छत्तीसगढ़

बस्तर दशहरा समिति ने लिया पौधरोपण हेतु महत्त्वपूर्ण निर्णय



कोंडागांव/जगदलपुर। पत्रिका लुक

बस्तर दशहरा पूजा विधानों में पौधरोपण रस्म (बूटा रोपतोर रूसुम) को भी शामिल कर लिया गया है। प्रतिवर्ष हरियाली अमावस्या के दिन पाटजात्रा पूजा विधान के तत्काल बाद यह रस्म पूरी की जाएगी। इस दिन ही बस्तर दशहरा के लिए काटे जाने वाले पेड़ों के बदले क्षतिपूर्ति पौधरोपण किया जाएगा। बस्तर दशहरा लगभग 610 वर्षों से मनाया जा रहा है। दशहरा इतिहास के अनुसार एक बार 16 पहियों वाला रथ, दो सौ वर्षों तक 12 पहियों वाला तथा 410 वर्षों से चार पहियों वाला फुल रथ तथा आठ पहियों वाला विजय रथ बनाया जा रहा है। इन रथों के निर्माण के लिए प्रतिवर्ष 54 घन मीटर लकड़ी की आवश्यकता होती है। इसके लिए 240 पेड़ों की कटाई होती है किन्तु जगन्नाथ पुरी की तरह यहां क्षतिपूर्ति पौधरोपण नहीं किया गया इसलिए बस्तर में भी यह परम्परा शुरू करने की मांग चार साल से लगातर उठ रही थी। शनिवार को माचकोट वन परिक्षेत्र अंर्तगत बोदामुंडा में क्षतिपूर्ति पौधरोपण किया जा रहा था। तब वहां बस्तर दशहरा समिति की पूरी टीम मौजूद थी। इस अवसर पर छग राज्य संस्कृति और पुरातत्त्व समिति के सदस्य हेमंत कश्यप और जगदलपुर वन वृत्त के मुख्य वन संरक्षक मो. शाहिद ने समिति के सामने यह सुझाव रखा कि दशहरा निपटने के बाद पौधारोपण उचित नहीं है चूंकि इन दिनों बारिश समाप्ति की ओर होती है। बेहतर होगा कि 75 दिन पहले जब हरियाली अमावस्या के दिन दशहरा की पहली रस्म पाटजात्रा सम्पन्न होती है। उस दिन क्षतिपूर्ति पौधरोपण कर दिया जाए तो रोपित पौधों के लिए बेहतर होगा। इस सुझाव को दशहरा समिति ने गंभीरता से लिया और सर्वसम्मति से तत्काल निर्णय लिया गया कि प्रारंभिक बारिश में पौधरोपण करना उपर्युक्त होगा। समिति के अध्यक्ष सांसद दीपक बैज ने घोषणा करते कहा कि व्यवहारिक रुप से भी यह सुझाव पौधरोपण हेतु बेहतर है। हरियाली अमावस्या के दिन पाटजात्रा पूजा विधान संपन्न होने के तत्काल बाद वन विभाग द्वारा चिन्हित भूमि पर साल और बीजा का क्षतिपूर्ति पौधरोपण अनिवार्य रुप से कर दिया जाएगा। बूटा रोपतोर रूसुम (पौधरोपण रस्म) अब बस्तर दशहरा पूजा विधान के तहत नया रस्म होगा। इसका उल्लेख अनिवार्य रूप से दशहरा कार्यक्रमों की सूची में होगा, ताकि भविष्य के पदाधिकारी भी इसका अनुसरण गंभीरता से करते रहें। उन्होंने मारकेल, बोदामुंडा और कुम्हली के ग्रामीणों को संबोधित करते कहा कि यह गर्व की बात होगी कि आने वाले वर्षों में आपके क्षतिपूर्ति रोपणी के पेड़ों से मां दंतेश्वरी का रथ तैयार होगा।

लेखन- हेमन्त कश्यप, छत्तीसगढ़ वन जीव बोर्ड के सदस्य व साहित्यकार

Patrika Look

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *