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डिजिटल साहूकारों का घिनौना खेल, 360 फीसदी तक ब्याज वसूलती हैं ऑनलाइन कर्ज देने वाली कंपनियां

नई दिल्ली. बैंक और गैर-वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) कर्ज के लिए काफी पड़ताल और कवायद के बाद कर्ज देती हैं। इसे अवसर के रूप में देखकर एप के जरिये ऑनलाइन कर्ज देने वाली कंपनियां (फिनेटक) सिर्फ 60 मिनट में कर्ज की पेशकश कर न केवल 360 फीसदी तक ब्याज वसूल रही हैं। इन डिजिटल साहूकारों का घिनौना खेल इस कदर बेकाबू हो चुका है कर्जदार जान देने पर मजबूर हो गए हैं। हाल ही में कई लोगों ने लोन एप्स के वसूली दबाव के चलते जान दी। इनमें टीवी सीरियल तारक मेहता का उल्टा चश्मा के लेखक अभिषेक मकवाना का नाम भी शामिल है।

सेव देम इंडिया फाउंडेशन ने फिनटेक पर सख्ती बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है। फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रवीण कलाइसेलवन का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर फिनटेक और उनके रिकवरी एजेंट पर अंकुश लगाने के लिए रिजर्व बैंक को निर्देश देने का आग्रह किया है। बैंक और एनबीएफसी के मामले में बेहद सख्त दिशा-निर्देश हैं। लेकिन उसे भी कई बार वह मानने से इनकार कर देते हैं। उल्लेखनयी है कि बैंक या एनबीएफसी आपको कर्ज देती हैं तो उनका ब्याज फीसदी के रूप में तय होता है यानी 10 फीसदी या अन्य तय फीसदी। लेकिन फिनटेक हर कर्ज पर एक तय राशि ब्याज के रूप में लेती हैं जो ज्यादा महंगा होता है। एक कंपनी 15 हजार रुपये कर्ज 15 दिन के लिए देती है और 16वें दिन 15,125 रुपये ब्याज समेत वसूलती है। फीसदी के रूप में देखें तो यह 0.5 फीसदी प्रति दिन और 180 फीसदी सालाना हुआ जो बेहद ऊंचा है।

युवाओं को बना रहे शिकार

एप के जरिये कर्ज बांटने वाली यह कंपनियां कॉलेज जाने वाले या नई नौकरी शुरू करने वाले युवाओं को ज्यादा शिकार बना रही हैं।हैदराबाद के 28 साल के सॉफ्टवेयर इंजीनियर पी. सुनील ने भी एप के जरिये कर्ज लिया था। वसली के लिए मिलने वाली धमकी से तंग आकर सुनील के जान दे दी।

क्या हैं आरबीआई के नियम

बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को अपने एजेंट के नाम वेबसाइट पर सार्वजनिक करने के दिशा-निर्देश दिए हैं। वहीं, डिजिटल लेंडिंग प्लेटफॉर्म्स को अपने ग्राहकों को यह जानकारी देने का निर्देश है कि वह किस बैंक या एनबीएफसी की ओर से लोन का वितरण कर रहे हैं। साथ ही वसूली एजेंट सुबह सात बजे से शाम सात बजे तक ही कर्जदार से संपर्क कर सकते हैं। इसके अलावा कहां संपर्क करना है यह तय करने का अधिकार भी ग्राहक का है। आरबीआई ने स्पष्ट कहा है कि लोन स्वीकृत होने के तुरंत बाद कर्ज लेने वाले को बैंक या एनबीएफसी के लेटरहेड पर एक चिट्ठी जारी होनी चाहिए। प्रायः डिजिटल लेंडिंग प्लेटफॉर्म्स अपने बैंक/ एनबीएफसी का नाम सार्वजनिक किए बगैर खुद को कर्ज देने वाला बताते हैं। इस वजह से ग्राहक अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए नियामक के तहत उपलब्ध प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं।

ईएमआई का विकल्प नहीं

इस तरह की कंपनियां बेहद छोटी अवधि के लिए कर्ज देती हैं जो 15 दिन से एक माह के लिए होता है। वेतन मिलते ही ब्याज समेत पूरी राशि वसूल लेती हैं। इसमें ईएमआई का विकल्प नहीं होता है। यह 500 रुपये से एक लाख रुपये तक कर्ज देती हैं।

चुकाने में देरी पर मिलती है धमकी

इस तरह की कंपनियों से कर्ज ले चुके कई ग्राहक बेहद परेशान हो चुके हैं। ऐसे लोगो का कहना है कि कर्ज चुकाने में देरी पर फोन पर कई तरह की धमकियां मिलती हैं और घर पर बाउंसर भेजकर जबरन कर्ज वसूली तक की बात भी शामिलि है। तारक मेहता का उल्टा चश्मा के लेखक अभिषेक मकवाना ने आत्महत्या के पहले दी जानकारी में कहा था कि उनके भाई के दोस्तों को कंपनियां कर्ज के बारे में बताकर बेइज्जत करती थीं। यह कंपनियां धमकी देती हैं कि कर्ज समय पर नहीं चुकाया तो उनके सभी रिश्तेदारों को इसके बारे में बता दिया जाएगा।

चीनी कंपनियों का दबदबा

भारत में एप के जरिये कर्ज बांटने के बाजार में चीनी कंपनियों का दबदबा है। भारत में कर्ज देने वाली कंपनियों पर ब्याज को लेकर कोई अंकुश नहीं है। चीन में इसके लिए सख्त कानून है। वहां 36 फीसदी से अधिक ऊंचे ब्याज पर जेल की सजा है। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन में सख्ती बढ़ने के बाद इन कंपनियों ने भारत की ओर रुख किया है।

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