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आग में जले न पानी में पिघले गोबर की ईंट

रायपुर। सहज भरोसा नहीं होता कि सूखे हुए गोबर में आग नहीं लगेगी। यहां तो घर ही गोबर की ईंटों (गोक्रीट) से तैयार हो रहे हैं। लैब जांच में साबित हो गया है कि 350 डिग्री सेंटिग्रेड तापमान पर भी इन ईंटों का कुछ नहीं बिगड़ेगा। इन ईंटों में 80 फीसद गोबर है। बाकी 20 फीसद में चूना, मिट्टी, ग्वार, नींबू का रस और अन्य पदार्थ हैं।

हरियाणा के रोहतक निवासी रसायनशास्त्री डा. शिव दर्शन मलिक की खोज को रायपुर नगर निगम से जुड़ी संस्था ‘पहल सेवा समिति’ ने प्रयोग में लाना शुरू कर दिया है। संतोषी नगर स्थित नगर निगम के गोठान में गोबर से ईंटों का उत्पादन शुरू हो गया है। वैज्ञानिक प्रविधि से तैयार ईंटों के लिए आधा दर्जन से अधिक ग्राहकों की मांग भी पहुंच चुकी है।

प्रयोगशाला की जांच में सफल

बिना भट्टी और पानी के यह ईंटें दस से बारह दिनों में तैयार हो जा रही हैं। हरियाणा के सोनीपत स्थित माइक्रो इंजीनियरिंग एंड टेस्टिंग लैबोरेट्री से फरवरी महीने में कराई गई जांच काफी उत्साहवधर्क रही। एक मार्च 2021 को प्राप्त रिपोर्ट में ही पता चला कि 350 डिग्री सेंटिग्रेट पर भी गोबर की ईंट सुरक्षित है और उसमें आग नहीं लगेगी।

गोधन के गोबर से तैयार ईंट की ताकत 11 एमपीए तक है जो सत्तर से अस्सी साल तक खराब नहीं होती। यहां उल्लेखनीय है कि कच्ची मिट्टी के घरों की ताकत औसतन 0.5 एमपीए (मेगा पास्कल) हुआ करती है तो पकी हुई लाल ईंट की ताकत औसतन 14 एमपीए होती है। साथ ही लाल ईंट की तरह गर्मी में तेजी गर्म और ठंड में ठंड भी नहीं होती।

यानी लाल ईंट की तुलना में गोबर ईंट के घर में रूम हीटर या एयर कंडिशनर के लिए बिजली की खपत भी कम होगी। गोक्रीट के उत्पादन में लागत कम होने के कारण इसकी कीमत लाल ईंट से कम है। इस तरह गोबर की ईंट उत्पादन से लेकर घर का स्वरूप मिलने के बाद भी ऊर्जा हितैषी और पर्यावरण रक्षक है।

भट्ठे में महिला-बच्चे की मौत से प्रेरणा

पहल सेवा समिति के अध्यक्ष राजकुमार साहू और उपाध्याक्ष रितेश अग्रवाल ने बताया कि जनवरी महीने में बेमेतरा जिले के एक धधकते ईंट भट्ठे के धंसने से मां और तीन वर्षीय बच्चे की मौत की घटना ने विचलित कर दिया। उन्हें विकल्पों पर विचार के लिए मजबूर कर दिया। इसी क्रम में गोबर से ईंट निर्माण का विचार आया तो गाय के गोबर से वैदिक प्लास्टर बनाने वाले डा. शिव दर्शन मलिक से संपर्क कर ईंटों के निर्माण का विधिवत प्रशिक्षण प्राप्त किया।

एक आदमी एक दिन में गोबर की दो सौ ईंटें तैयार कर रहा है। बीकानेर स्थित अनुसंधान केंद्र द्वारा नियमित रूप से अन्य लोगों को भी प्रशिक्षित किया जा रहा है। वर्तमान में प्रदेश के विभिन्न गोठानों में गोबर से गमला, लक्ष्मी गणेश, कूड़ादान, मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती, मोमबत्ती एवं अगरबत्ती स्टैंड आदि चीजों का निर्माण हो रहा है।

गोबर ईंट को आग चाहिए न पानी

रोहतक निवासी डा. शिव दर्शन मलिक इन दिनों बीकानेर स्थित वैदिक प्लास्टर एवं गौक्रीट अनुसंधान केंद्र स्थित अपनी प्रयोगशाला में व्यस्त हैं। वहां गोबर की ईंट से मकान तैयार हो चुका है। डा. मलिक के मुताबिक गोवंश के गोबर में प्रोटीन और फाइबर होता है। प्रोटीन मजबूती प्रदान करता है तो फाइबर किसी भी वस्तु को जोड़ने में जरूरी है। सीधे तौर से कहें तो ईंट पूरी तरह ईको फ्रेंडली यानी पर्यावरण अनुकूल होती है।

दूसरी तरफ लाल ईंट में मिट्टी कटाई से खेती प्रभावित होती है। ईंट पाथने में पानी का तो पकाने में कोयले का उपयोग होता है। इस तरह लाल ईंट के कारण मिट्टी, पानी का दोहन और वायु प्रदूषण होता है। लाल ईंट का प्रयोग हर जगह आवश्यक नहीं है। स्वयं रसायनशास्त्री डा. मलिक कहते हैं, भारतीय संस्कृति में गोबर के महत्व को पीढ़ी दर पीढ़ी मान्यता मिलती रही है। इस ईंट के निर्माण में केवल और केवल देसी गाय और बैल का ही गोबर उपयुक्त है।

चोथ, लीद, लींडरे व मिंगने आदि नहीं। आधुनिक दौर में वैज्ञानिक कसौटी पर भी गोबर सर्वश्रेष्ठ साबित हो रहा है। देसी गोवंश बचाने के लिए इस शोध का अधिकाधिक प्रचार व उपयोग जरूरी है। उन्होंने बताया कि रोहतक में अभी तक सात प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए जा चुके हैं, जिनमें देश भर से सत्तर से अधिक लोग प्रशिक्षण प्राप्त कर गौक्रीट से ईंट व मकान बनाना आरंभ कर चुके हैं। हरियाणा, राजस्थान, छत्तीसगढ़, दिल्ली, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश और झारखंड में ईंटों का उत्पादन शुरू हो गया है। रोहतक, बीकानेर और झारखंड के चाकूलिया में कमरे भी बन चुके हैं।

भवन निर्माण की तकनीकी

वर्तमान दौर में बहुमंजिली इमारतों में पहले ढांचा तैयार होता है उसके बीच ईंटें लगती है। इन ईंटों पर वजन नहीं पड़ता। इन्हें नो लोड वीयरिंग वाल करते हैं। इसलिए बहुमंजिली इमारतों में गोबर की ईंटों के प्रयोग में किसी भी स्तर पर कोई परेशानी नहीं है। विभिन्न स्थानों पूरे इस दिशा में काम चल रहा है। पूरे विश्व में हरित भवनों के निर्माण में हैंपक्रीट का उपयोग होता है।

इसमें भांग का हिस्सा 80 फीसद होता है। हैंपक्रीट में भी आग नहीं लगती। चूना मिलने से भांग या गोबर की प्रकृति बदल जाती है और यह फायर प्रूफ बन जाता है। डा. मलिक के अनुसार मुख्य लक्ष्य मानव जीवन में गोधन को उपयोगी बनाना है। गौक्रीट का प्रयोग गोधन को लाभकारी और भवनों को पर्यावण हितैषी बनाएगा।

दस हजार ईंटों का इंतजार

पेशे से भवन निर्माता रायपुर के नीरज वैष्णव ने बताया कि उन्हें ‘पहल सेवा समिति’ से दस हजार ईंटें मिलने का इंतजार है। वर्ष 2005 एनआइटी से सिविल इंजीनियरिंग कर श्रुति बिल्डर के संचालक नीरज के अनुसार गुणवत्ता से जुड़ी रिपोर्ट ने उन्हें काफी प्रभावित तो गोबर के प्रयोग ने आकर्षित किया है। शुरुआती तौर पर उन्होंने फार्महाउस में कमरों को नेचुरल लुक (प्राकृतिक रूप) देने के लिए गौक्रीट का प्रयोग करने की योजना बनाई है। प्रायोगिक तौर पर परिणाम अच्छा रहने पर भवनों के निर्माण में भी इसका प्रयोग किया जाएगा।

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