छत्तीसगढ़

डीजे वाले बाबू पर प्रशासन का नही है अंकुश,लाऊड स्पीकर के शोर से नगरवासियों में रोष

–नियमों का हो रहा उल्लंघन ,खतरनाक साबित हो रहा शादियों में बज रहा कान फाड़ू संगीत

कोण्डागाँव ।पत्रिका लुक

विवाह की रस्में शुरू हो चुकी हैं,लगतार पार्टियों का दौर प्रारम्भ है, लेकिन उन शादियों में बज रही कान फाड़ू लाउडस्पीकर व डीजे पर प्रशासनिक अंकुश लगता नजर नहीं आ रहा है, जिसके चलते मनमाने तरीके से देर रात तक तेज आवाज में संगीत बजाया जा रहा है। तेज संगीत के चलते छोटे बच्चे बुजुर्गों व मरीजो व बेजुबान जानवरों को ज्यादा तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है।जानकारो की माने तो कानों के लिए 60 डेसीबल तक की आवाज सामान्य होती है।लेकिन इससे अधिक आवाज कान की सेहत के लिए खतरनाक साबित हो सकती है।नियमानुसार तेज आवाज की मात्रा 45 डेसीबल ही होनी चाहिए, लेकिन जिला मुख्यालय में चल रहे शादियो में यह आंकड़ा औसतन 80 डेसीबल से ऊपर पहुंच गई है

जिले में ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए उच्च न्यायालय के आदेश का भी नही हो पा रहा अनुपालन

जिले में कोलाहल अधिनियम की धज्जियां उड़ती नजर आ रही है,विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार निंद्रावस्था में आस-पास के वातावरण में 35 डेसीबल से ज्यादा शोर नहीं होना चाहिए और दिन का शोर भी 45 डेसीबल से अधिक नहीं होना चाहिए।वहीं देर समय तक ध्वनि प्रदूषण के कारण लोगों में न्यूरोटिक मेंटल डिस ऑर्डर की संभावना बढ़ जाती है।
ध्वनि प्रदूषण पशुओं के लिए भी खतरनाक साबित होता है। अधिक ध्वनि प्रदूषण के कारण जानवरों के प्राकृतिक रहन-सहन में भी बाधा उत्पन्न होती है। उनके खाने-पीने, आने-जाने और उनकी प्रजनन क्षमता और आदत में बदलाव आने लगता है।वही जिले में ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए उच्च न्यायालय के आदेश का भी अनुपालन नहीं हो पा रहा है। यही कारण है कि प्रतिबंध के बावजूद भी रात दस बजे के बाद तक डीजे व साउंड का शोर नहीं थम रहा है।अभी भी बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्होंने वैवाहिक कार्यक्रम में डीजे बजाने की अनुमति तक प्रशासन से नहीं ली है,वहीं हर हर वर्ष जिला प्रशासन बाकायदा बैठक आयोजित कर डीजे संचालको को नियमों का हवाला देते ध्वनि की तेज गति पर नियंत्रण की समझाईश देती है लेकिन डीजे संचालक अपनी मनमानी से बाज नही आते।

Patrika Look

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