कोंडागांव। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी जिला परिषद कोंडागांव की ओर से जिला सचिव व राज्य परिषद सदस्य तिलक पाण्डे ने बस्तर संभाग की मुल जातियों को आदिवासियों के समान अधिकार मिलने के सम्बन्ध में प्रेस विज्ञप्ति जारी कर लेख किया है कि बस्तर संभाग में आदिकाल से कलार, मरार (पनारा), महारा, स्थानीय धाकड़, राऊत, कोष्टा, तेली, सुण्डी, कुम्हार, केंवट, घड़वा (घसिया), गाण्डा, पनका, लुहार, बंजारा, धोबी, नाई आदि बस्तर की मूल जातियां निवास कर रही हैं। बस्तर में गोण्ड, मुरिया, हल्बा अथवा भतरा आदि जातियां, इन सभी जातियों से भी अवश्य पुरानी होंगी, परन्तु ये जातियां भी मूल रुप से बस्तर की ही जातियां है, उनके कहीं बाहर से आकर यहां बसने का कोई इतिहास नहीं मिलता। गोण्ड, मुरिया, हल्बा अथवा भतरा जनजाति के सामाजिक व धार्मिक कर्मों से इन जातियों का संबंध काफी पुराना है। मानवीय और दैविक कार्यक्रम जन्म संस्कार, विवाह संस्कार, मृत्यु संस्कार के अलावा देव जात्रा, पुजा विधि, मेले मड़ई, तीज त्योहार आदि सामाजिक, धार्मिक समारोह में इन जातियों की विशिष्ट भूमिका होती है। बस्तर की मुल संस्कृति का निर्वहन इन जातियों के योगदान के बिना अधुरा माना जाता हैं। बस्तर में अनुसूचित जनजाति के अन्तर्गत शामिल जातियों को इन मुल जातियों को अनुसूचित जनजाति वर्ग में शामिल करने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। गाण्डा जाति के बाजा मोहरी के बिना देवी पुजा व विवाह संस्कार, लुहार के बिना किसान का हल, कुम्हार के बनाये हण्डी, घड़वा (घसिया) जाति द्वारा निर्मित कांसे की मुर्तियां, मरार (पनारा) जातियों के सहयोग के बिना विवाह संस्कार, नाई के बिना जन्म व मृत्यु संस्कार, राऊत व धाकड़ जातियों के सहयोग के बिना पशुओं की रखवाली, कलार जाति के मदीरा के बिना दैविय परम्परा का निर्वहन, बंजारा जाति के नमक व मुद्रा, तेली का तेल, कोष्टा जाति का पहनने के कपड़े के बिना बस्तर के विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। फिर भी इन मुल जातियों को अनुसुचित जनजाति वर्ग में शामिल नहीं किया गया है। पारधी बांस का काम करता है। पठारी चुड़ियों का व्यवसाय करता है, ओझा डमरु बजाता है, इन जातियों को अनुसुचित जनजाति के अन्तर्गत रखा गया है। बस्तर में निवासरत सभी जातियां जैसे कलार, मरार (पनारा), महारा, स्थानीय धाकड़, राऊत, कोष्टा, तेली, सुण्डी, कुम्हार, केंवट, घड़वा (घसिया) गाण्डा, पनका, लुहार, बंजारा, धोबी, नाई गोण्ड, मुरिया, हल्बा अथवा भतरा पारधी ओझा आदि अनेक जातियों के खान-पान रहन सहन, सामाजिक धार्मिक संस्कार एक जैसे हैं व इन जातियों के आपसी सहयोग के बिना बस्तर विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। बस्तर के विकास के लिए कलार, मरार(पनारा), महारा, स्थानीय धाकड़, राऊत, कोष्टा, तेली, सुण्डी, कुम्हार, केंवट, घड़वा (घसिया), गाण्डा, पनका, लुहार, बंजारा, धोबी, नाई आदि जातियों को अनुसुचित जनजाति वर्ग में शामिल किये जाने हेतु भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी द्वारा लगातार जनजागरण अभियान चलाया जा रहा है, ताकि बस्तर संभाग की इन सभी जातियों को एक मंच पर लाकर भारतीय संविधान में दिये गये प्रावधान को बस्तर में लागु कराया जा सके।