छत्तीसगढ़

गंभीर पेयजल संकट

रायपुर।  प्रदेश में पीने के पानी की समस्या को सरकारी विभागों की शिथिलता और जटिल बना रही है। शहर से लेकर गांव तक मुश्किलें विकराल होती जा रही हैं। समय से प्रयास शुरू नहीं किए जाने के कारण 80 फीसद ग्रामीण आबादी वाले प्रदेश के गांवों की जनता अभी से त्राहि-त्राहि करने लगी है। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग और जल जीवन मिशन की तरफ से ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति की व्यवस्था सुधारने के लिए कदम तो उठाए गए हैं, परंतु इसमें संदेह है कि समस्या का तात्कालिक समाधान भी हो पाएगा।

बंद पड़ी नल जल योजनाओं को क्रियाशील बनाने के लिए विशेष अभियान संचालित करने का फैसला लिया गया है। रिपोर्ट बता रही है कि दो तिहाई योजनाएं चालू हालत में नहीं हैं। वर्तमान समय में कोरोना के कारण उत्पन्न परिस्थितियों और चुनौतियों के बीच कर्मचारियों के सामने भी तरह-तरह की समस्याएं हैं। यह रणनीतिकारों की जिम्मेदारी थी कि पहले से ही व्यवस्थागत सुधार के लिए संसाधन उपलब्ध करा देते। अब तो आग लगने पर कुआं खोदने जैसी परिस्थिति पैदा हो गई है।

एक तरफ तो जल जीवन मिशन के तहत प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों के सभी घरों में अगले तीन वर्षों के अंदर नल से प्रति व्यक्ति 55 लीटर पानी पहुंचाने का लक्ष्य है, दूसरी तरफ जमीनी सच्चाई है कि वर्तमान समय में 85 फीसद से अधिक घर योजना की परिधि से बाहर हैं। राजनांदगांव के आर्सेनिक प्रभावित गांवों के बीस हजार लोग पेयजल के लिए तड़प रहे हैं तो किडनी की समस्या से जूझ रहे गरियाबंद जिले के सुपेबेड़ा में भी समान रूप से दयनीय स्थिति बनी हुई है।

बस्तर मंडल के गांव तो पहले से ही विकास की प्रक्रिया में काफी पिछड़े हुए हैं। उत्तरी छत्तीसगढ़ में भी हालात अच्छे नहीं हैं। चिंता इस बात की भी करनी होगी कि जल गुणवत्ता परीक्षण रिपोर्ट भी संतोषजनक नहीं है। इन परिस्थितियों में सरकार को गंभीरता से पहल करनी होगी। जीवन में जल की महत्ता पर अलग से चर्चा करने की जरूरत नहीं है।

यह संबंधित अधिकारी भी बेहतर तरीके से जानते हैं कि पहल करने में काफी देरी हुई है और इसके लिए जिम्मेदार कारकों के प्रति सजगता से सबक लेने की जरूरत है। समय से योजना बनाने में विफलता और कार्यान्वयन में देरी पूरे प्रदेश की जनता पर भारी पड़ेगी। शहरी क्षेत्र में भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।

स्थानीय निकायों द्वारा समुचित प्रबंध नहीं किए जाने के कारण अवैध रूप से भूजल का दोहन करने वालों ने पेयजल का समानांतर कारोबार खड़ा कर लिया है। यह परिस्थिति दीर्घकालिक योजना पर काम करने में विफलता का भी परिणाम है। उम्मीद की जानी चाहिए कि विभागीय स्तर पर तत्परता दिखाई जाएगी, ताकि स्थिति नियंत्रण से बाहर नहीं जाए।

Patrika Look

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