
धनोरा। केशकाल
नवरात्रि का पावन पर्व देशभर में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। इस अवसर पर लोग देवी माँ की आराधना के लिए व्रत-उपवास रखते हैं और विभिन्न अनुष्ठानों का पालन करते हैं। लेकिन धनोरा तहसील मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर ग्राम बिंझे के निवासी सोमरू कोमरा (लोकप्रिय नाम सोम नाथ कोमरा) ने अपनी आस्था को एक अनूठे और कठिन तपस्या स्वरूप प्रस्तुत किया है।
नवरात्रि के पहले दिन से ही सोमरू कोमरा ने अपनी छाती पर ज्योति कलश धारण कर लिया है और नीचे बेल के काँटों का बिछौना बनाकर नौ दिन तक उसी अवस्था में रहने का संकल्प लिया है। काँटों के दर्द और कलश के बोझ को सहन करते हुए वे दिन-रात माता रानी का स्मरण कर रहे हैं।
बीमारी से मिली प्रेरणा
ग्रामीणों के अनुसार, सोमरू कोमरा लंबे समय से गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। हालत यह थी कि वे लाठी के सहारे चलते थे और कई बार घर से बाहर निकलना भी मुश्किल हो जाता था। पिछले वर्ष नवरात्रि से पहले उन्होंने माता रानी की शरण लेने का निश्चय किया और पेट पर ज्योति कलश स्थापित कर पूरे नौ दिन तक पूजन-अर्चन किया। उनका कहना है कि नवरात्रि के अंतिम दिन तक वे पूरी तरह स्वस्थ हो गए।
सोमरू भावुक होकर बताते हैं, “छह महीने तक इलाज के लिए दर-दर भटकना पड़ा, पर कोई आराम नहीं मिला। नवरात्रि के समय माता रानी की प्रेरणा से कलश धारण किया और तभी से मेरी बीमारी पूरी तरह दूर हो गई। आज मैं बिना किसी दर्द के स्वस्थ जीवन जी रहा हूँ। यह माता की ही कृपा है।”
गाँव में श्रद्धा और गर्व का विषय
ग्राम बिंझे और आसपास के इलाकों में सोमरू कोमरा की यह अनूठी तपस्या चर्चा का विषय बनी हुई है। ग्रामीण इसे माता रानी की कृपा और आस्था की मिसाल मानते हैं। उनका कहना है कि माँ नवदुर्गा के प्रति सोमरू का अटूट विश्वास पूरे क्षेत्र के लिए गर्व की बात है।
गाँव के बुज़ुर्गों का कहना है कि जब भी कोई सोमरू की बात सुनता है, तो उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं और माँ दुर्गा की महिमा पर विश्वास और भी गहरा हो जाता है।
आस्था का संकल्प
इस बार भी सोमरू ने पिछले वर्ष की भांति नवरात्रि के प्रथम दिवस से अपनी छाती पर कलश धारण कर लिया है। फर्क इतना है कि इस बार उन्होंने अपने नीचे काँटों का बिछौना भी बिछाया है। उनका संकल्प है कि नौ दिन तक वे इसी अवस्था में रहकर माता की भक्ति करेंगे। उनका विश्वास है कि जो भी कठिनाई आती है, वह माँ की कृपा से दूर हो जाती है।
आस्था का संदेश
सोमरू कोमरा का जीवन अनुभव भक्तों और श्रद्धालुओं के लिए एक संदेश है कि सच्ची श्रद्धा और भक्ति से ईश्वर को पाना संभव है। नवरात्र जैसे पर्व केवल पूजा-अर्चना भर नहीं, बल्कि मन, शरीर और आत्मा को तपाने का अवसर भी है।