जनसंपर्क विभाग में भृत्य के पद पर भर्ती होने वाले संत कुमार अब बन गए सहायक संचालक
नारायणपुर में जिला जनसम्पर्क अधिकारी के रूप में सम्भालेंगे कार्य भार
कोंडागांव। पत्रिका लुक
गुदड़ी के लाल यूॅ ही नहीं बनते, ग्राम्य जनजीवन में परिश्रम को ही सर्वाेपरि मानते हुए शिक्षा को गौण तथा कृषि को अधिक महत्व देते है। कक्षा पॉचवी तक की शिक्षा अध्ययन के पश्चात कक्षा 06वीं पढ़ाने स्कूल भेजने के लिए पिताजी के मना करने के बावजूद भी अपनी दृढ़ ईच्छाशक्ति, लगन और शैक्षिक जिजीविषा को जीवंत रखते हुए संत कुमार कच्छप की पढ़ाई अनवरत चलती रही।बस्तर अंचल के कोण्डागांव जिले के ग्राम जोबा में जन्मे संत कुमार कच्छप, गांव में प्राथमिक शिक्षा अध्ययन के पश्चात माध्यमिक एवं उच्चतर शिक्षा प्राप्त करने के लिए लालयित थे। परिवार में सबसे बड़े लड़के होने के कारण उनके पिताजी उन्हें अपने साथ खेतों में कार्य करने ले जाते थे। उन्हें स्कूल नहीं भेजने की चाह भी कृषि कार्य में सहयोग ही था, किन्तु अपनी प्रतिबद्वता एवं पारिवारिक दायित्वों की पूर्ण समझ रखने वाले संत कुमार कच्छप अपनेे पिताजी के साथ खेती करते और प्रतिदिन 08 किलोमीटर बिना चप्पल के पगडंडियों से पैदल आना-जाना कर दहिकोंगा में 10वीं तक की पढ़ाई किये, किन्तु कक्षा 10वीं में पूर्ण सफलता नरहरदेव उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कांकेर से वर्ष 1988 में पूरक परीक्षा उतीर्ण करने पर प्राप्त हुई। संयोग से उसी वर्ष स्कूल शिक्षा विभाग में शिक्षक की भर्ती प्रारंभ हुई जिसमें 10 वीं उत्तीर्ण वाले अभ्यर्थी सहायक शिक्षक बन गये। कच्छप जी को भी शिक्षक बनने का बहुत शौक था, क्योंकि यह प्रेरणा उनके दादाजी से मिली जो कि स्वयं प्राथमिक शाला में शिक्षक थे। कच्छप जी 10 वीं तो उत्तीर्ण किये लेकिन पूरक परीक्षा में उत्तीर्ण करने के कारण उनसे कम प्रतिशत वाले भी शिक्षक बन गये, जिसका मलाल सदैव हृदय में रहा। कक्षा 10 वीं उत्तीर्ण करने के बाद ग्राम जोबा से कोण्डागांव 20 किलोमीटर और भानपुरी 15 किलोमीटर की दूरी पर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की शिक्षा ग्रहण करना और भी दुष्कर हो गया। कच्छप जी बताते है कि कक्षा आठवीं में प्रतिभावान परीक्षा में उत्तीर्ण होकर बस्तर हाई स्कूल जगदलपुर में प्रवेश के लिए चयन हो गया था, किन्तु गरीबी के कारण उनके माता-पिता पढ़ाना नहीं चाहते थे इसलिए जगदलपुर न जाकर दहिकोंगा में ही कक्षा 10 वीं तक की पढ़ाई की। पूरक आ जाने के कारण शिक्षक बनने का सपना भी पूरा नहीं हो सका।
‘‘मन के हारे हार और मन के जीते जीत‘‘ वाली कहावत को चरितार्थ करते एवं हार को हराते हुए 20 किलोमीटर कोण्डागांव में कक्षा 11 वीं एवं 15 किलोमीटर की दूरी पर प्रतिदिन साइकिल से आना जाना कर भानपुरी में कक्षा 12 वीं की पढ़ाई पूरी किये।कच्छप जी का सपना था कि पढ़कर एक दिन ऑफिसर बने एवं एक मिशाल अपने परिवार तथा गांव के लिए बने। कोण्डागांव महाविद्यालय में वर्ष 1992 में बी.ए. प्रथम वर्ष में अध्ययनरत थे, इसी दौरान भृत्य के सीधी भर्ती के विज्ञापन निकला जिसमें आवेदन कर भृत्य पद में लिखित परीक्षा के माध्यम से चयन होकर जनसंपर्क विभाग जगदलपुर में भृत्य के पद पर भर्ती हो गये। शासकीय सेवा में आने के बाद भी पढ़ाई नहीं छोड़ी और सूचना केन्द्र दुर्गूकोंदल में कार्य करते हुए महर्षि वाल्मीकी महाविद्यालय भानुप्रतापपुर से स्नातक एवं राजनीति शास्त्र तथा समाज शास्त्र में स्नातकोत्तर की परीक्षाएॅ उतीर्ण किये। लोक सेवा आयोग की परीक्षा देते रहे फिर भी परीक्षा में कभी सफलता नहीं मिलने पर भी हार नहीं मानते हुए विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं में सम्मिलित होते रहे। वर्ष 1999 में दुर्गूकोंदल के सूचना केन्द्र बंद होने के कारण उन्हें क्षेत्रीय जनसंपर्क कार्यालय रायपुर में पदस्थ किया गया। रायपुर में पदस्थ रहते हुए छत्तीसगढ़ स्वशाषी महाविद्यालय रायपुर से पत्रकारिता बी.जे.एम.सी. की परीक्षा उतीर्ण किया। वे जनसंपर्क विभाग में विभिन्न पदों पर पदस्थ रहते हुए कबीरधाम एवं बीजापुर जिले में भी सफलतापूर्वक कार्य संपादित किये। वर्ष 2012 में सीधी भर्ती के माध्यम से सहायक सूचना अधिकारी के पद पर चयनित होकर कांकेर में पदस्थ किया गया इस पद के दायित्वों का सफलतापूर्वक कार्य संपादित किए जाने पर उन्हें वर्ष 2018 में सहायक जनसंपर्क अधिकारी के पद पर कांकेर मे ही पदोन्नत किए गए। सहायक जनसपंर्क अधिकारी के दायित्वों का सफलतापूर्वक निर्वहन करने के कारण उन्हें अब जनसपंर्क विभाग में सहायक संचालक के पद पर पदोन्नति की गयी है और उन्हे नारायणपुर में जिला जनसम्पर्क अधिकारी के रूप में पदस्थापना दी गयी है। सहज, सरल एवं कर्मठ व्यक्तित्व के धनी कच्छप जी प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गये है, इसलिए कहा गया है कि डरने वाले नौका पार नहीं होती मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती।