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किसानों के साथ बातचीत से पहले सुप्रीम कोर्ट कमेटी के सदस्य बोले- निजी राय अलग रखेंगे

नई दिल्ली. केंद्र के तीन कृषि कानूनों को लेकर सार्वजनिक रूप से सरकार समर्थक राय व्यक्त करने के लिए प्रदर्शनकारी किसानों के हमले का सामना कर रहे सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति के सदस्यों ने मंगलवार को कहा कि वे विभिन्न हितधारकों से चर्चा के दौरान अपनी विचारधारा और रुख को अलग रखेंगे।

मामले को सुलझाने के लिए शीर्ष अदालत द्वारा गठित समिति के सदस्यों ने इसके बावजूद संकेत दिया कि इन कानूनों को पूरी तरह से रद्द करना लंबे समय में जरूरी कृषि सुधार के लिए उचित नहीं होगा। समिति के अहम सदस्य एवं महाराष्ट्र में सक्रिय शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल घनवट ने कहा कि कृषि क्षेत्र में सुधार की बहुत जरूरत है और कोई भी राजनीतिक पार्टी अगले 50 साल में इसकी कोशिश नहीं करेगी अगर इन कानूनों को वापस लिया जाता है। 

हालांकि, इसके साथ ही घनवट ने कहा कि समिति कानून का विरोध करने वाले और समर्थन करने वाले सहित सभी किसानों की सुनेगी और उस के अनुरूप रिपोर्ट तैयार शीर्ष अदालत में जमा करेगी। उन्होंने कहा कि पिछले 70 साल से लागू कानून किसानों के हित में नहीं थे और करीब 4.5 लाख किसानों ने आत्महत्या की। 

उन्होंने कहा, किसान गरीब हो रहे हैं और कर्ज में डूब रहे हैं। कुछ बदलाव करने की जरूरत है। वे बदलाव हो रहे हैं लेकिन विरोध शुरू हो गया है। यहां हुई समिति की पहली बैठक के बाद घनवट ने कहा कि किसानों और अन्य हितधारकों के साथ पहली बैठक गुरुवार को प्रस्तावित है।

उन्होंने कहा, समिति की सबसे बड़ी चुनौती प्रदर्शनकारी किसानों को हमसे बातचीत के लिए तैयार करने की होगी। घनवट ने कहा कि इसके बावजूद उन्हें प्राथमिकता दी जायेगी क्योंकि समिति लंबे समय से जारी प्रदर्शन को यथाशीघ्र खत्म कराना चाहती है। कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और प्रमोद कुमार जोशी समिति के अन्य दो सदस्य हैं जो पहली बैठक में शामिल हुए। 

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने 11 जनवरी को चार सदस्यीय समिति का गठन किया था लेकिन प्रदर्शनकारी किसानों ने नियुक्त सदस्यों द्वारा पूर्व में कृषि कानूनों को लेकर रखी गई राय पर सवाल उठाए। इसके बाद एक सदस्य भूपिंदर सिंह मान ने खुद को इससे अलग कर लिया है। 

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