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सीता जी का ही नहीं, बल्कि माता लक्ष्मी का भी हुआ था हरण, पढ़ें पौराणिक कथा

हम सभी ने माता सीता के हरण की कथा तो सुनी ही है। लेकिन क्या आपने कभी ये सुना है कि माता लक्ष्मी का हरण भी किया गया था। अगर नहीं तो यहां हम आपको यही कथा सुना रहे हैं। इस पौराणिक कथा के अनुसार, दैत्येगुरु शुक्राचार्य के शिष्य असुर श्रीदामा से हर कोई परेशान था। सभी देवी और देवता श्रीदामा से त्रस्त हो चले थे। इस परेशानी से निजात पाने के लिए सभी देवगण ब्रह्मदेव के साथ विष्णु जी के पास पहुंचे।

देवगणों की परेशानी देख विष्णुजी ने श्रीदामा के अंत का आश्वासन दिया। जब इस बात का पता श्रीदामा को चला तो उसने श्री हरि से युद्ध करने की योजना बनाई। दोनों में युद्ध शुरू हो गया। विष्णु जी के दिव्यास्त्रों का श्रीदामा पर कोई असर नहीं हुआ। ऐसा इसलिए क्योंकि शुक्राचार्य ने उसका शरीर वज्र के समान कठोर बना दिया था। यह देख विष्णु जी को युद्ध छोड़ना पड़ा। इसी बीच विष्णु जी की पत्नी का हरण श्रीदामा ने कर लिया।

जब इस बात की जानकारी श्री हरि को लगी तो वो कैलाश पहुंचे और शिव जी का पूजन यहां उन्होंने शिव नाम जपकर “शिवसहस्त्रनाम स्तोत्र” की रचना कर दी। इसके साथ ही श्री हरि ने हरिश्वरलिंग की स्थापना की और 1000 ब्रह्मकमल अर्पित करने का संकल्प लिया। उन्होंने 999 ब्रह्मकमल अर्पित किए लेकिन 1000वां ब्रह्मकमल कहीं लुप्त हो गया था। तब उन्होंने अपना दाहिना नेत्र शिवजी के चरणों में अर्पित किया।

उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी प्रकट हुए। उन्होंने विष्णु जी से वर मांगने को कहा। उन्होंने लक्ष्मी के अपहरण की कथा शिवजी को सुनाई। फिर शिवजी की दाहिनी भुजा से महातेजस्वी सुदर्शन चक्र प्रकट हुआ। इससे ही विष्णु जी ने श्रीदामा का नाश किया और महालक्ष्मी को मुक्त कराया और देवगणों को उसके आतंक से भी मुक्ति दिलाई।

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