छत्तीसगढ़

शिखर पर विराजित एकदंत की कहानी, ढोंलकला में परशुराम ने तोडा था गणेश जी के दांत

बैलाडीला पहाड़ में मौजूद है एक हजार साल पुरानी गणेश प्रतिमा

कोंडागांव/ बारसूर, पत्रिका लुक।

जब हमें बारसूर परगना के मांझी अर्जुन कर्मा से जानकारी मिली कि बैलाडीला के ढोलकल पहाड़ पर पुरानी गणेश प्रतिमा है। हम भरी बरसात में रिपोर्टिंग करने निकल पड़े। उद्देश्य था इस बार गणेश चतुर्थी के मौके पर पहाड़ पर विराजित गणेश की विशेष रिपोर्टिंग प्रकाशित की जाए, किन्तु जैसे ही हम दंतेवाड़ा से फरसपाल पहुंचे तो हमारा उद्देश्य सुन गांव वाले हंसने लगे। देखो भरी बरसात में ये ढोलकल चढ़ने निकले हैं पर हम पहाड़ी नाला पार कर तथा तीन घंटे की चढ़ाई कर शिखर तक पहुंचे ही गए। हरियाली से ढके पहाड़ों के मध्य खड़ी चट्टान पर विराजित गणेशजी पर जैसे ही नजर पड़ी, सारी थकान उतर गई और इसी के साथ 19 सितंबर 2012 को देश – दुनिया के सामने आई, मध्य भारत में सबसे ऊंचे स्थान पर विराजित ढोलकल शिखर की गणेश प्रतिमा..!
प्रथम पूजनीय भगवान गणेश की प्रतिमाएं हर जगह मिल जाती हैं परंतु बस्तर में तीन हजार तीन सौ पच्चासी फीट ऊंचे ढोलकल शिखर पर स्थापित विध्न विनाशक की प्रतिमा मध्य भारत की एकमात्र गणेश प्रतिमा है, जो इतनी उंचाई पर विराजित है। महादेव का दूसरा घर के नाम से विख्यात पचमढ़ी की ऊंचाई तीन हजार पांच सौ पचास फीट है किंतु वहां भोलेनाथ हैं। दक्षिण बस्तर की 14 पहाड़ियां में एक पहाड़ की आकृति भगवान शिव के वाहन नंदी के पीठ की जैसी है इसलिए यह प्रक्षेत्र बैलाडीला कहलाता है। इन पहाड़ियों में ढोलकल शिखर सैलानियों को रोमांच के साथ आत्मीय सुख भी प्रदान करता है।

कहां है ढोलकल शिखर – छत्तीसगढ़ राज्य के दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा जिला अंतर्गत लौह अयस्क से परिपूर्ण 25 किमी लंबी बैलाडीला की 14 पहाड़ियां हैं। इसे लोहे का पहाड़ भी कहा जाता है। इन पहाड़ियों का सर्वेक्षण तथा भू- गर्भीय मानचित्र वर्ष 1934 – 35 में जियोलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के डा. क्रुकशंक ने तैयार किया था। उन्होंने 88 साल पहले बता दिया था कि बैलाडीला की पहाड़ियों में कई पुरानी मूर्तियां हैं। हरियाली से ढंका ढोलकल पहाड़ बचेली वन परिक्षेत्र अंतर्गत कक्ष क्रमांक 712 में है। शिखर की ऊंचाई समुद्र तल से तीन हजार तीन सौ पच्चासी फीट है। शिखर चट्टान की आकृति ढोल की तरह है इसलिए इसे ढोलकल या ढोलकट्टा कहा जाता है। ढोलकल शिखर के ठीक नीचे प्राकृतिक जल स्त्रोत है। यहां का शीतल जल पीकर आगंतुक अपनी प्यास बुझाते हैं।

क्या है पौराणिक मान्यता – प्रचलित है कि बैलाडीला के नंदीराज शिखर पर महादेव ध्यान करते थे। एक दिन उन्होंने पुत्र विनायक से कहा कि वे ध्यान करने शिखर पर जा रहे हैं। कोई उनकी साधना में विघ्न न डाले। कुछ समय बाद भगवान परशुराम वहां पहुंचे और नंदीराज शिखर की तरफ़ जाने का प्रयास करते लगे। विनायक ने उन्हें रोका।इससे परशुराम जी क्रुद्ध हो गए और फर्सा से विनायक पर वार कर दिया। यह फरसा विनायक का एक दांत काटते हुए पहाड़ के नीचे जा गिरा, इसलिए विनायक एकदंत कहलाए और पहाड़ नीचे की बस्ती का नाम फरसपाल प

नृपतिभूषण द्वारा स्थापित प्रतिमा – दक नागवंशीय दक्षिण भारत के काली सिंधु नदी किनारे नरेश कश्यप गोत्र के बाशिंदे और शैव पंथी (शिव परिवार के उपासक) थे। ऐसा माना जाता है कि वर्ष 1023 ईस्वी में जब नागवंशीय नरेश नृपतिभूषण गोदावरी पार कर मिरतूर होते हुए बारसूर आ रहे थे। तब उन्हे ढोलकल शिखर में बाल गणेश और परशुराम के मध्य युद्ध की कहानी ज्ञात हुई। चूंकि छिंदक नागवंशी शैव उपासक थे इसलिए उन्होंने शिखर पर गणेश प्रतिमा स्थापित कर उस पौराणिक घटना को चिर स्थायी करने का प्रयास किया था। यह गणेश मूर्ति दक्षिण भारतीय शैली में, ललितासन मुद्रा में काले चट्टान में उकेरी गई है। मूर्ति 36 इंच ऊंची तथा 19 इंच मोटी है।
नंदी राज के सुखद दर्शन- आप ढोलकला शिखर पर पहुंचेंगे। आपको दूर-दूर तक हरियाली से ढकी पहाड़ियां नजर आएंगी। ढोलकल शिखर के बाईं तरफ की चट्टान पर कभी सूर्य मंदिर हुआ करता था परंतु यहां के सूर्यदेव की मूर्ति 25 साल से गायब है। इस चट्टान के ठीक पीछे नंदी के डील जैसी आकृति वाला दूसरा शिखर है। जिसे नंदीराज कहते हैं। बैलाडीला क्षेत्रवासी इसे नंदराज कह पूजते हैं। नंदराज शिखर तक पहुंचना मुश्किल है, इसलिए इनकी आराधना करने वाले अधिकांश लोग सूर्य मंदिर की चट्टान पर खड़े होकर ही नंदराज का आव्हान करते हैं।
दयूरमुत्ते करतीं थीं पूजा – ढोलकला के नीचे बिखरी पड़ी पुरातन वस्तुओं के संदर्भ में फरसपाल, भोगाम, कवलनार, पंडेवार आदि गांव में एक चक कथा प्रचलित है। आदिवासी समाज के वरिष्ठ कार्यकर्ता बल्लूराम भोगामी बताते हैं कि सैंकड़ों वर्ष पहले डोलमेट्टा शिखर में एक दयूरमूत्ते (देवी) रहती थीं और डमरु जैसा वाद्य बजाकर गणेशजी की पूजा करती थीं। सैकड़ों वर्षों तक लोग डमरु की आवाज सुनते रहे हैं इसलिए शिखर को डोलमेट्टा कहने लगे। कालांतर में यह शिखर ढोलकल नाम से चर्चित हुआ। एक बार कोई भीमाराज नामक राज परिवार का व्यक्ति वारंगल से वहां पहुंचा और देवी को देख कामुक हो गया। तंबाकू मांगने के बहाने उनके पास पहुंच छेड़ने लगा। विरोध के बावजूद उसने देवी से अनाचार किया और मिडकुड़नार की तरफ चला गया। इधर देवी भी पूजा- पाठ छोड़ डोलमेट्टा से मंगनार चली गई और सुरंग में रहने लगी। सुरंग में देवी ने जिस बालक को जन्म दिया। उससे ही भोगाम कुल का उदय हुआ। इस कुल के हजारों लोग उपरोक्त गांवों में निवासरत हैं। ढोलकल शिखर के नीचे पहाड़ी ढलान पर भी दयूरमूत्ते की पाषाण प्रतिमा थी। वह मूर्ति भी विगत 25 वर्षों से गायब है।
शरारती तत्वों ने गिराई मूर्ति –
ढोलकल शिखर 1000 साल पुरानी गणेश प्रतिमा, जैव विविधता और हरी भरी खूबसूरत वादियों की वजह से लोकप्रिय हुआ और सैकड़ों लोग यहां आने लगे। अक्तूबर 2012 में जब यह तस्वीर ऐतिहासिक बस्तर दशहरा के निमंत्रण पत्र में प्रकाशित हुई तो छत्तीसगढ़ के तत्कालीन राज्यपाल शेखर दत्त यह तस्वीर देख अवाक रह गए। उन्होंने बकायदा ढोलकल तस्वीर युक्त नववर्ष 2013 का ग्रीटिंग कार्ड छपवाया और देश के अति विशिष्ठजनों को भिजवाया था। इधर बेहतरीन फोटोग्राफी के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा इस संवाददाता को गणतंत्र दिवस 2013 के अवसर पर दंतेवाड़ा परेड ग्राउंड में पुरस्कृत किया था। 25 जनवरी 2017 को कुछ शरारती तत्वों से इस प्रतिमा को तोड़ पचास मीटर गहरी खाई में फेंक दिया। जिसके कारण पूरे बस्तर में जबरदस्त आक्रोश उपजा। विरोध में दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय बंद रखा गया। जनक्रोश को देखते हुए छग पुरातत्व विभाग की टीम ढोलकल शिखर तक पहुंची और ग्रामीणों की मदद से गणेश प्रतिमा के सभी टुकड़ों को एकत्र कर तथा जोड़कर पुन: शिखर पर विराजित कर दिया। जिस दिन इस मूर्ति की प्रतिस्थापना की गई थी, उस दिन शिखर नीचे जामगुड़ा (फरसपाल) में जमकर उत्सव मनाया गया था। उक्त घटना के बाद यह प्रतिमा और अधिक चार्चित हो गई तथा यहां आने वाले सैलानियों की संख्या कई गुना बढ़ गई है।
कैसे पहुंचे..
छग की राजधानी रायपुर से 384 किमी दूर दंतेवाड़ा में मां दंतेश्वरी शक्तिपीठ है। यहां से 16 किमी दूर फरसपाल गांव है। इस गांव से तीन किमी दूर जामगुड़ा बस्ती है। यहां पहाड़ के नीचे वाहन पार्किंग कर लगभग तीन किमी पैदल चढ़ाई कर ढोलकल शिखर तक पहुंचा जा सकता है। रायपुर, विशाखापट्टनम, हैदराबाद से दंतेवाड़ा के लिए सीधी बस सेवा है। विशाखापट्टनम – जगदलपुर – किरंदूल एक्सप्रेस व पैसेंजर से दंतेवाड़ा पहुंच या रायपुर, हैदराबाद वायुयान सेवा से जगदलपुर पहुंच टैक्सी से ढोलकल पहुंच सकते हैं।

लेखक- हेमंत कश्यप,
वरिष्ठ पत्रकार व छत्तीसगढ़ वन्यजीव बोर्ड के सदस्य है।

पत्रिका लुक वेब पोर्टल, पत्रिका लुक यूट्यूब चैनल के लिए समाचार , विज्ञापन के लिए संपर्क करें- 9406183725, 9340389154, 9165961853,
ईमेल-patrikalook@gmail.com
शेयर करें सब्सक्राइब करें

Patrika Look

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *