रायपुर. कोरोना ने लोगों को ही नहीं रिश्तों को भी मौत दे दी। राजधानी के श्मशान घाटों के लॉकर में रखी सैकड़ों मां-बाप की अस्थियां अपने बच्चों के आखिरी स्पर्श की आस में तरस रही हैं। जिस मां ने जिंदगी दी, जिस पिता का हाथ थाम कर बच्चों ने चलना सीखा, वही माता-पिता एक बीमारी के बाद इतने पराए हो गए कि जीते जी तो बच्चे उन्हें छोड़ गए और मौत के बाद उनके अंतिम संस्कार में भी नहीं आए।
श्मशान प्रबंधन ने नगर निगम के कर्मचारियों के साथ मिलकर ही कोविड पेशेंट का अंतिम संस्कार किया और तीसरे दिन उनकी अस्थियां चुनकर नाम-पते के साथ लॉकर में रख दी। उन्हें उम्मीद थी कि बाद में ही सही कोई अपना आकर मृतकों को मोक्ष दिलाएगा। लेकिन हालात ये हैं कि महीनों बाद भी 200 से अधिक मृतकों के परिजन यहां अस्थियां लेने नहीं पहुंचे हैं। इतना ही नहीं कोविड अस्पतालों और एम्स का भास्कर टीम ने जायजा लिया तो पता चला कि मरने वालों की कीमती चीजें जैसे जेवर, धार्मिक ग्रंथ, मोबाइल फोन वगैरह अस्पताल में पिछले एक साल से पड़े हैं।
कलेक्टर को इस मामले में कांग्रेस नेता विनोद तिवारी ने ज्ञापन दिया।
अब कलेक्टर से मांगी गई विसर्जन करने की अनुमति
कांग्रेस नेता विनोद तिवारी ने कलेक्टर से इस मामले को लेकर मुलाकात की है। उन्होंने मांग रखी है कि जिला प्रशासन की अनुमति से वो जिम्मेदारी लेकर इन अस्थियों का हिंदू धार्मिक मान्यता के तहत विसर्जन कर देंगे। रायपुर कलेक्टर सौरभ कुमार ने कहा कि कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद अनुमति दी जा सकती है। उन्होंने एसडीएम को 7 दिनों का नोटिस जारी करने को कहा है ताकि मृतकों के रिश्तेदारों को एक जानकारी पहुंचे। इसके बाद 26 जून शनिवार को रायपुर के महादेव घाट में प्राप्त अस्थियों का हिंदू परंपराओं के मुताबिक विसर्जन किया जा सकता है।
रायपुर के मारवाडी श्मशान घाट की तस्वीर
गड्ढे में गाड़ दी गई सैकड़ों अस्थियां
रायपुर में अप्रैल से जून के पहले सप्ताह तक कोरोना संक्रमण से मौतों कें आंकड़े अधिक रहे। इस दौरान 1 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई। शहर के मारवाड़ी श्मशान घाट के मैनेजर रवि साहू ने कहा कि मैं दुखी हूं। आज तक हमने कभी ऐसे हालात नहीं देखे। मृतकों के घर वाले अस्थियां ले जाने से इंकार कर रहे हैं। मैं कई लोगों से कहता हूं मां-बाप हैं यार तुम्हारे। मगर लोग नहीं आते। हम अब हर अस्थि का विसर्जन नहीं कर सकते। परिजनों की अनुमति पर हमने श्मशान में गड्ढा खुदवाया है इसी में अस्थियां डंप की जा रही हैं। अब तक 400 से अधिक अस्थियां डंप हुई हैं, अब भी हमारे लॉकर में दर्जनों अस्थियां पड़ी हैं, हम परिजनों से संपर्क कर रहे हैं।
रायपुर एम्स में संक्रमित मृतकों का सामान रखा गया।
रायपुर एम्स में पड़े हैं कई मृतकों के गहने
रायपुर एम्स के जनसंपर्क अधिकारी शिव शंकर शर्मा ने बताया कि पिछले साल मार्च के महीने से कोविड के मरीज आने शुरू हुए। एक साल में 300 से अधिक कोविड संक्रमित मृतकों के कीमती सामान हमने सहेज कर रखे हैं। इनमें रुपए, मोबाइल फोन, गहने, धार्मिक ग्रंथ शामिल हैं। परिजनों से बार-बार संपर्क करने उनके न आने की वजह से हमें मृतकों के कपड़े वगैरह नष्ट करने पड़े क्योंकि संक्रमण का रिस्क था। मगर दूसरी कीमती चीजें हमारे लॉकर में हैं, अब हम फिर से एक बार नए सिरे से मृतकों के परिजनों से संपर्क कर उन्हें उनका सामान लौटाने का प्रयास कर रहे हैं।
हर बैग से निकले सामान की एम्स ने लिस्टिंग करवाई।
वो नए कपड़े पहनकर लौटना चाहते थे, मगर बॉडी बैग में श्मशान भेजे गए
वो अपने जिनकी चीजों को घर वाले हाथ लगाने से कतरा रहे हैं, जिंदगी को लेकर उन मरने वालों ने बहुत सोच रखा था। रायपुर एम्स में जब कोविड से जंग हार चुके मृतकों के सामान देखे गए तो करीब 5-6 बैग्स में नए कपड़े थे, वो मरीज इस आस में इन्हें लेकर आए थे कि अस्पताल से ठीक होकर लौटेंगे तो नए कपड़े पहनकर घर जाएंगे। मगर संक्रमण की पकड़ से न निकल सके। अंत में मौत के बाद बॉडी बैग में उन्हें रखकर श्मशान भेजा गया। बहुत से लोगों का शव तक देखने उनके अपने नहीं आए। बुजुर्गों के बैग से धार्मिक मालाएं मिलीं, गीता भी मिली ये सारी चीजें लिस्ट बनाकर मृतकों के नाम और जानकारी के साथ पिछले कई महीनों से रायपुर एम्स में सुरक्षित रखी हैं मगर लेने वाले सामने नहीं आ रहे।