नक्सलियों की कायराना करतूत
रायपुर। सब इंस्पेक्टर मुरली ताती शहीद हो गए। इसका पहले से ही खतरा था। इसी महीने तीन अप्रैल को मुठभेड़ के दौरान अगवा किए गए जम्मू के जवान राकेश्वर मन्हास को रिहा कर सुर्खियां बटोरने वाले नक्सलियों ने बस्तर की माटी के पुत्र मुरली के साथ निर्दयता बरती। सब इंस्पेक्टर मुरली तबीयत खराब होने के कारण बीजापुर स्थित अपने गांव पालनार जा रहे थे।
इस तरह एक बार फिर साफ हो गया है कि नक्सली विकास और तरक्की पसंद लोगों के दुश्मन हैं तथा केवल हिंसा के बल पर सत्ता कायम करना चाहते हैं। जंगलों में छुपे नक्सली या माओवादी कोई सैद्धांतिक लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं, वरन आदिवासियों और गरीबों की भावनाएं भड़काकर शोषण कर रहे हैं। इसमें कोई भ्रम नहीं कि क्षेत्र की प्राकृतिक संपदा ही नक्सलियों का मुख्य आकर्षण तथा ठेकेदारों से उगाही इनकी आमदनी का मुख्य जरिया है।
दुरूह वन क्षेत्र के मानव और प्राकृतिक संसाधन पर नियंत्रण कर नक्सलियों ने यहां के युवाओं को अपने प्रभाव विस्तार का जरिया बना लिया है तथा हर हाल में उन्हें विकास और मुख्यधारा से जुड़ने से रोकने के लिए प्रयासरत हैं। नक्सलियों की नीतियों ने भ्रमित आदिवासियों को दर-दर भटकने को मजबूर कर दिया है। अपने आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए क्षेत्र में शिक्षा और चिकित्सा सुविधा विकसित नहीं होने देना चाहते। शहीद मुरली ताती अपने गांव के सबसे पढ़े लिखे युवा थे तथा अपनी प्रतिभा एवं प्रतिबद्धता के बल पर सब इंस्पेक्टर पद तक पहुंचने में कामयाब हुए थे।
मुरली ने 2005-06 में दक्षिण बस्तर में चले नक्सल विरोधी अभियान सलवा जुडूम में बढ़-चढ़कर भाग लिया था, इसलिए नक्सलियों को बुरी तरह खटकते थे। मन्हास की रिहाई में मध्यस्थता करने वाले लोगों को अब समझ में आ चुका होगा कि नक्सली उनकी बातों का कितना सम्मान करते हैं। साथ ही रायपुर, दिल्ली, मुंबई सहित देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले नक्सलवादियों के समर्थकों को भी जवाब देना चाहिए कि वह खुद को मुरली ताती की शहादत के लिए कितना जिम्मेदार मानते हैं।
अगर मुरली का सरकारी सेवक होना गुनाह था, तो इन तथाकथित मानवतावादी अर्बन नक्सलियों को विभिन्न सरकारी संस्थाओं और विश्वविद्यालयों से त्यागपत्र देकर अब तक मिले वेतन को नैतिक आधार पर ब्याज समेत वापस करने का साहस दिखाना चाहिए। स्वत: संज्ञान लेने वाली अदालतों और वकीलों से भी सक्रियता की उम्मीद की जाती है।
मुरली की शहादत का उसी दिन वास्तविक रूप से सम्मान होगा, जिस दिन इन नक्सलियों और इनकी विचारधारा के समर्थकों का समूल विनाश हो जाएगा। इसके लिए पहले चरण में व्यवस्था में बैठे घुसपैठियों और दलालों को खत्म करने का संकल्प पूरा करना होगा। व्यवस्था के गद्दार नक्सलियों का सफाया ही इस समस्या का एकमात्र समाधान है और मुरली को श्रद्धांजलि भी।