इस हौसले से हारेगी मुश्किलें:न मकान का किराया दे पा रहे थे न ही छोटी बच्ची की जरूरतें हो रही थीं पूरी, ई-रिक्शा को बदला जनरल स्टोर में अब पहले से ज्यादा कमा रहे
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रहने वाले प्रकाश पात्रे ई-रिक्शा चलाया करते थे। लोगों को एक चौराहे से दूसरे तक पहुंचाकर मिलने वाले मेहनताने से परिवार पाल रहे थे। लॉकडाउन ने इनकी कमाई पर सीधा चोट किया। परिवार में ऐसा वक्त भी आया जब इनकी दो साल की बेटी के लिए खाने की चीजें नहीं थीं, मकान का किराया और ई-रिक्शा की किश्त देने के लिए रुपए नहीं थे। जब सब कुछ शहर में बंद था, अपनी पत्नी और बेटी के साथ बेबसी में जीने को प्रकाश मजबूर थे।
ये सारा सामान ई-रिक्शा पर लेकर प्रकाश हर रोज निकलते हैं।
इन मुश्किलों में जब कुछ सूझ नहीं रहा था। तो प्रकाश ने ई रिक्शा पर ही जनरल स्टोर बनाने की सोची। जिला प्रशासन ने भी किराना सामान बेचने की छूट दी। इसके बाद प्रकाश ने पहले सिर्फ मसाले और सूखी चीजें जैसे पापड, पास्ता वगैरह रखकर बेचना शुरू किया। जब लोगों का ठीक-ठाक रिस्पांस मिला तो ई-रिक्शा पर इन्होंने चलती फिरती किराना दुकान तैयार कर डाली। अब इनके इस मिनी डिपार्टमेंटल स्टोर में टूथ ब्रश, किचन के छोटे औजार जैसी दर्जनों चीजें मिलती हैं। 5 रुपए से लेकर 100 रुपए तक जरूरत का सामान इस ई-रिक्शा में लोगों को मिल जाता है।
ई रिक्शा के अंदर की तरफ छोटे रेक बनाकर सारा सामान रखा गया है।
जितना दिनभर में कमाते थे उससे ज्यादा 6 घंटे में कमाते हैं
प्रकाश ने बताया कि संतोषी नगर इलाके से वो जय स्तंभ चौक रेलवे स्टेशन तक सवारी ढोने को काम करते थे। दिनभर में 700 से 800 रुपए की कमाई होती थी। अब सुबह करीब 7 बजे से घर से अपनी चलती फिरती किराने की दुकान लेकर निकलते हैं। दोपहर तक 1 हजार से 12 सौ रुपए तक कमा रहे हैं। प्रकाश ने बताया कि हालांकि अब मेहनत थोड़ी ज्यादा है सभी प्रोडक्ट्स जैसे पास्ता, ड्रायफ्रूट, पापड़ के छोटे-छोटे पैकेट तैयार करने पड़ते हैं, इस काम में पत्नी मेरा साथ देती है।
सारे सामान के साथ ये ई रिक्शा लोगों की जरुरतों को पूरा करती है और प्रकाश की भी।
छोटा-मोटा काम करने वालों के लिए कुछ सोचे सरकार
प्रकाश ने कहा कि आज दिनभर में वो जो कमाते हैं परिवार की जरुरतों को पूरा कर पा रहे हैं। मगर पिछले कुछ महीनों में कर्ज का बोझ भी बढ़ा है। प्रकाश कहते हैं कि मुझ जैसे लाखों लोग इस मुश्किल से जूझ रहे हैं। हम रोज काम कर रहे तो कमा रहे थे। मगर लॉकडाउन में सब बंद हो जाता है। मगर खर्च और जिम्मेदारियां तो बंद नहीं होती। हम जैसे छोटे कामगारों के लिए सरकारों को कुछ सोचना चाहिए।