भालू के हमले से मेरे पैर नहीं मेरा पूरा जीवन हो गया खत्म, 8 वर्ष बाद भी नहीं मिला विकलांगता प्रमाण पत्र
सच्ची घटना पर आधरित
कोंडागांव। अतिसंवेदनशील इलाके ग्राम पंचायत कड़ेनार का आश्रित ग्राम नेडवाल में रहने वाले एक आदिवासी व्यक्ति की दुःख भारी दस्ता हैं । आदिवासी व्यक्ति नंगलु राम ने बताया कि एक समय में दोनों पैरों से चलते फिरते दौड़त हुए काम करता था। आज मैं लकड़ी के सहारे की चल पाता हूं। नंगलु राम कहते हैं कि 8 वर्ष पूर्व में खाना बनाने के लिए जंगल में लकड़ी के लिए गया हुआ था। घर से निकलते समय मेरे साथ मेरा पालतू कुत्ता था। घर से एक से दो किलोमीटर दूर जंगल में सुखी लकड़ियां काट कर व जमा कर व लकड़ी का गढ्ढा बांध कर घर की ओर आ रहा कि अचानक पीछे से जंगली भालू ने हमला कर करते हुए मेरे पैर को पकड़ लिया। जंगली भालू से अपने आप को छोड़ने की कोशिश करता रहा। भालू ने मेरे पैर को अपने मुंह से दबा रखा था, बचाने के लिए जोर जोर से चीखने व चिलाने के बाद भी मेरी आवाज इस जंगल में ही दब कर रह गई । उस दौरान मेरे साथ मेरे पालतू कुत्ता भी भालू को भोक रहा था ओर मुझे छुड़वाने की कोशिश कर रहा थ। भालू मेरे पैरों को छोड़ने को तैयार नही । मैं भी अपने आप को भालू से अपने पैर को छुड़वाने के लिए लगातार भालू को लकड़ी से वार पर वार करता रहा, मेरे पालतू कुत्ता भी भालू पर हमला कर दिया । मेरे द्वारा भालू को लड़की से वार से वार व कुत्ते के द्वारा भालू को काटने पर भालू ने मेरे पैर को छोड़कर भालू जंगल की ओर चला गया। दर्द से ओर डर के मारे अंदर ही अंदर कपकपा रहा था। खून से लतपथ होने के बाद भी लकड़ी के सहारे एक पैर पर चलते-चलते देर शाम को घर पहुंचा।
शाम को अंधेरा होने के चलते उस रात अस्पतल नही गया। घर वालों व पड़ोसियों के द्वारा जड़ी बूटी से मेरे पैर के जख्म में मलमपट्टी की गई। दर्द कम नही होने के चलते मुझे घर के सदस्य ने थोड़ा सा महुआ शराब का सेवन कर दिया जिससे मुझे रात में नींद आ गई। दूसरे दिन सुबह परिवार के लोग कोंडागांव अस्पताल लेकर आए जहां पर मेरे पैर का इलाज किया गया। कुछ महीनों में पैर का जख्म तो भर गया पर एक पैर को हमेशा के लिए खो दिया । अब बस लकड़ी के सहारे ही चल पाता हूं। पैर खोने के बाद से अपने परिवार की भरण पोषण भी नही कर पा रहा हूँ, ना ही खुद का जीवन यापन करने के लिए कोई काम कर पा रहा हूँ। नंगलु राम कहते हैं की मुझे किसी व्यक्ति ने बताया कि अस्पताल जाकर विकलांगता प्रमाण पत्र बना लो तो सरकार के द्वारा जीवन यापन के लिए पेंशन मिल जाएगा। मै अपने परिवार के साथ कोंडागांव अस्पताल गया, डॉक्टर नही होने के कारण मुझे कल आने को बोला गया। नंगलु राम कहते हैं की कई हप्ते अस्पताल के चक्कर काटता रहा। मुझे अस्पताल ले जाने वाले लोग भी थक गए और बोलने लगे कि 50 किलोमीटर कोंडागांव ले जाने से मना कर दिए ।मैंने फिर कभी अस्पताल जाने के लिए किसी को नही बोला जिसके चलते मुझे विकलांगता प्रमाण पत्र नही बन पाया।
पुरानी बातें याद कर रोते हैं
नंगलु राम पुरानी बातें को याद कर रोते है ओर कहते है कि उस दिन जंगल मे लकड़ी लेने नही जाता तो शायद आज मेरे यह हालात नही होती । रोते रोते नंगलु राम कहते हैं कि जंगल में भालू के हमले से मेरे पैर नही गए,मेरा पूरा जीवन ही खत्म हो गया है, कास में भालू के हमले से मर जाता तो अच्छा होता। मर जाता तो परिवार को आर्थिक सहायत तो सरकार देती। अब तो में लगभग अधेड़ उम्र में अपने परिवार वालो का भरण पोषण कैसे करूँ मैं अपना ही पेट भरने के लिए परिवार के भरोसे पर बैठा हूँ।
सरकार की योजनाओं पर बात उठना लाजिमी हैं
जहां सरकार अंतिम व्यक्ति तक जाकर सरकारी योजनाओं का पहुंचने की बात करती है पर नंगलु राम की बात सुनकर यह साबित हो जाता है कि सरकार की योजनाएं बस दिखावा हैं। वही नंगलु राम जब बार विकलांगता प्रमाण पत्र बनाने अस्पताल पहुंचता था तो आज कल का बहाना बनाकर कर उस आदिवासी अपाहिज की बार बार आने को कहा जाता था। जबकि डॉक्टर को धरती का भगवान का दर्जा दिया गया हैं। अब तो डॉक्टर जन सेवा तो नहीं बस अपनी सेवा करने में लगे हैं।