छत्तीसगढ़

दिल्ली के किसान आंदोलन की तपिश अब छत्तीसगढ़ में भी

रायपुर। दिल्ली में किसान आंदोलन की तपिश अब छत्तीसगढ़ में भी नजर आ रही हैं। कांग्रेस ने लालकिले की घटना को प्रायोजित बताते हुए स्पष्ट किया कि लोकतंत्र में हिंसा, खूनखराबा और अराजकता का कोई स्थान नहीं है।

आंदोलनरत किसान संगठनों द्वारा खुद को इस अस्वीकार्य घटनाक्रम से अलग कर लेने का स्पष्ट वक्तव्य एक सही दिशा में उठाया कदम है। अहिंसा और सत्याग्रह ही इस किसान-मजदूर आंदोलन की सबसे बड़ी ताकत रही है।

पूरी उम्मीद है कि किसान, मजदूर, गरीब का यह गठजोड़ शांतिपूर्ण और अहिंसक आंदोलन के रास्ते पर चल तीनों खेती विरोधी काले कानूनों की वापसी के लिए दृढ़ संकल्प रहेंगे।

स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने कहा कि आज देश को गांधी और नेहरू के आदर्शों की जरूरत है, ताकि प्रदर्शनकारी किसानों और सरकार के बीच एक समन्वय बन सकता। हिंसा कभी कोई समाधान नहीं लाता। उन्होंने केंद्र सरकार से अपील की कि जल्द से जल्द काले कानून वापस ले लें, ताकि शांति बहाल हो।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि कांग्रेस पार्टी का साफ मानना है कि गण और तंत्र के बीच पिछले 61 दिनों से जारी टकराव की स्थिति लोकतंत्र के लिए कतई सही नहीं है। संदेश साफ है कि देश का गण यानि जनता, शासनतंत्र से बहुत क्षुब्ध है। ऐसे में मोदी सरकार को भी अहंकार के सिंहासन से उतरकर किसान और मजदूर की न्याय की गुहार सुननी चाहिए।

कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा कि प्रधानमंत्री और भाजपा सरकार को यह सोचना पड़ेगा कि 61 दिन से बातचीत का मुखौटा पहन किसानों को दस बार बातचीत के लिए बुलाना, लेकिन मांग नहीं स्वीकारना उचित नहीं है।

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