बस्तर के आदिवासी ठगी का हो रहे शिकार
कोंडागांव पत्रिका लुक।
क्षेत्र के आदिवासी किसानों के कभी सिंचाई हेतु विद्युतिकरण के नाम पर, तो कभी अन्य योजनाओं के नाम पर आर्थिक ठगी का शिकार होने को मजबूर होने का मामला सामने आया है। वर्तमान में जो मामला सामने आया है वह आदिवासी किसानों के खेतों में सिंचाई हेतु विद्युतिकरण का विस्तार करने के नाम से आर्थिक ठगी का शिकार होने का है। उक्त मामला तब प्रकाश में आया जब जिले के तहसील माकड़ी के अंतर्गत आने वाले ग्राम बिवला के कई आदिवासी किसानों ने जिला कार्यालय में पहुंच और कलेक्टर को लिखित में विद्युत लाईन विस्तार करने एवं डी.के.टण्डन के खिलाफ कार्यवाही करने के सम्बन्ध शिकायत पत्र देकर कार्यवाही करने की मांग करने सहित प्रेस को भी उक्त जानकारी से अवगत कराकर समाचार प्रकाशन के माध्यम से ठगी का शिकार हुए किसानों की व्यथा को षासन तक पहुंचाने का आग्रह किया। पीड़ित आदिवासी किसानों द्वारा कलेक्टर के समक्ष प्रस्तुत आवेदन में लेख किया गया है कि ग्राम बिवला के 55 किसानों के द्वारा वर्ष 2018-19 में अपने खेतों में विद्युत विस्तार एवं स्थायी विद्युत कनेक्षन लगाने के लिए प्रति किसान 23-23 हजार रुपए की दर से जमा किए गए, सभी किसानों का कुल 11 लाख 30 हजार रुपए बुधराम नेताम व लक्ष्मीनाथ सोरी के द्वारा विद्युत विभाग फरसगांव के अधिकारी डी.के.टण्डन के पास जमा किया गया है, उनके द्वारा कार्य जल्दी कराने की बात कही गई, हमें गुमराह करके रखा गया। प्रत्येक किसान का 1084 रुपए मात्र का ड़िमाण्ड रसीद बनाया गया है। कलेक्टर को लिखित शिकायत पत्र देकर विद्युत लाईन विस्तार करने एवं डी.के.टण्डन के खिलाफ कार्यवाही करने की मांग की गई है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि आर्थिक ठगी का षिकार हुए ग्राम बिवला के किसानों को कब तक न्याय मिल पाता है ? क्योंकि आदिवासी बाहुल्य बस्तर संभाग के अंतर्गत आने वाले कोण्डागांव जिले के विभिन्न ग्रामों में निवासरत आदिवासी किसान आर्थिक रुप से निरंतर ठगी का षिकार होते रहते हैं। ठगी के षिकार होने वाले किसानों में से कुछ किसान ही षिकायत करने सामने आते हैं। तो वहीं ठगी का षिकार होने वाले कई किसान कभी भी शिकायत करने के लिए सामने नहीं आ पाते और अपने भाग्य को कोसते हुए चुपचाप बैठ जाते हैं। ऐसा होने के पीछे एक अहम कारण यह होता है कि जिन जागरुक किसानों के द्वारा षिकायत करने का साहस दिखाया जाता है, या तो उनकी शिकायत पर कभी कार्यवाही नहीं होती या फिर कार्यवाही किए जाने में अधिकारियों द्वारा इतना अधिक विलंब किया जाता है कि शिकायतकर्ता कार्यालयों के चक्कर लगा-लगाकर अत्यधिक परेषान होकर कार्यालय के चक्कर लगाना ही बंद कर देता है। न्याय से वंचित ऐसे लोगों के द्वारा न्याय नहीं मिलने के मामले को गांव में इतना अधिक प्रचारित कर दिया जाता है कि ठगी के शिकार अन्य लोग शिकायत करने सामने आने से कतराते हैं और जिसका लाभ आर्थिक ठगी में लगे लोग जोर-षोर से उठाते हैं और बढ़चढ़कर ठगी को ही अपना जीविकोपार्जन का जरीया बना लेते हैं।
लेखन – SK