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शरीफा की आइसक्रीम ने आदिवासी महिलाओं की जिंदगी में घोली मिठास

बिलासपुर।वनांचल क्षेत्र मरवाही ब्लाक के दानीकुंडी गांव की महिलाएं सीताफल (शरीफा) से आइसक्रीम बनाकर आत्मनिर्भर बन गई हैं। अब ये क्षेत्र की तीन हजार महिलाओं को रोजगार देकर उनकी जिंदगी संवार रही हैं। दरअसल गांव में शरीफा के पेड़ बहुतायत में हैं। वन विभाग से कर्ज के रूप में मिले 60 लाख से महिलाओं ने आइसक्रीम उद्योग स्थापित किया है।

इसके पहले बिचौलिए ग्रामीणों के माध्यम से इसे कम दाम में खरीदकर कोलकाता, रांची, मुंबई, नागपुर, अहमदाबाद सूरत जैसे महानगरों में ले जाते थे। वन विभाग के अनुमान के मुताबिक हर साल करीब दो हजार टन शरीफा बाहर जाता है। बड़े शहरों में कम से कम 50 स्र्पये किलो बिकने वाले शरीफे को यहां महज पांच रुपये किलो का भी भाव नहीं मिल रहा था।

दानीकुंडी गांव की वन धन महिला स्वसहायता समूह के माध्यम से आदिवासी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए वन विभाग ने प्रोत्साहित किया। आइसक्रीम उद्योग स्थापित करने के लिए उन्हें दिल्ली के विशेषज्ञों से प्रशिक्षित कराया। इस वर्ष से आइसक्रीम का उत्पादन शुरू हो गया है, जिसे बाजार में ट्राइबल डिलाइट नाम से उतारा गया है।

महिला समूह की सचिव सुधा पुरी का कहना है कि अब महिला समूह की सदस्य लोकल को वोकल बनाकर अपनी व ग्रामीणों की जिंदगी संवार रही हैं। शरीफे की आइसक्रीम पूरी तरह आर्गेनिक है। 60 ग्राम आइसक्रीम के डिब्बे की कीमत बाजार में 30 स्र्पये है। इस पर 15 से 20 रुपये की लागत आती है। प्रदेश के बड़े होटलों और मंत्रालय स्तर से भी आइसक्रीम के आर्डर मिलने लगे हैं।

10 रुपये किलो तय है समर्थन मूल्य

मरवाही वनमंडल के उपवनमंडलाधिकारी संजय त्रिपाठी ने बताया कि महिलाओं को प्रशिक्षण देने के बाद अरण्यफल उद्योग के नाम से उनका पंजीकरण कराया गया है। उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए राज्य में पहली बार उन्हें सीताफल खरीदने का अधिकार भी दिया गया है। साथ ही शरीफा का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी 10 रुपये प्रति किलो तय किया गया है।

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