रायपुर। शहर की नगर निगम सरकार लोगों को मूलभूत सुविधा दिलाने के लिए लगातार दावे कर रही है। तमाम दावों के बीच नईदुनिया ने पार्षदों और जनप्रतिनिधियों से ही सर्वे करके उनके ही विचार और मत से शहर में मिलने वाली सुविधाओं का आंकलन किया है। इनमें पार्षदों के मत को तीन भागों में बांटकर जाना गया कि वे स्ट्रीट लाइट, पेयजल ,सफाई, सड़क, स्वास्थ्य, जिम और पार्क की सुविधा से वे और उनके क्षेत्र की जनता कितनी संतुष्ट है।
पेयजल और सफाई में 40 फीसद और स्ट्रीट लाइट में 30 फीसद ने 10 में से केवल पांच अंक ही दिए हैं। राजधानी के लोगों को मूलभूत सुविधाएं देने के लिए चुनाव लड़कर पार्षद बनने वाले प्रतिनिधियों ने सुविधाओं पर अपना मत जाहिर किया है। शहर में सुविधा मिले इसके लिए 27 जनवरी से ‘तुंहर सरकार, तुंहर द्वार’ कार्यक्रम चलाकर अभियान चलाया जा रहा है। राजधानी के 50 फीसद पार्षदों को शहर के स्वच्छता रैकिंग की जानकारी ही नहीं।
आधे को पता नहीं स्वच्छता रैंकिंग
सर्वे के दौरान नईदुनिया टीम ने नगर निगम के पार्षदों, जन प्रतिनिधियों से स्वच्छता रैंकिंग के बारे में भी जानकारी ली है। इसमें पता चला कि 50 फीसद ऐसे भी हैं, जिन्हें अपने शहर की रैंकिंग ही पता नहीं है। अधिकारियों के मुताबिक, रायपुर स्वच्छता रैंकिंग 2020 के मुताबिक देश में 21वें स्थान पर है। शहर में लोगों के लिए मूलभूत सुविधा के मामले में खुद जनप्रतिनिधियों ने 10 में से पांच या इससे कम भी अंक दिए हैं या है उसके आधार पर आंकड़ें उभरकर सामने आए हैं।
पेयजल और सफाई में 40 फीसद और स्ट्रीट लाइट में 30 फीसद ने 10 में से केवल पांच अंक ही दिए हैं। राजधानी के लोगों को मूलभूत सुविधाएं देने के लिए चुनाव लड़कर पार्षद बनने वाले प्रतिनिधियों ने सुविधाओं पर अपना मत जाहिर किया है। शहर में सुविधा मिले इसके लिए 27 जनवरी से ‘तुंहर सरकार, तुंहर द्वार’ कार्यक्रम चलाकर अभियान चलाया जा रहा है। राजधानी के 50 फीसद पार्षदों को शहर के स्वच्छता रैकिंग की जानकारी ही नहीं।
आधे को पता नहीं स्वच्छता रैंकिंग
सर्वे के दौरान नईदुनिया टीम ने नगर निगम के पार्षदों, जन प्रतिनिधियों से स्वच्छता रैंकिंग के बारे में भी जानकारी ली है। इसमें पता चला कि 50 फीसद ऐसे भी हैं, जिन्हें अपने शहर की रैंकिंग ही पता नहीं है। अधिकारियों के मुताबिक, रायपुर स्वच्छता रैंकिंग 2020 के मुताबिक देश में 21वें स्थान पर है। शहर में लोगों के लिए मूलभूत सुविधा के मामले में खुद जनप्रतिनिधियों ने 10 में से पांच या इससे कम भी अंक दिए हैं या है उसके आधार पर आंकड़ें उभरकर सामने आए हैं।