जिला अस्पताल में महान कवि समाज सुधारकर रविन्द्रनाथ टैगोर प्रतिमा का अनावरण
डॉ. डीडी भंज के हाथों हुआ रविंद्रनाथ टैगोर की प्रतिमा का अनावरण
कोण्डागांव। पत्रिका लुक
रविन्द्रनाथ टैगोर संघर्ष समिति कोण्डागांव के द्वारा रविन्द्रनाथ टैगोर के जन्म दिवस के अवसर पर जिला अस्पताल कोण्डागांव के प्रांगण में अस्पताल 9 मई 2023 मंगलवार को रविन्द्रनाथ टैगोर की प्रतिमा का अनावरण किया गया। कर्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में सीनियर डॉ. देवीदत्ता भंज थे। मुख्य अतिथि डॉ. देवीदत्ता भंज के द्वारा पुष्प माल्यापर्ण व दिप प्रज्जलित कर रविन्द्रनाथ टैगोर की प्रतिमा का अनावरण किया गया इस दौरान रविन्द्रनाथ टैगोर संघर्ष समिति कोण्डागांव के सदस्य व जिले अस्पताल के स्टॉप सहित नगर पालिका अध्यक्ष, उपाध्यक्ष,पार्षद सहित गणमान्य नागरिक मौजूद थे।
डॉ. देवीदत्ता भंज ने बताया
मुख्य अतिथि व सीनियर डॉ. देवीदत्ता भंज ने अपने अनुभवों के बारे में बताते हुए कहा कि डीएनके पोजेक्ट के दौरान केंद्र सरकार के द्वारा कोण्डागांव में आरएनटी (रविन्द्रनाथ टैगोर) अस्पताल संचलित था। उस दौरान इस अस्पताल में अन्य राज्य से भी लोग इलाज कराने आते थे । 60 बिस्तर का यह अस्पताल में लोग एक आस लगाए जाते थे ओर लोगों के इस आस को हमारे डॉक्टर कभी टूटने नहीं दिया । लोगो की इस आस ओर डॉक्टर की कड़ी मेहनत से आरएनटी (रविन्द्रनाथ टैगोर) अस्पताल ने नाम कमाया, लोग आज भी याद करते हैं। आज इस जिला अस्पताल के प्रांगण में रविन्द्रनाथ टैगोर की प्रतिमा का अनावरण हुआ है साथ ही जिला अस्पताल का नाम रविन्द्रनाथ टैगोर के नाम से हुआ मुझे व संघर्ष समिति के सदस्यों को खुसी हैं।
उत्तम रक्षित ने बताया
रविन्द्रनाथ टैगोर संघर्ष समिति कोण्डागांव के सदस्य उत्तम रक्षित ने बताया पूर्व में डीएनके अस्पताल का नाम रविन्द्रनाथ टैगोर के नाम से था, पर वर्तमान के नया अस्पताल भवन बनने व सिप्ट होने के बाद कुछ दिन तक रविन्द्रनाथ टैगोर के नाम से अस्पताल चला, लेकिन अचानक इस अस्पताल का नाम जिला अस्पताल कोण्डागांव कब ओर किसने रखा यह समझ के परे हैं । इसी को लेकर हमने रविन्द्रनाथ टैगोर संघर्ष समिति बनाई गई और लगातार संघर्ष करने के बाद आज यह शुभ दिन हैं। आज रविन्द्रनाथ टैगोर के जन्म दिवस के अवसर पर उनकी प्रतिमा का अनावरण किया गया साथ ही इसका नाम भी अब जिला अस्पताल रविन्द्रनाथ टैगोर होगा।
कौन थे रविन्द्रनाथ टैगोर
आपको आपको बतादें की इनका जन्म 7 अगस्त 1941 (आयु 80) कलकत्ता, बंगाल प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत (वर्तमान कोलकाता, पश्चिम बंगाल, भारत) में हुआ था। जिन्होंने एक कवि, लेखक, नाटककार, संगीतकार, दार्शनिक, समाज सुधारक और चित्रकार के रूप में काम किया उन्होंने बंगाली साहित्य को नया रूप दिया और संगीत के साथ-साथ 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में प्रासंगिक आधुनिकता के साथ भारतीय कला, गीतांजलि की “गहन रूप से संवेदनशील, ताजा और सुंदर” कविता के लेखक थे। वे 1913 में साहित्य में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले गैर-यूरोपीय और पहले गीतकार बने थे।श्री टैगोर के काव्य गीतों को आध्यात्मिक और व्यापारिक के रूप में देखा गया।
उपनमो से जाने जाते हैं
बंगाल के बार्ड के रूप में संदर्भित, टैगोर को उपनामों से गूदेव, कोबिगुरु, बिस्वकोबी के नाम से जाना जाता है। ये दो देश के राष्ट्रीय गीत लिखे हैं। इनका एक बंगाली देश भक्ति गीत सबसे ज्यादा आज भी लोगो के जुबा पर है । उसके बोल है –
”जोदि तोर डाक शुने केउ ना आसे तोबे एकला चलो रे।
एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो रे!
जोदि केउ कोथा ना कोय, ओरे, ओरे, ओ भागा,
यदि सबाई थाके मुख फिराय, सबाई करे भय-
तबे परान खुले
ओ, तुई मुख फूटे तोर मनेर कथा एकला बोलो रे!
हिंदी में अनुवाद
तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे
फिर चल अकेला चल अकेला चल अकेला चल अकेला रे
ओ तू चल अकेला चल अकेला चल अकेला चल अकेला रे , तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे
फिर चल अकेला चल अकेला चल अकेला चल अकेला रे
यदि कोई भी ना बोले ओरे ओ रे ओ अभागे कोई भी ना बोले