छत्तीसगढ़

खेतों में पराली जलाने का सिलसिला जारी, प्रशासन भी नहीं कर रहा कार्रवाई

बिलासपुर। रबी फसल की तैयारी के लिए किसान हार्वेस्टर व थ्रेसर से धान मिजाई करने के बाद खेतों में छोड़े गए पैरा को बेरोक-टोक आग के हवाले कर दिया जा रहा है। इससे न केवल पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है, बल्कि मिट्टी की उर्वरा क्षमता भी क्षीण होती है। इसके अलावा चारों ओर आग की लपटें उठने से मवेशी भी इसका शिकार होते है।

राज्य शासन के निर्देश पर सिचाई विभाग द्वारा हसदेव बागों बांध से नहरों में रबी फसल के लिए 2 जनवरी से पानी छोड़ा गया है, मगर रबी फसल की तैयारियों को लेकर किसान खेतो में पलारी जला रहे है। आधुनिक यंत्रों से कृषि कार्य होने से जहां महीनों का काम घंटों में हो रहा है तो वहीं किसानों की लापरवाही से इसके दुष्परिणाम भी देखने को मिल रहे है।

जांजगीर-चांपा जिले के सक्ती विकासखण्ड के अंतर्गत ग्राम पंचायत सकर्रा, दर्राभाठा सहित बम्हनीडीह विकासखण्ड के ग्राम देवरी, झर्रा, सरवानी सहित अन्य आसपास के गांवों में इन दिनों खेत में आग की लपटें उठ रही है। हार्वेस्टर व थे्रसर से धान मिसाई करने वाले किसान खेत में छोड़े गए पैरा को घर ले जाना नहीं चाहते। ऐसे में उनके द्वारा पैरा में आग लगा दी जाती है, जिससे पूरे क्षेत्र में आग सहित धुआं का नजारा होता है।इस आगजनी से उठने वाले धुआं से पूरा वातावरण प्रदूषित तो होता ही है, इसके अलावा जीव-जंतु भी इसकी चपेट में आकर असमय काल के गाल में समा जाते है। इसके अलावा मिट्टी की उर्वरा क्षमता भी इससे घटती है। उल्लेखनीय है कि पिछले दो-तीन सालों से इस तरह की स्थिति को देखते हुए प्रशासन द्वारा इस बार खेतों में पैरा जलाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया गया है।

इसके संबंध में पंचायतों के माध्यम से गांवों में मुनादी भी कराते हुए गोठान में पैरा दान करने का आग्रह भी गई है, बावजूद इसके खेत में पड़े पैरा को बेखौफ आग के हवाले करने का सिलसिला निर्बाध गति से जारी है। बहरहाल कारण चाहे जो भी हो, लेकिन जिम्मेदार सरकारी अमले की उदासीनता के चलते खेतों में पैरा जलाने का काम फिर से हो रहा है।

Patrika Look

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