रायपुर। पत्रिका लुक
पहले चरण के तहत 20 सीटों पर मतदान होने के बाद अब दूसरे चरण में शेष 70 सीटों के लिए 17 नवंबर को वोटिंग होना है। इनमें सरगुजा संभाग की 14, रायपुर संभाग की 20, बिलासपुर संभाग की 24 और दुर्ग संभाग की 12 सीटें शामिल हैं। प्रथम चरण में धान, किसान, बोनस, कर्ज माफी, सस्ता रसोई गैस सिलेंडर जैसे मुद्दे हावी रहे। अब दूसरे चरण के चुनाव का समीकरण यहां के स्थानीय मुद्दों पर निर्भर रहेगा। दूसरे चरण में ऐसे कई स्थानीय मुद्दे प्रभावी रहेंगे। भाजपा ने तो अपने घोषणा पत्र में इनमें से कुछ को शामिल किया है, लेकिन कांग्रेस के घोषणा पत्र से ये मुद्दे गायब हैं।
इसमें बिलासपुर जिले की बात करें तो यहां 6 विधानसभा सीटें हैं। इनमें बिलासपुर शहर, तखतपुर, कोटा, बिल्हा, मस्तूरी और बेलतरा शामिल है। 2018 के चुनाव में बिलासपुर जिले में बीजेपी हावी रही। भाजपा को यहां 3 सीट, 2 कांग्रेस, 1 जोगी कांग्रेस (छ्वष्टष्टछ्व) का कब्जा रहा। बिलासपुर शहर में कांग्रेस, तखतपुर-कांग्रेस, बिल्हा, मस्तूरी और बेलतरा विधानसभा में बीजेपी की जीत हुई। इसके अलावा कोटा विधानसभा पूर्व सीएम स्व अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी का पारंपरिक सीट है। जहां रेणु जोगी की जीत हुई।
इस बार के चुनाव में यहां स्थानीय मुद्दे हावी रहेंगे। बता दें कि बिलासपुर अरपा नदी के किनारे बसा हुआ है जो प्रदूषण की शिकार हो रही है। रेत माफिया ने नदी को गहराई बढ़ा दी है। आसपास हजारों घर बरसात के समय मिट्टी कटाव के चलते खतरे में आ जाते हैं। इस पर हाईकोर्ट में फैसला भी आया लेकिन अब तक इस पर गंभीरता से काम नहीं किया जा रहा है। जर्जर सड़क से आम नागरिक परेशान हैं। जिले के ग्रामीण इलाकों में लोग आवास योजना का इंतजार कर रहे हैं। शहरी इलाकों में कानून-व्यवस्ता की स्थिति खराब होना और भू-माफियाओं का सक्रिय होना बड़ा मुद्दा है। गांव में बीपीएल सर्वे सूची, अतिक्रमण, धान खरीदी केंद्र और राशन दुकानें प्रमुख मुद्दे हैं। जर्जर सड़कों से शहरी और ग्रामीण दोनों ही इलाके में मतदाता नाराज हैं। वहीं गांवों में सिंचाई सुविधाओं में भी विस्तार नहीं हुआ है। छत्तीसगढ़ की राजधानी के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण शहर बिलासपुर, छत्तीसगढ़ रेलवे जोन का मुख्यालय है। एसईसीएल का मुख्यालय है। इसके अलावा यह शहर एजुकेशन हब के रूप में भी जाना जाता है। लेकिन पिछले पांच सालों के दौरान एजुकेशन को लेकर कोई काम नहीं हुए। उल्टा सीजी पीएससी में गड़बड़ी, शिक्षकों की भर्ती के मामले में राज्य की कांग्रेस सरकार घिर गई।
जांजगीर चांपा जिले की बात करें तो यह किसान बाहुल्य क्षेत्र है। क्षेत्र का 80 फीसदी भाग नहर के पानी पर निर्भर है। किसान खरीफ फसल के तौर पर धान उगाकर और फिर उसे सरकार को बेचकर लाभ कमाते हैं। लेकिन रबी की फसल में परिवर्तन ना करके वापस धान उगाते हैं। दूसरी फसल के उत्पादन को सरकार नहीं खरीदती। सरकार के मूल्य निर्धारण नहीं करने से किसानों को दूसरी बार उगाई गई फसल का उचित दाम नहीं मिलता जिसे वो बिचौलियों की मदद से खुले बाजार में कम कीमत में बेचकर अपना खर्च निकालते हैं।
किसानों को अपनी इस समस्या से निजात पाने के लिए सरकार से कई बार ग्रीष्म कालीन फसल में धान के लिए नहर से पानी देने और फसल के उचित दाम की मांग की है जो अब तक पूरी नहीं हुई है। इसके अलावा रोजगार की मांग, चिकित्सा, शिक्षा की अच्छी व्यवस्था की मांग प्रमुख मुद्दे हैं। वहीं शहरी क्षेत्रों में पेयजल की समस्या बनीं हुई है।