भ्रम की दीवार तोड़ें
रायपुर। प्रदेश में कोरोना संक्रमण के तेज प्रसार और मौत के बढ़़ते आंकड़ों को राजनेताओं के गैर जिम्मेदाराना आचरण और बयान ने उर्वरता प्रदान करने का काम किया है। कोरोना महामारी के बावजूद लोगों की लापरवाही पर जब उन्हें समझाने का प्रयास किया जाता है तो वे नेताओं के आचरण, बयान और शासन के आदेश के आधार पर ही सवाल खड़़े कर देते हैं।
शारीरिक दूरी बनाए रखने, मास्क पहने और योग्य पात्र को कोरोनारोधी टीकाल गवाने की अपीलों पर भी जवाबी विचार आ रहे हैं। पूछा जा रहा है कि क्या चुनावी सभाओं में, क्रिकेट मैच के दौरान स्टेडियम में और दिन के समय बाजारों की भीड़़ में कोरोना का वायरस नहीं फैलता है।
कोरोना अगर दूसरों के संपर्क आने से फैलता है तो इन तीनों जगह पर वह निष्प्रभावी कैसे रहता है? राज्य में इस माह छह फीसद तेजी से मरीज बढ़े हैं। पहले की तुलना में गंभीर रोगियों के अधिक मिलने से अस्पतालों में बिस्तर तक का संकट आ गया है।
वहीं राज्य में टीकाकरण की गति भी धीमी है। इसके पीछे कोवैक्सीन को लेकर राज्य के स्वास्थ्य मंत्री का वह बयान था, जिसमें उन्होंने इसकी गुणवत्ता पर सवाल खड़़े करते हुए कहा था कि अभी इसके तीसरे ट्रायल की रिपोर्ट नहीं आई है। जब तक तीसरे ट्रायल की रिपोर्ट नहीं आती राज्य में इसे लगवाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
इसके बाद लोग टीका को ही संदेह की दृष्टि से देखने लगे। नतीजा यह हुआ कि राज्य में टीकाकरण अभियान लक्ष्य हासिल नहीं कर पाया है। यह भ्रम की स्थिति खत्म भी नहीं हुई है कि विपक्ष की ओर से टीका को निजी अस्पतालों में भी मुफ्त लगवाने की मांग उठा दी गई।
राज्य के राजनेताओं के इन अनावश्यक बयानों ने लोगों में जागरूकता पैदा करने के बजाय भ्रम की स्थिति पैदा की है। वहीं, प्रशासन ने भी लोगों से कोरोना गाइडलाइन का पालन करवाना सुनिश्चित की जगह नाइट कर्फ्यू की घोषणा कर नए सवाल खड़़े कर दिए हैं।
लोग पूछ रहे हैं कि दिनभर बाजारों की चहल-पहल में कोरोना गाइडलाइन का सरेआम उल्लंघन हो रहा है, वहां सख्ती करने के बजाय प्रशासन नाइट कर्फ्यू क्यों लगा रहा है। रात में कहीं भी दिन जैसी भीड़़ भी नहीं होती। कोरोना नियंत्रण के नाम पर ऐसे आदेश केवल जवाबदेही से बचने और औपचारिकता पूरी करने की कोशिश भर लगते हैं।
शासन के आदेश का पालन करने वालों के मन में आशंका है कि ऐसे निर्देशों से लोगों में सवाल तो खड़े होंगे परंतु कोरोना के विस्तार की श्रृंखला नहीं टूटेगी। सरकार से लेकर विपक्ष तक के नेताओं को चाहिए कि महामारी में राजनीति करने की जगह निस्वार्थ भाव आगे आएं और लोगों को जागरूक करें।