धीरे धीरे बरसो हे बरखा रानी
कविता
कोंडागांव पत्रिका लुक।
झमाझम बरसे पानी टपटप टपके छानी।
जरा धीरे धीरे बरसो हे बरखा महारानी।।
अभी अभी तो मैंने खेतों में धान बोएं हैं।
अभी अभी तुमने खेतों को मेरे धोएं हैं।
अभी अभी मैंने खुद को मिट्टी में है सानी।
जरा धीरे धीरे बरसो हे बरखा महारानी।।
जरा बीज को मिट्टी में मिल जाने तो दे।
दोनों को गले मिलकर अंकुर फूटने तो दे।
ठहर धरती को चादर ओढने दे हरा धानी ।
जरा धीरे धीरे बरसो हे बरखा महारानी।।
संभल तो जाऊं मैं तैयारी तो कर लूं मैं।
नांगर तुतारी बैला जवाड़ी इंतजाम कर ।
निकल घर से खेतों में कर तो लूं किसानी।।
जरा धीरे धीरे बरसो हे बरखा महारानी।
अभी तो वापस हुआ हुं परदेश प्रवास से।
अभी तो रुबरु भी नहीं हुआ हुं परिवार से।
आंखें फाड़ फाड़ झांक रहे घर की छानी।
जरा धीरे धीरे बरसो हे बरखा महारानी।।
मौलिक स्वरचित रचना
देशवती पटेल देश
कोंडागांव छत्तीसगढ़