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खरीदी नहीं होने से आदिवासी तेंदूपत्ता को जलाने व नदियों में बहाने को मजबूर

रायपुर। तेंदूपत्ता आदिवासियों की आय का एक प्रमुख स्रोत है। तेंदूपत्ता खरीदी को लेकर राज्य सरकार का गैर जिम्मेदाराना रुख ग्रामीणों को भारी पड़ रहा है। स्थिति यह है कि विभाग ने तेंदूपत्ता खरीदने के पहले तो मुनादी करवा दी, जिसके कारण इस कोरोना की महामारी में भी आदिवासी परिवारों ने अपने जान को जोखिम में डालकर अपने जीवनयापन के लिए पत्ता तोड़ने का कार्य किया।

जब ग्रामीणों ने पत्ता तैयार कर लिया तब तेंदूपत्ता खरीदी के लिए विभाग उनके पास तक नहीं पहुंचा। कुछ स्थानों पर खरीदी भी हुई तो केवल एक या दो दिन, जिससे ग्रामीणों को दोहरा नुकसान उठाना पड़ा। जब सरकार ने तेंदूपत्ता की खरीदी नहीं की तो अब लोग उसे जलाने लगे और नदियों में बहाने लगे।

सीमावर्ती इलाके ओडिशा, तेलंगाना, झारखंड आदि के तेंदूपत्ता तस्करों द्वारा बड़े पैमाने पर कम दाम पर आदिवासियों से तेंदूपत्ता खरीदकर सीमावर्ती राज्योें में ले जाकर बेचा जा रहा है। तेंदूपत्ता तस्करी की एक पूरी चेन प्रदेश में सक्रिय है, लेकिन सरकार पूरे मामले पर मूकदर्शक बनी हुई है। भाजपा प्रदेश प्रवक्ता और पूर्व मंत्री केदार कश्यप ने सरकार से मांग की है कि वनवासियों का पूरा तेंदूपत्ता खरीदे और वनवासियों को पूर्ववत समस्त सुविधाएं मुहैया कराई जाये।

केदार कश्यप ने कहा कि पूरे प्रदेश में तेंदूपत्ता के कुल 954 लाट के द्वारा 16 लाख 72 हजार मानक बोरा खरीदी की जानी है। गत वर्ष मात्र 10 लाख मानक बोरा खरीदा गया जो कि लगभग 60 प्रतिशत था, जबकि गत वर्ष का लक्ष्य भी 16 लाख 72 हजार मानक बोरा था । पिछले दो सालों से राज्य सरकार ने तेंदूपत्ता खरीदी को लेकर कभी भी गंभीरता नहीं दिखाई।

इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि आदिवासी भाइयों को कोरोना काल मे तेंदूपत्ता से जो आर्थिक लाभ होना था, जो बोनस की राशि मिलनी थी, तेंदूपत्ता संग्राहकों को अन्य सरकारी सुविधाएं मिलनी थी उससे वो वंचित हो गए। केदार कश्यप ने प्रदेश सरकार को आदिवासी विरोधी बताते हुए कहा है कि पूरे प्रदेश में आदिवासी परिवारों से शत-प्रतिशत तेंदूपत्ता खरीदा जाना चाहिए नहीं तो भारतीय जनता पार्टी उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होगी।

रायपुर। Dispute On Tendupatta Purchase: तेंदूपत्ता आदिवासियों की आय का एक प्रमुख स्रोत है। तेंदूपत्ता खरीदी को लेकर राज्य सरकार का गैर जिम्मेदाराना रुख ग्रामीणों को भारी पड़ रहा है। स्थिति यह है कि विभाग ने तेंदूपत्ता खरीदने के पहले तो मुनादी करवा दी, जिसके कारण इस कोरोना की महामारी में भी आदिवासी परिवारों ने अपने जान को जोखिम में डालकर अपने जीवनयापन के लिए पत्ता तोड़ने का कार्य किया।

जब ग्रामीणों ने पत्ता तैयार कर लिया तब तेंदूपत्ता खरीदी के लिए विभाग उनके पास तक नहीं पहुंचा। कुछ स्थानों पर खरीदी भी हुई तो केवल एक या दो दिन, जिससे ग्रामीणों को दोहरा नुकसान उठाना पड़ा। जब सरकार ने तेंदूपत्ता की खरीदी नहीं की तो अब लोग उसे जलाने लगे और नदियों में बहाने लगे।

सीमावर्ती इलाके ओडिशा, तेलंगाना, झारखंड आदि के तेंदूपत्ता तस्करों द्वारा बड़े पैमाने पर कम दाम पर आदिवासियों से तेंदूपत्ता खरीदकर सीमावर्ती राज्योें में ले जाकर बेचा जा रहा है। तेंदूपत्ता तस्करी की एक पूरी चेन प्रदेश में सक्रिय है, लेकिन सरकार पूरे मामले पर मूकदर्शक बनी हुई है। भाजपा प्रदेश प्रवक्ता और पूर्व मंत्री केदार कश्यप ने सरकार से मांग की है कि वनवासियों का पूरा तेंदूपत्ता खरीदे और वनवासियों को पूर्ववत समस्त सुविधाएं मुहैया कराई जाये।

केदार कश्यप ने कहा कि पूरे प्रदेश में तेंदूपत्ता के कुल 954 लाट के द्वारा 16 लाख 72 हजार मानक बोरा खरीदी की जानी है। गत वर्ष मात्र 10 लाख मानक बोरा खरीदा गया जो कि लगभग 60 प्रतिशत था, जबकि गत वर्ष का लक्ष्य भी 16 लाख 72 हजार मानक बोरा था । पिछले दो सालों से राज्य सरकार ने तेंदूपत्ता खरीदी को लेकर कभी भी गंभीरता नहीं दिखाई।

इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि आदिवासी भाइयों को कोरोना काल मे तेंदूपत्ता से जो आर्थिक लाभ होना था, जो बोनस की राशि मिलनी थी, तेंदूपत्ता संग्राहकों को अन्य सरकारी सुविधाएं मिलनी थी उससे वो वंचित हो गए। केदार कश्यप ने प्रदेश सरकार को आदिवासी विरोधी बताते हुए कहा है कि पूरे प्रदेश में आदिवासी परिवारों से शत-प्रतिशत तेंदूपत्ता खरीदा जाना चाहिए नहीं तो भारतीय जनता पार्टी उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होगी।

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