छत्तीसगढ़

एक दिन में नहीं हुआ नुकसान, 22 मार्च से फोर्स और नक्सलियों में छिड़ी है जंग

जगदलपुर। बीजापुर के टेकलगुड़ा में फोर्स और नक्सलियों के बीच तीन अप्रैल को हुई मुठभेड़ की पटकथा 12 दिन पहले 22 मार्च को ही लिखी जा चुकी थी। नईदुनिया की पड़ताल में इस घटना की परत-दर-परत कहानी निकली है। वारदात में 22 जवान शहीद हुए पर नक्सलियों को भी बहुत नुकसान हुआ है। वह दो ट्रैक्टर में साथियों के शव लेकर भागे हैं। वारदात के करीब दो हफ्ते पहले 20 या 22 मार्च को फोर्स को सूचना मिली कि टेक्टिकल काउंटर अफेंसिव कैंपेन (टीसीओसी) के तहत नक्सलियों की बटालियन नंबर वन तुम्मापाड़-जावागट्टा गांव की तरफ सक्रिय है। नक्सलियों का एक दस्ता रोड ओपनिंग पर निकलने वाले जवानों को एंबुश में फंसाने के लिए रेकी कर रहा है। यह इलाका दुर्दांत नक्सल कमांडर हिड़मा का है। लिहाजा अधिकारी सतर्क हो गए। तुरंत जवानों के एक दस्ते को इस इलाके में भेजा गया। जवान इलाके में घुसे तो सूचना सही निकली। उन्होंने नक्सलियोंं का पीछा किया। नक्सली कम संख्या में थे और फोर्स को देखकर भाग खड़े हुए। यहीं से टेकलगुड़ा मुठभेड़ की इबारत तय हो चुकी थी।

नक्सलियों ने सड़क काट दी

फोर्स 23 साल बाद बासागुड़ा से जगरगुंडा तक 40 किमी सड़क को दोबारा खोल रही है। इसी सड़क पर तर्रेम में नक्सलियों ने 8 अक्टूबर 1998 को पहला आइइडी ब्लास्ट किया था। मेटाडोर वाहन पर तर्रेम से बासागुड़ा जा रहे 16 जवान इस ब्लास्ट में शहीद हो गए थे। इस घटना के बाद यह स्टेट हाइवे दो दशक तक बंद रहा। अब फोर्स ने तर्रेम में दोबारा थाना व कैंप खोल दिया है। इसके आगे सुकमा जिले के सिलगेर में कैंप खोला जा रहा है। सड़क को दोबारा बनाया जा रहा है। 25 या 26 मार्च को नक्सलियों ने सिलगेर के पास निर्माणाधीन पुल का काम कर रहे मजदूरों को पीटकर भगा दिया। फिर इस सड़क को जगह-जगह से काट दिया।

छांटे गए एक्सपर्ट लड़ाके

हिड़मा की बटालियन से लोहा लेने के लिए सुकमा व बीजापुर जिले के अलग-अलग कैंपों से जंगलवार में दक्ष डीआरजी जवानों की टीम तैयार की गई। इनमें ऐसे लड़ाके शामिल थे जो नक्सलियों का एंबुश तोड़ने के एक्सपर्ट माने जाते हैं। इनके साथ बस्तर बटालियन, कोबरा, सीआरपीएफ व एसटीएफ के ऐसे जवानों का चयन किया गया जिनमें नक्सल युद्धनीति की समझ हो। इन सबको मिलाकर करीब दो हजार जवानों को उस इलाके में भेजा गया, जहां नक्सली मौजूद थे। दो अप्रैल की रात में अलग-अलग टुकड़ियों में जवान रवाना हुए।

तीन अप्रैल- मुठभेड़ का दिन

जंगलवार में दक्ष जवान कई बार जंगल में नक्सलियों को धूल चटा चुके थे। उन्हें नक्सलियों की हर चाल की पूरी जानकारी थी। वह अपने वायरलेस सेट में नक्सलियों की बात भी सुन रहे थे। उन्हें पता था कि नक्सली घिर चुके हैं और घबराए हुए हैं। जवान सुबह करीब 11.30 बजे तिमापुर गांव की उस पहाड़ी के पास पहुंचे जहां उन्हें मालूम हो चुका था कि नक्सली हैं। पहाड़ी को घेरकर जवानों ने नक्सलियों पर फायरिंग झोंक दी। इधर नक्सली अंडर बैरल ग्रेनेड लांचर (यूबीजीएल) व देशी राकेट लांचर से ताबड़तोड़ गोले दागने लगे। वह तीर बम चला रहे थे। बम के हमले से जवानों के मोर्चे बिखर गए। इसके बाद भी जवानों ने हौसला नहीं खोया। उन्होंने मोर्चा बदला और फिर हमला किया। जवाबी कार्रवाई में नक्सलियों के पांव उखड़ गए और वे पहाड़ी से गायब हो गए। जब गोलीबारी बंद हो गई तो जवानों ने देखा उनके दो साथी शहीद हो गए हैं और सात घायल हैं। अब जवानों को अपने साथियों की चिंता होने लगी।

अचानक हुआ दूसरा हमला

मुठभेड़ के बाद कुछ जवान अपने साथियों की तीमारदारी में लगे रहे। मौके पर जो प्राथमिक उपचार किया जा सकता था उन्होंने किया। घटनास्थल की सर्चिंग करने वाली टीम को इस बीच एक महिला नक्सली का शव मिल गया था। पास ही उसकी इंसास रायफल पड़ी थी। इलाके की सर्चिंग करते हुए जवानों का दस्ता अब टेकलगुडम गांव तक पहुंच गया था। दोपहर के करीब तीन बज रहे थे। जवान वापस चलने को तैयार थे। उन्हें पता था कि खतरा अभी पूरी तरह टला नहीं है। उन्होंने अपने घायल साथियों को दल के बीच में सुरक्षित कर लिया। हालांकि जवान दूसरे हमले के लिए भी तैयार थे पर टेकलगुड़ा गांव की ओर से अचानक नक्सली दोबारा पूरी तैयारी कर लौट आए।

टेकलगुड़ा गांव से उत्तर की ओर 200 मीटर दूर स्थित तालाब के पास नक्सलियों ने स्नाइपर गनर्स को तैनात कर दिया था। जवान खुले में थे। स्नाइपर्स ने निशाना लगाकर आठ जवानों की हत्या कर दी। गांव के बीच मोर्चा संभाल रहे एसआइ दीपक भारद्वाज ने जैसे ही जवाबी हमला करने की कोशिश की यूबीजीएल का एक गोला उन पर आकर गिरा। कुछ नक्सली गांव में भी छिपे थे। जवानों को अचानक हुए इस दूसरे हमले में संभलने का वक्त नहीं मिला। गांव के भीतर छह शहीद हो गए। अब शहीदों की संख्या 16 हो चुकी थी। हेलीकाप्टर से अब भी संपर्क नहीं हो पा रहा था। इसके बाद कुछ इसलिए शहीद हुए क्योंकि वह अपने घायल साथियों को बचाने की कोशिश कर रहे थे। कुछ शवों को निकालने में जुटे थे इसलिए शहीद हो गए। शहीदों की संख्या बढ़ने लगी। नक्सलियों ने अपर्चुनिटी एंबुश (मौके के मुताबिक तुरंत घेर लेना) लगाया था। इस एंबुश से निकलने का मौका जवानों को नहीं मिला, फायरिंग इतनी हैवी थी कि वह नया मोर्चा भी नहीं बना पा रहे थे। मोर्चे की तलाश में पीछे हटते हुए जवान काफी दूर निकल गए। शहीद व घायल साथी छूट गए। नक्सलियों के अपर्चुनिटी एंबुश से निकलने में 3.30 बज गए थे। अब या तो बैकअप पार्टी का इंतजार किया जा सकता था या फिर कैंप वापसी करना होता। हेलीकाप्टर से संपर्क नदारद था। शाम तेजी से घिर रही है। खतरा अभी टला नहीं है। कई साथी शहीद हो चुके हैं। वापस लौटने का निर्णय लेना मजबूरी थी।

हिड़मा अपने कमांडरों को दे रहा था निर्देश

हिड़मा मौके पर दिखा नहीं, पर मास्टरमाइंड वही था। वह सेट पर जगरगुंडा प्लाटून कमांडर जगदीश, बटालियन कंपनी कमांडर सोनू व नागेश, सीआरसी कंपनी कमांडर जयलाल को निर्देश दे रहा था।

जवान का आडियो वायरल, हिड़मा को पता नहीं पंगा किससे लिया है

सोशल मीडिया में मुठभेड़ में शामिल एक जवान का आडियो वायरल हो रहा है। इसमें वह कहता है कि हिड़मा को पता नहीं उसने पंगा किससे लिया है। जवान कह रहा है कि हमने उनके 40 लोग मार गिराए। वह दो ट्रेक्टर में शव लेकर भागे हैं। वह बता रहा है कि उसके दल ने एक जिंदा नक्सली को ढाल बनाया। नक्सली आठ किमी तक पीछा करते रहे पर उनका आदमी हमारे निशाने पर था इसलिए उन्हें भागना पड़ा। इस आडियो की सत्यता की पुष्टि नहीं हुई है। ऐसा लगता है कि पहाड़ी पर पहली मुठभेड़ के बाद इस दल को निकलने का मौका मिल गया था।

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