32 प्रतिशत आरक्षण नहीं आदिवासी राष्ट्रीय नृत्य महोत्सव नहीं- बंगाराम सोढ़ी
कोण्डागांव । पत्रिका लुक
32 प्रतिशत आरक्षण नहीं आदिवासी राष्ट्रीय नृत्य महोत्सव भी नही ंके सम्बन्ध में बंगाराम सोढ़ी अध्यक्ष सर्व आदिवासी समाज जिला कोण्डागांव छ.ग. ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा 01 से 03 नवम्बर 2022 तक तृतीय राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस आयोजन का सर्व आदिवासी समाज जिला कोण्डागांव बहिष्कार करता है। आदिवासियों का घर हसदेव जंगल उजाड़कर आप उत्सव मना रहे हैं। आदिवासी समाज ने हसदेव जंगल बचाने के लिए अनेक प्रदर्शन किया लेकिन, अपनी हठधर्मिता के कारण हजारों पेड़ों को कटवा दिये। छत्तीसगढ़ राज्य में आदिवासियों की बहुलता के कारण अनुसूचित क्षेत्र बस्तर संभाग तथा सरगुजा संभाग में स्थानीय भर्ती पर 100 प्रतिशत तथा प्रदेश स्तर पर 32 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त था। आदिवासियों के आरक्षण को छीनकर आप राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का ढोंग कर रहे है। पेशा कानून में ग्राम सभा के अधिकारों को कमजोर किया गया। पेशा कानून लागू करने का वादा कर आदिवासियों के साथ आपके द्वारा छलावा किया गया।सरकार में बैठे राजनीतिक जनप्रतिनिधि आरक्षण पर मुंह खोलने को तैयार नहीं हैं और उनके रहते आदिवासियों के साथ बहुत बड़ा धोखा हो रहा है। वर्ष 2001 से 2012 तक वैसे भी 12 प्रतिषत आरक्षण कम मिला। सभी आदिवासी नेताओं पर भरोसा करके चुप रहे, लेकिन अब समय आ गया है, सरकार सता और शासन चलाने वाले जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध विरोध का बिगुल एवं स्वर उठने लगे हैं, जो लगातार दिखाई दे रहा है। सरकार अभी तक 1 महीने से ज्यादा हो गया सुप्रीम कोर्ट नहीं पहुंच पाई है, मुख्य मंत्री सिर्फ आश्वासन देते रहे हैं और हमारे मंत्री, विधायक बोल भी नहीं पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में समाज ने निर्णय लिया है कि जो आदिवासियों का काम नहीं करेगा, उनका विरोध सड़क पर आकर गांव-गांव में, नगर नगर में, जनजाति के प्रत्येक सामाजिक समूहों द्वारा आदिवासी नेताओं का बहिष्कार किया जाएगा और यह सिलसिला तब तक चलता रहेगा, जब तक कि आदिवासियों को उनका हक, अधिकार, संविधान प्रदत संवैधानिक व्यवस्था लागू नहीं हो जाता। इस घटना से आदिवासी समाज में गहरा आक्रोश व्याप्त है और यह आक्रोश लगातार बढ़ता जा रहा है, कहीं-कहीं अप्रिय घटना होने की भी संभावना दिखाई दे रही है। समाज के आक्रोश को अगर सरकार द्वारा समय रहते सकारात्मक तरीके से नियंत्रण नहीं किया गया, तो सरकार को पूरे प्रदेश में आदिवासियों के विरोध का सामना करना पड़ेगा। जिसका परिणाम आरक्षण नहीं, तो वोट नहीं। आरक्षण नहीं, तो विधायक-सांसद नहीं और आरक्षण नहीं जो जनपद और जिला पंचायत अध्यक्ष नहीं, आरक्षण नहीं तो पंच-सरपंच नहीं। कुल मिलाकर मुद्दे की बात यही है कि सरकार एड़ीचोटी का जोर लगाकर आरक्षण को पुनः 32 प्रतिषत कराने का हर सम्भव प्रयास करे, अन्यथा सत्ता छोड़ने का तैयार रहे।