लाकडाउन से कामकाज बंद और खाने के लाले, जिंदगी अब सफर के हवाले
रायपुर, ठीक एक साल पहले हुए लाकडाउन-1 की तस्वीर एक बार फिर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के आसपास नजर आने लगी है। काम-धंधा बंद होने के कारण प्रवासी मजदूर अब उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार का रुख कर रहे हैं।
इनके पास न तो पैसे है और न गाड़ी का इंतजाम है। अब यह किसी तरह ट्रक, बस या अन्य साधनों से लौट रहे हैं। इन मजदूरों के साथ छोटे-छोटे बच्चे भी हैं। शहर बंद होने के कारण न तो दूध मिल पा रहा है न खाने के लिए भोजन…।
रायपुर के टाटीबंध चौक से लेकर पचपेड़ी नाका और तेलीबांधा के पास से प्रवासी मजदूरों के लौटने का सिलसिला जारी है। पड़ोसी राज्यों ने छत्तीसगढ़ की बसों को एंट्री देने से मना कर दिया है, इसलिए और ज्यादा दिक्कत बढ़ गई है।
टाटीबंध में रोजाना बिहार और झारखंड जाने वाले सैकड़ों प्रवासी मजदूर खड़े नजर आ रहे हैं। बिहार जाने वाले प्रवासी मजदूर अजय राम ने बताया कि वह रायपुर में एक आयरन फैक्ट्री में 300 रुपये दिहाड़ी पर काम करते थे। फैक्ट्री अचानक बंद कर दी गई।
उनको मालिक ने पैसा भी नहीं दिया, अब वे बिना पैसे के परिवार के साथ कैसे रह सकते हैं, इसलिए गांव जा रहे हैं। किंधुराम ने कहा कि मजदूरी का पैसा नहीं मिला है। जो पैसा बचा था, उससे अब तक काम चला, अब अपने घर जा रहे हैं।
ट्रेन का टिकट कटाने का पैसा नहीं है, इसलिए बस और ट्रक के सहारे झारखंड तक पहुंच जद्दोजहद कर रहे हैं। रायपुर के टाटीबंध में इस तरह का नजारा लाकडाउन-एक में भी देखने को मिला था। उस समय सरकार और समाजसेवी संस्था मदद के लिए आगे आई थी, लेकिन इस बार तस्वीर उलट नजर आ रही है। प्रवासी मजदूर अपना सामान और परिवार को लेकर सड़क पर है। मदद का कोई हाथ बढ़ता नजर नहीं आ रहा है।
बच्चों को गोद मे लेकर धूप में इंतजार
टाटीबंध चौक पर बच्चे को गोद में लिए खड़ी रवीना बाई ने बताया कि वे और उनके पति मजदूरी करते हैं। कंस्ट्रक्शन कंपनी का काम बंद हो गया तो वे गांव जा रहे हैं। पैसे खत्म हो गए हैं। टिकट के पैसे के लिए गांव के एक व्यक्ति को बोले हैं। खाता में पैसा आने के बाद रवाना होंगे। अभी 500 रुपये है।
लाकडाउन में लौट गए थे प्रवासी मजदूर
लाकडाउन में प्रवासी मजदूर बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड लौट गए थे। जब स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ तो कंपनी संचालकों ने उनको गाड़ी भेजकर बुलाया। प्रवासी मजदूरों ने बताया कि चार से पांच महीने काम के बाद भी जब रोजगार पटरी पर नहीं लौटा तो मालिकों ने वेतन देना बंद कर दिया। अब लाकडाउन होने के कारण खाने का संकट पैदा हो गया है।