बीएसपी में दो दशक में 50 हजार नौकरियां समाप्त
भिलाई इस्पात संयंत्र में दो दशकों से मैनपावर की कटौती के बीच स्थाई प्रकृति और उत्पादन संबंधी कार्यों को ठेका श्रमिकों से कराया जा रहा है। इससे जहां दुर्घटना की आशंका बढ़ गई है।
भिलाई। भिलाई इस्पात संयंत्र में दो दशकों से मैनपावर की कटौती के बीच स्थाई प्रकृति और उत्पादन संबंधी कार्यों को ठेका श्रमिकों से कराया जा रहा है। इससे जहां दुर्घटना की आशंका बढ़ गई है। वहीं दूसरी ओर नियमित कर्मचारियों की संख्या सिमटती जा रही है।महज दो दशकों में ही करीब 50,000 से ज्यादा नौकरियां सिर्फ भिलाई इस्पात संयंत्र में ही समाप्त हो गई है। अब प्रबंधन ठेका श्रमिकों को साथ लेकर उत्पादन को अंजाम देने की योजना बना रहा है। युवा कर्मियों के तीन दिनों के हड़ताल के बाद से लगातार यही स्थिति दिख रही है।
वहीं यह सब नियम विरूद्घ होने के बावजूद एनजेसीएस यूनियन नेता भी चुप हैं। जबकि इसे लेकर एनजेसीएस में भी समझौता हुआ है पर पालन आज तक नहीं हो पाया।
सेल की सभी यूनिट में ठेका श्रमिकों की भूमिका को लेकर एनजेसीएस में 2010 में एग्रीमेंट हुआ था। इसमें स्पष्ट उल्लेख है कि स्थाई प्रकृति और उत्पादन संबंधी कार्यों को नियमित कर्मचारियों द्वारा करवाया जाएगा। लंबी अवधि के कार्यों में ठेका श्रमिकों को संलग्न नहीं किया जाएगा।
पिछले दो दशक से लगातार प्रबंधन ने ना सिर्फ स्थाई प्रकृति के कार्यों को आउट सोर्स और ठेका श्रमिकों से करवाना शुरू किया है। बल्कि जोखिम भरे कार्य जैसे क्रेन और लोको संचालन भी आज ठेका श्रमिक कर रहे हैं।
1994 में संयंत्र में 64,000 नियमित कर्मचारी थे सेवानिवृत्त कर्मचारी बताते हैं कि वर्ष 1994 में भिलाई इस्पात संयंत्र में लगभग 64,000 नियमित कर्मचारी थे।
वहीं सेवानिवृत्ति के बाद भर्ती कम किए जाने से आज इस संयंत्र में 16,500 लगभग कर्मचारी रह गए हैं। एक समय प्रबंधन ने 25 कर्मचारी सेवानिवृत्त होने पर एक कर्मचारी की भर्ती की जो योजना बनाई थी। उसके बाद नियमित कर्मचारियों की संख्या में तेजी से कमी आई है।
समझौते के उल्लंघन पर एनजेसीएस यूनियन नेता मौन
अप्रैल 2010 में एनजेसीएस एग्रीमेंट के क्लाज 3.6 मे ठेका श्रमिकों की भूमिका को लेकर समझौता हुआ था। इसके क्रियान्वयन और प्रगति पर नजर रखने की जवाबदारी प्रबंधन और यूनियन द्वारा तय की गई थी। बावजूद इसके प्रबंधन द्वारा लगातार जोखिम भरे कार्यों में ठेका श्रमिकों को संलग्न किया जा रहा है। हादसों में ठेका श्रमिकों की होने वाली मौत पर यूनियन सिर्फ अनुकंपा नियुक्ति और क्षतिपूर्ति के लिए संघर्ष करती दिखती है।
जिन्होंने सिखाया काम, उनके लिए ही परेशानी का सबब
संयंत्र प्रबंधन कर्मियों के आंदोलन से उत्पादन में होने वाले व्यवधान से ठेका कर्मियों के भरोसे निपटने की योजना बना रहा है। वहीं यह बात भी गौरतलब है कि इन ठेका श्रमिकों को कार्यों का प्रशिक्षण भी इन्हीं कर्मचारियों द्वारा दिया गया है। कम मैनपावर और बढ़ते कार्यभार के निराकरण के लिए स्थाई कर्मचारी ना देकर प्रबंधन ने ठेका श्रमिकों को बीएसपी कर्मचारियों के साथ काम पर लगा दिया है। यह ठेका श्रमिक इनके साथ कार्य करते-करते मशीनों को चलाना सीख चुके हैं।
अनुभव और योग्यता की कमी हादसे का कारण
संयंत्र के भीतर हो रही दुर्घटनाओं मे ठेका श्रमिकों के कम अनुभव और कार्य में जोखिम का ज्ञान ना होना बड़ी वजह है। सरकारी नियमों की बाध्यता के चलते ठेकेदार भी लंबे समय तक इन श्रमिकों को एक जगह ज्यादा समय तक काम पर नहीं रखता। वही बार -बार टेंडर होने से ठेकेदार भी बदलते रहते हैं। और कर्मचारियों के वेतन संबंधी समस्याएं आती रहती ह।ै ठेका श्रमिकों द्वारा होने वाली दुर्घटना से जहां उत्पादन और मशीन यंत्रों का भारी नुकसान होता है वही प्रबंधन को एक आश्रित को नौकरी देने विवश होना पड़ता है।
‘संयंत्र में स्थाई प्रकृति और उत्पादन संबंधी कार्य ठेका श्रमिकों से कराना नियम विरुद्घ है। प्रबंधन नियमों को मान नहीं रहा है। इंटक ने एनजेसीएस की बैठक में लगातार यह मुद्दा उठाया है।’