी। जिससे ग्रामीणों को सीधा लाभ प्राप्त हुआ।
इस दौरान विभाग द्वारा ईमली खरीदी का लक्ष्य 02 हजार क्विंटल तय किया गया था, जबकि संग्राहकों द्वारा 34500 क्विंटल ईमली का संग्रहण किया गया। इसके अलावा 23000 क्विंटल आटी ईमली का ग्राहकों द्वारा 34500 क्विंटल ईमली का संग्रहण किया गया। इसके अलावा 23000 क्विंटल आटी ईमली का प्रसंस्करण (डी-सिडिंग) कर फूल ईमली स्व-सहायता समूह की महिलाओं द्वारा तैयार किया गया। जिसके लिये विभाग द्वारा समूहों को अतिरिक्त भुगतान भी किया गया। इस प्रकार लघु वनोपजों की शासन द्वारा एमएसपी पर खरीदी से प्राप्त आय के माध्यम से महामारी के दौर में भी जिले की ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुदृढ़ रूप से सशक्त होकर सभी समस्याओं का सामना करते हुए संकट काल में भी समृद्ध होती रही एवं वनवासियों के चेहरों मुस्कान कभी फिकी नहीं पड़ी।