सरकारी अफसरों की लेट-लतीफी पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार, इस विभाग के अधिकारी पर ठोका 15 हजार का जुर्माना
नयी दिल्ली : सरकारी अफसरों की लेट-लतीफी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए वन विभाग के एक अधिकारी की जमकर फटकार लगाई. वहीं कोर्ट का समय बर्बाद करने को लेकर उस पर 15 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है. शीर्ष अदालत की ओर से बार-बार नाराजगी जाहिर करने के बाद सरकारी प्राधिकारियों द्वारा अपील दायर करने में की जा रही देर को लेकर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए यह भी है कि यह विडंबना ही है कि फाइल पर बैठने वाले अधिकारियों के खिलाफ कभी कोई कार्रवाई नहीं होती.
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति ऋषिकेष रॉय की पीठ ने बंबई हाईकोर्ट के पिछले साल फरवरी के आदेश के खिलाफ उप वन संरक्षक की अपील खारिज कर दिया. इसके साथ ही, पीठ ने देर से अपील दायर करने को लेकर उप वन संरक्षक को फटकार भी लगाई. इतना ही नहीं, पीठ ने ‘न्यायिक समय बर्बाद’ करने के लिए याचिकाकर्ता पर 15,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया.
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘यह विडंबना ही है कि बार-बार कहने के बावजूद फाइल पर बैठने और कुछ नहीं करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कभी कोई कार्रवाई नहीं की गई है.’
पीठ ने कहा, ‘इस मामले में तो अपील 462 दिन की देर से दायर की गई और इस बार भी इसकी वजह अधिवक्ता की बदला जाना बताई गई है. हमने सिर्फ औपचारिकता के लिए इस अदालत में आने के बार-बार राज्य सरकारों के इस तरह के प्रयासों की निन्दा की है. शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकारी प्राधिकारी इस न्यायालय में देर से अपील इस तरह दाखिल करते हैं, जैसे कानून में निर्धारित समय सीमा उनके लिए नहीं है.
पीठ ने कहा, ‘विशेष अनुमति याचिका 462 दिन के देर से दायर की गई है. यह एक और ऐसा ही मामला है, जिसे हमने सिर्फ औपचारिकता पूरी करने और वादकारी का बचाव करने में लगातार लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों को बचाने के लिए इस अदालत में दायर होने वाले ‘प्रमाणित मामलों’ की श्रेणी में रखा है.’
शीर्ष अदालत ने इसी साल के अक्टूबर महीने में ऐसे ही एक मामले में सुनाए गए फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि उसने ‘प्रमाणित मामलों’ को परिभाषित किया है, जिसका मकसद प्रकरण को इस टिप्पणी के साथ बंद करना होता है कि इसमे कुछ नहीं किया जा सकता, क्योंकि शीर्ष अदालत ने अपील खारिज कर दी है.
याचिकाकर्ता के वकील ने जब यह दलील दी कि यह बेशकीमती जमीन का मामला है, तो पीठ ने कहा, ‘हमारी राय में अगर यह ऐसा था, तो इसके लिए जिम्मेदार उन अधिकारियों को जुर्माना भरना होगा, जिन्होंने इस याचिका का बचाव किया. पीठ ने कहा कि इसलिए हम इस याचिका को देर के आधार पर खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर न्यायिक समय बर्बाद करने के लिए 15,000 रुपये का जुर्माना भी लगा रहे हैं.
अदालत ने कहा कि जुर्माने की राशि ज्यादा निर्धारित की जाती, लेकिन एक युवा अधिवक्ता हमारे सामने पेश हुआ है और हमने इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए यह रियायत दी है. अदालत ने जुर्माने की राशि उन अधिकारियों से वसूल करने का निर्देश दिया है, जो शीर्ष अदालत में इतनी देर से अपील दायर करने के लिए जिम्मेदार हैं.