शून्य की अवधारणा का प्रथम शिलालेख ग्वालियर के मंदिर में..
ग्वालियऱ। भरत ने जो शून्य दुनिया को दिया और जिस पर दुनियाभर की अंक गणितीय गणना टिकी है, उस शून्य की अवधारणा से जुड़ा मान्य शिलालेख ग्वालियर के विश्व प्रसिद्घ किला स्थित चतुर्भुज मंदिर में हैं। इस शिलालेख पर शून्य और उसकी अवधारणा से संबंधित इबारत लिखी हुई है। इसे ऑक्सफोर्ड विवि ने भी मान्यता देते हुए कहा है कि भारत के ग्वालियर में शून्य से संबंधित सबसे पुराना शिलालेख है। देश-दुनिया के कई विशेषज्ञ शोध के लिए यहां आते हैं।
भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट ने शून्य
की अवधारणा सबसे पहले दी थी। जब ग्यारवीं शताब्दी में यह यूरोप में पहुंचा तो इसे गणना में मान्यता मिली। ग्वालियर में शिलालेख के रूप में शून्य के लिखित प्रमाण की पुष्टि सन् 1903 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने अपनी रिपोर्ट में की थी। हरिहर द्विवेदी की पुस्तक ग्वालियरनामा में भी इसका उल्लेख है। साथ ही इतिहासकार फिलिप जेंडेविस ने भी अपनी पुस्तक द लॉर्ज नंबर्स में ग्वालियर में पाए गए शिलालेख की पुष्टि की है।
यह है शिलालेख में : देवनागरी लिपि व संस्कृत भाषा में अंकित इस शिलालेख में उल्लेख है कि पूजा के लिए प्रतिदिन 50 मालाएं मंदिर में चढ़ाई जाती हैं। इसके लिए मंदिर के पुजारी को 270 लंबाई व 187 चौड़ाई हाथ की जमीन दी जाती है। इसमें दो जगह शून्य का उपयोग किया गया है।
शासक दुर्गपाल ने बनवाया था मंदिऱ
जीवाजी विश्वविद्यालय के प्रो. एके सिंह ने भी हाल ही अपने शोध पत्र में शून्य से संबंधित कई नए तथ्य पेश किए हैं। उन्होंने बताया कि वर्तमान में जिसे चतुर्भुज मंदिर के नाम से जाना जाता है, वह नौवीं शताब्दी में प्रतिहार वंश के दुर्गपाल अल्ल ने पिता बाइल भट्ट की स्मृति में बाइल भट्ट मंदिर के नाम से स्थापित किया था। उसी समय शिलालेख को भी स्थापित किया गया था, जिसमें मंदिर के पुजारी को जमीन देने का उल्लेख है।
विदेशों से आने वालो पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र चतुर्भुज मंदिर में लगा शून्य अंकित वाला शिलालेख रहता है। इस मंदिर को विशेष संरक्षण दिया गया है। इसीलिए इसे खास पर्यटकों और शोधकर्तओं के लिए ही खोला जाता है। श्याम मुरारी सक्सेना, कनिष्ठ संरक्षण सहायक, ग्वालियर किला