छत्तीसगढ़

कोरोना से संक्रमित शवों का अंतिम संस्कार कर रहे युवा

गरियाबंद। कोरोना संकटकाल के दौर में अनेक लोग अपनी जान जोखिम में डालकर काम कर रहे हैं, जिनकी जितनी तारीफ की जाए कम है। समाज को इन्हे सैल्यूट करना चाहिए। असल मायने में ऐसे लोग ही समाज और इंसानियत को जिंदा रखे हैं। इतनी प्रशंसा करने के पीछे सधााई यह कि कोरोना संक्रमित मरीज के शव का अंतिम संस्कार करना जान जोखिम में डालने से कम नही है, क्योंकि अंतिम संस्कार को लेकर अब मृतक के स्वजन भी घबराने लगे हैं। आखिर इन्हें भी तो अपनी मौत का डर है। फिर भी यह कोरोना वारियर्स इस काम को साहस के साथ अंजाम दे रहे हैं।

ऐसा ही दृश्य प्रतिदिन गरियाबंद जिले में देखने को मिल रहा है। कोरोना के भयावह स्थिति के बीच गरियाबंद नगर का 21 वर्षीय मनीष यादव एक ऐसा साहसी युवा है जो इसे अपना नैतिक दायित्व और समाज में अपनी जिम्मेदारी समझते हुए पीपी कीट पहनकर शवों का अंतिम संस्कार कर रहा है। मनीष बीते 11 दिन में सात से अधिक लोगों का अंतिम संस्कार कर चुका है। इसके अलावा अपने दो सहयोगियों के साथ मर्च्युरी से शव वाहन तक शव पहुंचाने की जोखिम भरी जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं। 11 दिन में 25 से अधिक शवों को वाहन में चढ़ा चुके हैं। इसमें 15 शव तो ऐसे थे जिसे स्वजन भी छूने को तैयार नहीं थे। इन शवों को उन्होंने मुक्तिधाम तक अंतिम संस्कार के लिए पहुंचाया। इनमें से सात शवों का तो स्वयं अंतिम संस्कार भी किया। इन सात शवों में तीन के स्वजन तो आए ही नहीं थे और जिन चार शव के स्वजन आए थे वे भी अपने परिवार के सदस्य को मुखाग्नि देने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। ऐसे में इस युवक ने ही पीपीकीट पहन कर शव को मुखाग्नि दी।

जानकारी के मुताबिक वर्तमान में मनीष रोज पांच से सात शवों को पीपीकीट पहनकर शव वाहन व मुक्तिधाम तक पहुंचा रहे हैं और स्वजन के न आने या भय के कारण पीछे हटने पर ये युवक ही जान जोखिम में डालकर शवों का अंतिम संस्कार कर रहा है। मनीष के साथ उनके दो सहयोगी भी है जिसमे एक कोपरा का ताराचंद और दूसरा फिंगेश्वर का विक्रम है।

मनीष यादव बताते हैं कि बीते 11 दिन से वह लगातार जिला अस्पताल में यह काम कर रहा है। यहां अस्पताल में कार्य कर रहे एक युवक ने ही उसे बताया था कि अस्पताल में कोरोना संक्रमित मरीजों के मृत्यु उपरांत उन्हें मर्च्युरी में रखने और शव वाहन तक ले जाने के लिए वार्डब्वाय की कमी है और इस जोखिम भरे कार्य के लिए कोई तैयार भी नहीं हो रहा है। जिसके चलते स्वजनों और प्रबंधन दोनों को काफी परेशानी हो रही है। यह जानकार मनीष ने निर्णय लिया कि वह इस जोखिम भरे काम के लिए सामने आएगा और उसी दिन से वह इसमें लग गया। मनीष ने बताया कि उसे 11 दिन पूरे हो गए हैं। इस दौरान 15 से अधिक शव को वह मुक्तिधाम तक पहुंचा चुके हैं। स्वजनो में भय होने या उनके न आने पर वह सात शवों का रीति रिवाज के साथ अंतिम संस्कार भी कर चुके हैं। शनिवार को भी पांच शवों को उन्होंने मुक्तिधाम तक पहुंचाया।

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