रायपुर। कोरोना की वजह से आर्थिक संकट और कर्ज के बढ़ते बोझा के बीच छत्तीसगढ़ सरकार के सामने विकास की चुनौती है। प्रदेश सरकार पर कर्ज का बोझा बढ़कर 70 हजार करोड़ तक पहुंच चुका है। इसके एवज में सरकार को सालाना पांच हजार करोड़ रुपये से अधिक ब्याज चुकाना पड़ रहा है। वहीं, केंद्र सरकार ने भी राज्य का पैसा रोक रखा है। ऐसे में कुपोषण व एनीमिया से जंग, पिछड़े क्षेत्रों के साथ गांवों के विकास का बजट में ध्यान रखना होगा।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार छत्तीसगढ़ में पांच वर्ष से कम आयु के 37.6 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं। वहीं 15 से 49 वर्ष तक की 41.5 फीसद महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं। सरकार ने करीब सवा साल पहले इससे मुक्ति के लिए मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान शुरू किया है। इसका सकारात्मक असर भी हुआ है, लेकिन यह जंग अभी लंबी चलेगी और इसके लिए बजट की भी जरूरत होगी
चुनौती यहां भी : पूंजीगत व्यय घट रहा, बढ़ रहा राजस्व व्यय
प्रदेश में पूंजीगत व्यय की तुलना में राजस्व व्यय में वृद्धि हुई है। अस्पताल, भवन, पुल आदि का निर्माण पूंजीगत व्यय की श्रेणी में आता है। वहीं वेतन, कर्ज भुगतान आदि पर किया जाने वाला खर्च राजस्व व्यय होता है। इसका अंदाजा पिछले सप्ताह चालू वित्तीय वर्ष के लिए पेश किए गए तीसरे अनुपूरक बजट से लगाया जा सकता है। 505 करोड़ रुपये के इस बजट का अधिकांश हिस्सा वेतन-भत्ता और आर्थिक सहायता यानि राजस्व व्यय में खर्च होगा।
यह सकारात्मक पक्ष: कुल बजट 77 फीसद से अधिक विकास मूलक कार्यों पर
भारतीय रिजर्व बैंक की वर्ष 2019-20 की रिपोर्ट के अनुसार विकास मूलक कार्यों में व्यय की दृष्टि से छत्तीसगढ़ देश में प्रथम स्थान पर है। राज्य के कुल बजट में से 77.8 प्रतिशत व्यय विकास मूलक कार्यों पर किया जा रहा है। 46.1 प्रतिशत व्यय सामाजिक क्षेत्र पर किया जा रहा है जो राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
सकल घरेलू उत्पाद दर
छत्तीसगढ़ -1.77%
भारत -7.73%
प्रति व्यक्ति आय
छत्तीसगढ़ 1,04,943 -0.14%
भारत 1,26,968 -5.14%
जीडीपी में क्षेत्रवार योगदान
क्षेत्र छत्तीसगढ़ भारत
कृषि क्षेत्र 17.64% 16.32%
औद्योगिक क्षेत्र 46.43% 29.43%
सेवा क्षेत्र 35.93% 54.25%