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मशरूम उत्पादन से महिलाएं हो रही आत्मनिर्भर

कोंडागांव जिला के अंतर्गत आने वाला ग्राम बोलबाला गांव की एकता स्वसहायता की महिलाओं ने मशरूम उत्पादन में विशेष रूचि लेकर अन्य ग्रामीणों समुदाय के समक्ष एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया है। इस स्वसहायता समूह की अध्यक्ष श्रीमती रमशीला नेताम बताती है कि उनके समूह में 12 सदस्य महिलायें है और इस कार्य के लिए उन्होंने मशरूम सेड हेतु 10 हजार तथा मशरूम बीज (स्पौन) पाॅलीथिन एवं दवाईओं हेतु 30 हजार इस तरह कुल 40 हजार खर्च किया है और बीते 2 माह में उनके द्वारा लगभग 20 हजार का मशरूम  बिक्री किया गया है।
महिलाएं बताती हैं कि ताजा मशरूम ₹ 200  प्रति किलो तक और सुखाया हुआ मशरूम ₹ 600 प्रति किलो तक बिक जाता है। सुखाए हुए मशरूम से अचार, चॉकलेट, पापड़, बिजौरी, मेडिसिन का निर्माण किया जाएगा।

पोषक तत्वों का खजाना है ओयेस्टर मशरूम

मशरूम सभी ने कभी न कभी खाया है और इस मशरूम में उपस्थित कई विटामिन्स एवं माइक्रोन्युट्रीयन्स इम्युनिटी बढ़ने में सहायक होते है चुकिं इसका आकार सीप की तरह होता है अतः इसे ओयेस्टर मशरूम कहते है इस मशरूम मेें एक अध्ययन के अनुसार विटामिन सी, और विटामिन बी के अलावा 1.6 से 2.5 प्रतिशत तक भरपुर प्रोटीन होता है इसके अलावा हमारे शरीर के सुचारू रूप से काम करने के लिए आवश्यक पोटेशियम सोडियम, फाॅस्फोरस, लोहा, कैलसियम जैसे जरूरी तत्व भी इसमें मौजुद होते है।

ओयेस्टर मशरूम के सेवन से लाभ

ओयेस्टर मशरूम में चुकिं बहुत कम कैलोरी और लगभग शुन्य प्रतिशत वसा होती है अतः यह वजन कम करने में सहायक है इसके अलावा हृदय रोग एवं एनीमिया से बचाव, शरीर कोशिकाओं के रखरखाव एवं मरम्मत में यह राम बाण का भी कार्य करती है महिलाओं के गर्भावस्था जब शरीर में पोषण की आवश्यकता बढ़ जाती है ऐसी स्थिति में यह एक बेहतर विकल्प हो सकती है इस प्रकार यह बच्चों को कुपोषण से बचाने में भी सहायक है।
ओयेस्टर मशरूम के उत्पादन के लिए सही तापमान समूह द्वारा प्राप्त जानकारी अनुसार ओयेस्टर मशरूम के उत्पादन के लिए मध्यम तापमान (20 से 30 डिग्री सेल्सियस) आर्दता (55 से 70 प्रतिशत) से लेकर एक वर्ष में 6 से 8 महीने की अवधि तक बढ़ सकता है। इसकी वृद्धि के लिए आवश्यक अतिरिक्त नमी प्रदान करके गर्मी के महीनों में भी इसकी खेती की जा सकती है। ओयेस्टर मशरूम के लिए सबसे अच्छा मौसम मार्च अप्रेल से सितम्बर और अक्टूबर और निचले क्षेत्रों में सितम्बर अक्टूबर से मार्च अप्रेल तक होता है।

बस्तर संभाग में मशरूम की बहुत सी प्रजातिया

बस्तर संभाग के सभी जिलों में विभिन्न मशरूम की प्रजातिया बहुतायत से पायी जाती है जिसे स्थानीय समुदाय के लोग बड़े चाव से खाते है इन मशरूमों को स्थानीय बोली ‘‘फुटु या छाती‘‘ के नाम से भी जाना जाता है इन मशरूम की प्रजातियों को स्थानीय भाषा में ‘‘माने‘‘ ‘‘डाबरी फुटु‘‘ ‘‘भात छाती‘‘ ‘‘टाकु‘‘ ‘‘मजुर डुंडा‘‘ ‘‘हरदुलिया‘‘ ‘‘पीट छाती‘‘ ‘‘कोडरी सिंग फुटु‘‘ ‘‘कड़ छाती‘‘ कहते है लेकिन ये सब मशरूम की प्रजातिया केवल वर्षा और शरद् ऋतु में ही मिलते है, जिसे बेचकर यहां के लोगों को अतरिक्त आमदनी हो जाती हैं ।

मशरूम बेच समूह की महिलाएं अब आत्मनिर्भर बनाने की राह में

आज ओयेस्टर मशरूम का उत्पादन उन ग्रामीण महिलाओं के लिए वरदान व लाभकारी सिद्ध हो रहा है जो कभी मात्र खेती पर ही निर्भर रहती थी। उनके पास घर और खेत काम के अलावा कोई भी रोजगार करने का साहस नहीं था। लेकिन स्वसहायता समूह में शामिल होने के बाद आत्म विश्वास हासिल किया और वे अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा स़्त्रोत बनी । इस समूह की महिलायें अब सुखे मशरूम को आँगनबाड़ी केन्द्रों में भी सप्लाई करना चाहती है ताकि मिड-डे-मील में इसका इस्तेमाल कर इसे कुपोषण से बचाव में मुख्य घटक के रूप में इसका उपयोग हो। इस प्रकार हमारे रोज मर्रा के जीवन में कई प्रकार के अवसर उपलब्ध होते है और जिनके बारे में जानकारी प्राप्त कर जीवन की दिशा और दशा बदली जा सकती है और एकता स्वसहायता समूह की महिलाओं ने इस संबंध में बखुबी अपनी भुमिका निभा रही है। यदि इन्हें शासन से अनुदान या सहायता मिल सकेगी तो ये इस क्षेत्र में नए आयाम गढ़ सकती हैं।

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