छत्तीसगढ़

मिनी नियाग्रा के किनारे चित्रकोट महोत्सव शुरू

जगदलपुर।  भारत के नियाग्रा के नाम से प्रसिद्ध चित्रकोट जलप्रपात के तट पर तीन दिन का चित्रकोट महोत्सव मंगलवार को शुरू हो गया। प्रदेश के आबकारी व उद्योग मंत्री कवासी लखमा ने बस्तर की आराध्य मां दंतेश्वरी देवी की प्रतिमा पर दीप प्रज्वलित कर आयोजन का शुभारंभ किया। लखमा ने कहा कि बस्तर को एतिहासिक, सांस्कतिक व पर्यटन के क्षेत्र में विशेष पहचान दिलाने में चित्रकोट का विशेष महत्व है। इस महोत्सव की ख्याति रोज बढ रही है। इससे बस्तर की संस्कति का भी प्रचार प्रसार हो रहा है।

लखमा ने कहा कि राज्य सरकार बस्तरिया संस्कति के संरक्षण के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। बस्तरिया स्वभाव से उत्सवधर्मी होते हैं। वह अपना आधा समय खेती में व आधा समय उत्सवों में व्यतीत करते हैं। इस मौके पर वालीबाल व कबडडी प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया गया।

आयोजन में विधायक चंदन कश्यप, राजमन बेंजाम, लोहंडीगुडा जनपद अध्यक्ष महेश कश्यप, जगदलपुर महापौर सफीरा साहू, निगम अध्यक्ष कविता साहू, कलेक्टर रजत बंसल, एसपी दीपक झा समेत हजारों की संख्या में गणमान्य नागरिक मौजूद थे। आयोजन में कांगेर घाटी नेशनल पार्क के लोगो का विमोचन भी किया गया।

महोत्सव के पहले दिन विवेकानंद हाईस्कूल जगदलपुर, बकावंड के लोकनर्तक दल, स्थानीय कलाकार लावण्या दास, दंतेवाडा के कोया नाच दल, कोंडागांव के माटी चो मया गु्रप, सुकमा के धुरवा मंडई नाचा दल, लोहंडीगुडा के घोडान्दी नाच, बास्तानार के धुरवा नाच व जगदलपुर के परब तथा डंडारी नाच दलों ने प्रस्तुति दी।

फैशन शो का भी आयोजन

फैशन शो का आयोजन भी किया गया। श्रुति सरोज व हरदीप कौर ने एकल डांस की प्रस्तुति दी। बलराज शर्मा ने बालीवुड गीतों से व आरू साहू ने छत्तीसगढी गीतों से शमां बांधा। शाम को कवि सम्मेलन का आयोजन भी किया गया।

इसलिए खास है चित्रकोट का इलाका

इंद्रावती नदी के तट पर स्थित चित्रकोट प्रक्षेत्र नैसर्गिक और पुरातात्विक महत्व का है। नौ साल पहले इस प्रक्षेत्र को विश्व पटल पर पहचान दिलाने के उद्देश्य से चित्रकोट महोत्सव की शुरुआत की गई थी। हालांकि अब भी चित्रकोट प्रक्षेत्र के दर्जन भर से अधिक दर्शनीय स्थलों से सैलानी अनभिज्ञ हैं। चित्रकोट प्रक्षेत्र में मिनी नियाग्रा के नाम से विशाल चित्रकोट जलप्रपात है, वहीं तामडाघूमर और मेंदरीघूमर नाम के दो अन्य जलप्रपात भी आसपास ही हैं। चित्रकोट से शुरू इसी घाटी में ओडिशा के पापडाहांडी से आए शरणार्थी अरण्यक ब्राहमणों को बसाया गया है। इस घाटी को बिंता घाटी कहा जाता है जिसे टूरिस्ट विलेज के नाम से ख्याति मिली हुई है।

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