20 वर्ष में छह से 18 जिलों में पसरे नक्सली, अब सिमट रहा दायरा
रायपुर, करीब 21 वर्ष पहले छत्तीसगढ़ अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया, तब यहां के दो संभाग बस्तर और सरगुजा के करीब आधा दर्जन जिले नक्सल प्रभावित थे। राज्य के विकास के साथ नक्सलियों ने भी पैर पसारा और सात- आठ वर्ष में ही नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 18 तक पहुंच गई। इसके बाद राज्य और केंद्र सरकार इस समस्या को लेकर गंभीर हुई। 2005 के बाद नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में फोर्स की तैनाती बढ़ाने के साथ विकास की गति बढ़ाई गई।
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में फोर्स की धमक और तेजी से हुए विकास कार्यों का सबसे बड़ा असर सरगुजा संभाग में दिखा। 2010 तक वहां के सभी जिले नक्सल मुक्त हो गए। सरगुजा संभाग में अब नक्सलियों का कोई भी सक्रिय संगठन नहीं है। पुलिस अफसरों के अनुसार झारखंड की सीमा से लगे क्षेत्रों में वहां के नक्सलियों द्वारा लेवी वसूली की शिकायतें आती है।
वहीं महासमुंद और धमतरी जिले में सक्रिय नक्सलियों ने ओडिशा का रुख कर लिया है। बस्तर संभाग के सात जिलों में से दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर में अब नक्सलियों का खौफ रह गया है। बाकी जिलों के बेहद अंदरूनी हिस्सों से ही नक्सली गतिविधियों की सूचना आती है।
विकास के साथ बढ़ा फोर्स का दायरा
बस्तर के साथ राज्य के अन्य हिस्सों को नक्सल मुक्त करने के लिए विशेष रणनीति के तहत काम किया गया। नक्सल आपरेशन की कमान संभाल चुके एक आला अफसर ने बताया कि नक्सलियों को पीछे धकेलने के लिए बस्तर के अंदरूनी क्षेत्रों में हर पांच किलोमीटर पर केंद्रीय फोर्स का एक कैंप खोला जा रहा है। सड़क, पूल-पुलिया निर्माण के साथ सरकारी योजनाओं को गांवों तक पहुंचाया जा रहा है।
जम्मू-कश्मीर से भी ज्यादा यहां अर्द्ध सैनिक बल
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पुलिस के अलावा राज्य और केंद्रीय सशस्त्र बल की करीब 100 बटालियन तैनात है। जम्मू- कश्मीर के बाद देश के किसी एक राज्य में यह सबसे बड़ी तैनाती है। यहां नक्सल मोर्चे पर अभी सीआरपीएफ, बीएसएफ, एसएसबी और आइटीबीपी के जवान तैनात हैं। नगा और मिजो बटालियन भी यहां नक्सल विरोधी अभियान में शामिल हो चुकी है।
नक्सलियों के रेड कारिडोर का अहम हिस्सा
बस्तर संभाग की सीमा का बड़ा हिस्सा तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के साथ ही ओडिशा से लगा हुआ है। सरगुजा संभाग की सीमाएं झारखंड से लगी हुई है। इसी तरह दुर्ग संभाग के दो जिलों की सीमा मध्य प्रदेश के बालाघाट से जुड़ी हुई है। नक्सल प्रभावित इन राज्यों के बीच स्थित छत्तीसगढ़ जंक्शन की तरह है। इसी वजह से राज्य भारत से नेपाल तक फैले नक्सलियों के रेड कारिडोर का अहम हिस्सा रहा है।
इन जिलों में नक्सली गतिविधियां
बस्तर संभाग के सात जिलों कांकेर, कोंडागांव, नारायणपुर, बस्तर, दंतेवाड़ा, सुकमा व बीजापुर के साथ राजनांदगांव, कवर्धा (कबीरधाम), महासमुंद, गरियाबंद, धमतरी, रायगढ़, जशपुर, कोरिया, बलरामपुर और सूरजपुर ये ऐसे जिले हैं, जहां नक्सली वारदातें हुई हैं या उनकी गतिविधियां देखी गई हैं। इसके अलावा राजधानी रायपुर, दुर्ग, बालोद व बिलासपुर से हार्डकोर नक्सली, उनके समर्थक या नक्सलियों के शहरी नेटवर्क से जुड़े लोग पकड़े गए हैं।
गृह मंत्रालय की सूची में राज्य के नक्सल प्रभावित जिले
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने प्रदेश के सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, कांकेर, राजनांदगांव, बस्तर, गरियाबंद, बलरामपुर, कोंडागांव, कबीरधाम और धमतरी जिले को नक्सल प्रभावित घोषित कर रखा है।