जन जागरूकता से वनाधिकार मान्यता कानून का क्रियान्वयन संभव – अरविंद नेताम
नारायणपुर,पत्रिका लुक
दिशा समाज सेवी संस्था ने दिनांक 29 जून को आहूजा पैलेस नारायणपुर में वन अधिकार कानून और ग्राम सभा सशक्तिकरण पर एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित किया। इसमें नारायणपुर और अंतागढ़ के लगभग 60 गांव से 400 ग्रामीण एकत्रित हुए जिन्हे वन अधिकार मान्यता कानून पर प्रशिक्षण दिया गया। वक्ताओं ने कानून के इतिहास और इसकी आवश्यकता पर विचार रखते हुए बताया कि पांचवी अनुसूचित क्षेत्रों में वन अधिकार कानून और पेसा कानून ग्राम सभाओं को अधिकृत करते हैं कि वे अपने गांव की वन भूमि की स्वयं ही देखरेख करे। ग्रामसभाएं शासकीय तंत्र या वन विभाग पर निर्भर रहने की बजाए अपने संसाधनों का संरक्षण और प्रबंधन करने के लिए सक्षम है । यह कानून ग्रामीणों और ग्राम सभा को कब्जे की भूमि पर मालिकाना अधिकार देता है, और आगे के दिनों में कोई भी अन्य व्यक्ति, शासकीय विभाग या कॉरपोरेट घराना इनकी सहमति के बिना इस भूमि का उपयोग नहीं कर सकते हैं।
वन अधिकार कानून की प्रस्तावना में ही स्वीकार किया गया है कि पूर्व में जंगल भूमि पर आश्रित समुदायों के साथ एक ऐतिहासिक अन्याय हुआ है, क्योंकि उनके द्वारा संरक्षित जंगलों पर ही उनके अधिकारों को कोई मान्यता नहीं मिली, और अपनी जीवन शैली के अनुरूप जीवनयापन करने में उनके ऊपर वन भूमि अतिक्रमण और वनोपज चोरी के कई आरोप लगते थे।उसी अन्याय को हटाने के लिए वन अधिकार कानून बनाया गया जिसे 2006 में पारित किया गया। विभिन्न वक्ताओं ने बताया कि इस कानून के पारित होने के बाद भी इसके क्रियान्वयन में बहुत कठिनाइयां आई हैं, जनता में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता की कमी है, और प्रशासनिक अधिकारियों का रवैया भी इस कानून के प्रति उदासीन है। नारायणपुर विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण क्षेत्र है जहां सरकार द्वारा पूरा सर्वेक्षण भी नहीं किया है, जहां निर्वनीकरण का मुद्दा भी प्रखर है, और इसीलिए अन्य जिलों की अपेक्षा नारायणपुर में वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन की गति धीमी है।
सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने अपने भाषण में कहा कि पेसा कानून और वन अधिकार कानून के होते हुए भी आदिवासियों के साथ सरकारें दमन कर रही हैं, स्वयं कानून बना कर ही कानून को मान नही रही है। पांचवी अनुसूचित क्षेत्रों में ग्रामसभाओं के अधिकारों का हनन करके जल,जंगल,जमीन की लूट आज भी बरकरार है। उन्होंने कहा कि कानून की जानकारी समुदाय तक पहुंचाने की जवाबदेही शासन प्रशासन की है लेकिन इस कार्य को संस्थाएं कर रही है वाबजूद इसके संस्थाओं को कार्यक्रम करने में भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
दूर दूर से आए कानून के विशेषज्ञों, कार्यकर्ताओं और समाज के मुखियाओं ने ग्रामीणों को अलग अलग उदाहरण देकर बताया कि ये कानून किस प्रकार से उनके लिए लाभकारी है, और इसको प्राप्त करने की प्रक्रिया को सरल भाषा में समझाया।मंच संचालन दिशा समाज सेवी संस्था के केशव शोरी और नरसिंह मंडावी ने किया। वक्ताओं में पूर्व केंद्र मंत्री और सांसद अरविंद नेताम, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला, सामाजिक कार्यकर्ता प्रखर जैन, आदिवासी समता मंच से इंदू नेताम, साथी संस्था से प्रमोद पोटाई और भूपेश तिवारी, परिवर्तन से अग्नू साहू, स्थानीय कार्यकर्ता संध्या कौडो, केबीकेएस से तुलसी मंडावी, अमचो जंगल अमचो अधिकार अभियान से अनुभव शोरी और संतो मौर्य एलएम, संतो दर्रो भी शामिल थे।