छत्तीसगढ़

नहीं रहे लोक साहित्यकार-हरिहर वैष्णव

कोंडागांव। लोक साहित्य के पुरोधा कोंडागांव निवासी हरिहर वैष्णव का दिनांक 22 सितंबर की देर रात लंबी बीमारी के बाद जगदलपुर में निधन हो गया है। स्वर्गीय हरिहर वैष्णव लोक साहित्य में गहरी रुचि रही। वैष्णव के निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर है। वैष्णव का जन्म दंतेवाड़ा में 19 जनवरी 1955 को पिता श्याम दास वैष्णव माता जयमनी वैष्णव व तुलसा देवी वैष्णव के घर हुआ, पांच भाई बहनों में दूसरे नंबर के थे , वर्ष 1977 में मायावती वैष्णव के साथ उनका विवाह हुआ, जिनके तीन पुत्रियां सारिका, शैली व पुत्र नवनीत है। पिता श्याम दास वैष्णव शासकीय सेवा में कार्यरत थे। पिता का स्थानांतरण होने से पूरे परिवार लगभग 1968 को कोडागांव आए और यहीं के हो गए । हरिहर वैष्णव प्रारंभिक शिक्षा दंतेवाड़ा गीदम व उच्च शिक्षा जगदलपुर में हुई, 1972 में निम्न श्रेणी लिपिक के रूप में गीदम वन विभाग में पदस्थ हुए, बचपन से ही साहित्य साधना में उनकी रुचि रही, कोडागांव विद्यालय में हिंदी के शिक्षक सुरेंद्र रावल को अपना गुरु मानते थे, तथा जगदलपुर ही से काफी प्रभावित थे, स्कूल से ही श्रृंगार हास्य-वग्य आदि कविताओं के लेखक का कार्य करते हुए गद्य लेखन की ओर बढ़े और अनवरत साहित्य साधना में रमे रहे। वर्ष 7879 में कैनबरा यूनिवर्सिटी से एंथ्रोपोलॉजी के प्रोफ़ेसर क्रिस ग्रेगोरी रिसर्च के लिए कोंडागांव पहुंचे,

उनके साथ बस्तर के अलिखित महाकाव्य लुप्तप्राय दंत कथाओं का संग्रह की शुरुआत की, उन्होंने लक्ष्मी जगार धनकुल तीजा जगार अलिखित महाकाव्यों को लिपिबद्ध कर हल्बी हिंदी अंग्रेजी में प्रकाशन कराया, वही उड़ीसा की बाली जगार आठे जगार का लिपिकरण कर प्रकाशन कराया। साथ ही स्थानीय लोकोक्तियां मुहावरे हल्बी व्याकरण सहित साहित्य के अलावा अलावा लोक संगीत, नाटक ,गायन सहित कई एनिमेशन फिल्मों में भी काम कर चुके हैं। वर्ष 1969 में कॉमिक्स का का प्रकाशन किया जिसके लेखक हरिहर वैष्णव व चित्रांकन खेम वैष्णव ने किया था। लोक साहित्य के क्षेत्र में वर्ष 2015 में राज्य अलंकरण पुरस्कार से पंडित सुंदरलाल शर्मा के हाथों सम्मानित हुए। हरिहर वैष्णव की विद्वता ऐसी थी कि देश विदेश से बस्तर की संस्कृति को देखने और समझने आने वाले पर्यटकों का बस्तर दर्शन वैष्णव से मुलाकात किये बगैर अधूरा ही रहता था। हरिहर वैष्णव बस्तर के विख्यात साहित्यकार स्वर्गीय लाला जगदलपुरी से काफी प्रभावित थे। वैष्णव के निधन से साहित्य जगत शोक की लहर है। गुरुवार को स्वर्गीय वैष्णव के शव को गृहनगर कोंडागांव में पुत्र नवनीत ने मुखाग्नि दी।

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